सुभाषचंद्र बोस

जेल से रिहाई और पुनः गिरफ्तारी

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मांडले जेल में बहुत अधिक बीमार हो जाने के कारण सरकार ने सुभाष बाबू को छोड़ने का हुक्म दे दिया। कलकत्ता कांग्रेस के अवसर पर (सन् १९२९) आप स्वयं- सेवक दल के कमांडर बनाये गये। उस समय वे फौजी पोशाक में थे और प्रेक्षकों का कहना है कि इतना संगठित और अनुशासित स्वयं- सेवक दल पहले कभी नहीं देखा गया था इस अधिवेहन में सुभाष बाबू और जवहारलाल नेहरू ने मिलकर यह चेष्टा की कि कांग्रेस में देश की पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पास हो जाये। पर महात्मा गांधी और कांग्रेस के सभापतिपं॰मोतीलाल ने एक वर्ष की मुहलत सरकार को और देने का आग्रेह किया, जिससे सुभाष बाबू का प्रस्ताव पास नहीं हो सका।

इसी वर्ष लाहौर जेल में क्रांतिकारी दल के कैदी श्री यतींद्रनाथ ने ६३ दिन तक भूख- हड़ताल करके प्राण दे दिये। इस पर कलकत्ते में बडा़ जोश पैदा हो गया और शहीद के शव को बडी़ धूमधाम से जुलूस निकाला गया। इस अवसर पर सुभाष बाबू ने एक जोशिला भाषण दिया, जिसके कारणा आपको गिरफ्तार करके पुनः छह माह के लिए जेल भेज दिया गया।

इस प्रकार कई बार मुकदमा चलाकर जेल भेजते- भजते जब सरकार थक गई तो, उसने इनको भारत- रक्षा कानून में नजरबंद कर दिया। इस हालत में आपका स्वास्थ पुनः खराब हो गया। इस पर जनता ने जब आंदोलन किया तो उन्हें पहले लखनऊ और बाद में मुवाली भेजकर इलाज कराया। पर जब इससे कोईफयदा न जान पडा़ तो सरकार ने प्रस्ताव किया कि वह आपको छोड़़ने को तैयार है, बशर्ते आप जेल से निकलते ही इलाज कराने विदेश चले जायें। इष्ट- मित्रों के बहुत समझाने पर उन्होंने उसे स्वीकार किया और खास हवाई जहाज द्वारा आपको स्विट्जरलैंड भेज दिया गया।

विदेश में रहकर भी आपने अपना देश- सेवा का कार्य बंद नहीं किया और यहाँ की राजनीतिक हलचल पर बराबर निगाह रखे रहे। सन् १९३४ में जब महात्मा गांधी ने सत्याग्रह आंदोलन स्थगित कर दिया तो आपने उसके विरोद्ध में एक तार महात्मा गांधी के पास भेजा। आप इटली जाकर मुसोलिनी और आयरलैंड मेंडी॰ बेलेरा से मिले। ये दोनों अपने देश की स्वाधीनता के लिए लडे़ थे। सुभाष बाबू ने इनसे अपने भावी कार्यक्रम के विषय में प्रेरणा ग्रहण की ।।

इसी बीच में आपके पिता बहुत बीमार हो गये। उनकी इच्छा थी कि सुभाष को अंतिम समय में देख लें। इधर सुभाष का हृदय भी उनके दर्शनों को आकुल हो उठा। पर बहुत कुछ प्रयत्न करने पर भी जब सरकार ने उनको भारत लौटने की अनुमति नहीं दी। अंत में सरकारी आज्ञा का उलंघन करके भारत आ गये और जहाज से उतरते ही पकड़ लिए गये। तब पिता को देखने के लिए आप इस शर्त पर छोडे़ गये कि जब तक देश में रहेंगे, किसी राजनीतिक कार्य में भाग नहीं लेगें। फिर भी छुटकारे में देर हो जाने से आप समय पर घर नहीं पहुँच सके और उससे पहले ही पिता का देहांत हो गया। इससे सुभाष का हृदय सरकार के प्रति और भी विरोधी भावना से भर गया। पिता का क्रिया- क्रम हो जाने पर आपको फिर विदेश लौटना पडा़

