स्वामी दयानंद सरस्वती

पाखंड खंडिनी पताका

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>
अपने गुरु से वैदिक- धर्म के प्रचार की प्रतिज्ञा करके और कितने ही स्थानों में भ्रमण करके स्वामी जी सन्१८६६ के कुंभ में हरिद्वार पहुँच गये। उनका विचार था कि छोटे- छोटे स्थानों में दो- दो चार व्यक्तीयों को समझाते- फिरने की अपेक्षा कुंभ में इकट्ठे विद्वानों और महात्माओं से धर्म- चर्चा और विचार- विनिमय करके उनको अपने विचारानुकूल क्यों न बनाया जाए, जिससे देशभर में एक ही बार में वैदिक सिद्धांतों की चर्चा फैल जाए। पर जब उन्होंने कुंभ की अपार भीड़ और साधुओं के विशाल अखाड़ों को देखा तो एक बार तो उनका साहस टूटने लगा। वे विचार करने लगे कि इतने बडे़ और मिलों तक फैले हुए समुदाय में अपनी बात कैसे सुना सकूँगा? पर उसी रात्रि को स्वप्नावस्था में उनको प्रतीत हुआ कि कोई दैवी पुरुष आदेश दे रहे हैं- "हिम्मत को मत छोड़, सब काम पूरा हो जाएगा। क्या सूर्य अकेला ही संसार के अंधकार को दूर नहीं कर देता?" बस प्रातःकाल उठते ही उन्होंने अपने हृदय में नवजीवन का संचार होते अनुभव किया। उन्होंने अपने छोटे- से निवास स्थान के आगे एक झंडे पर "पाखंड खडिनी पताका" लिख कर गाड़ दिया और अपने विचारों को व्याख्यान के रूप में प्रकट करने लगे। उस समय तक लोगों ने किसी संन्यासी के मुख से मूर्ति- पूजा का विरोध, श्राद्धों का निराकरण, अवतारों में विश्वास, पुराणों का काल्पनिक होना आदि बातें नहीं सुनी थीं, इसलिए इस दृश्य को विस्मयपूर्वक देखते थे। कुछ लोग इसे कलिकाल का एक लक्षण बतलाते थे। कुछ पंडित नामधारी स्वामी जी को 'नास्तिक' की पदवी भी देने लग जाते थे। कुछ पंडितों और साधुओं ने स्वामी जी के विरुद्ध भाषण देना आरंभ कर दिया और वे उन्हें तरह- तरह की गालियाँ देने लगे। पर स्वामी जी अपने काम में संलग्न रहे। कई पंडित और साधु उनके स्थान पर वाद- विवाद करने के उद्देश्य से भी आते थे, पर उनकी युक्तियुक्त बातों से निरुत्तर होकर चले जाते थे। यद्यपि वहाँ कोई उनका अनुयायी तो न बना, पर उस धार्मिक जन- समुदाय में एक प्रकार की हलचल मच गई और अनेक लोग धर्म की सच्चाई के संबंध में विचार करने लग गये। 

<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118