दो वर्ष बाद जब वे पुनः भारत को आये तो पुराने आदेश के अनुसार पुनः गिरफ्तार कर लिए गये और डेढ़ वर्ष तक जेल में रहे। अंत में जब प्रांतों में कांग्रेसी सरकारें बन गईं, तब आपका जेल से छुटकारा हुआ। सन् १९३८में हरिपुरा कांग्रेस के सेनापति बनाये गए। सन् ३९ का कांग्रेस आधिवेशन त्रिपुरा में हुआ और इस बार भी सुभाष बाबू को ही सभापति चुना गया। पर गांधीजी और कांग्रेस के अन्य नेता समझते थे कि, सुभाष बाबू के विचार अधिक उग्र हैं। इधर योरोपीय महायुद्ध प्रारंभ हो गया था। इसलिए पूर्ण सोच- विचार कर कदम उठाना उचित था। सुभाष बाबू को यह स्थिति पंसद नही आई और उन्होंने कांग्रेस को छोड़ दिया।

सन् १९४० में रामगढ़ कांग्रेस के अधिवेशन के अवसर पर सुभाष बाबू ने 'समझौता विरोधी कान्फ्रेंस' का अयोजन किया और उसमें बहुत जोशीला भाषण दिया। इसके बाद अपने 'ब्लेक- हॉल स्मारक' को देश के लिए अपमानजनक बतला कर उसके विरुद्ध आंदोलन छेड़ दिया। सरकार ने इनको पकड़कर फिर जेल में भेज दिया। पर जब वहाँ पर उन्होंने भूख हड़ताल की तो छोड़ देना पडा़। सरकार ने इनकी माँग को स्वीकार करके 'ब्लैक हॉल' को हटाना स्वीकार कर लिया, पर साथ ही इनको अपने घर में नजरबंद रहने का आदेश जारी कर दिया, जिससे किसी से मिलन- जुलना बंद हो गया।

सन् १९४१ की २५ जनवरी को कलकत्ता की अदालत में सुभाष का मुकदमा पेश होने वाला था। पर उस समय मालूम हुआ कि वे घर को छोड़ कर न मालूम कहाँ गायब हो गये हैं। घर के बाहर पुलिस का पहरा बराबर लगा रहता था, पर सुभाष बाबू वेष बदल कर पहरेदार के सामने ही बाहर निकल गये और उसी वेष में पेशावर पहुँचकर काबुल पहुँच गये। वहाँ से स्थल मार्ग द्वारा ही यात्रा करते हुए जर्मनी पहुँचकर इंगलैंड के कट्टर शत्रु हिटलर से भेंट की। फिर एक गोताखोर नाव द्वारा आप जापान पहुँचाये गये।

उस समय जापान ने अंग्रेजों द्वारा अधिकृत बर्मा पर आक्रमण करके अपना शासन स्थापित कर दिया था। सुभाष बाबू ने वहाँ जाकर पकडे़ हुए भारतीय सैनिकों तथा अन्य भारतवासियों की आजाद हिंद सेना बनाई और एक 'आजाद हिंद सरकार' भी स्थापित कर दी। इसकी तरफ से अंग्रेजों पर हमला किया गया और 'इम्फाल (आसाम) में एक बडी़ लडा़ई हुई। कुछ समय बाद अंग्रेजों की कितनी ही नई सेनायें आ जाने से आजाद हिंद सेना को पीछे हटाना पडा़। इस प्रकार सुभाष बाबू अंग्रेजों को भारत से हटाने की चेष्टा करते रहे, जिसका भारतवर्ष तथा संसार के अन्य देशों पर भी बहुत गहरा प्रभाव पडा़। पर अगस्त १९४५ में जब जापान ने हारकर आत्म समर्पण कर दिया तो आजाद हिंद सेना भंग कर दी गई और सुभाष बाबू एक हवाई जहाज में जापान जाते हुए जहाज के गिर जाने से मृत्यु को प्राप्त हुए।

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