इसी तरह बंबई की तरफ उन्होंने भगवती नाम की एक प्रसिद्ध तपस्विनी और योग साधना करने वाली महिला को भी गायत्री का उपदेश दिया था। पुराने ढंग के पंडित इन बातों पर भी हाय- तोबा मचाते थे कि शास्त्रों में स्त्रियों तथा शूद्रों को वेद- मंत्र सुनने का अधिकार नहीं है। बंबई प्रांत की एक सभा में कुछ दक्षिणी पंडित वाद- विवाद के विचार से आये। पर जैसे ही स्वामी जी ने अपने भाषण में एक वेद मंत्र का उच्चारण किया, वे लोग उठकर चलने लगे। पूछने पर उन्होंने कहा कि- "इस सभा में कई मुसलमान हैं शूद्र हैं तथा स्त्रियाँ भी हैं। इन सबके कानों में वेद मंत्र पढना शास्त्र के विरुद्ध और पाप कर्म है, इसलिए हम यहाँ नहीं ठहर सकते।
पर स्वामी जी ने कभी ऐसे कट्टरता में लिप्त व्यक्तियों की परवाह न की। उनका कथन था कि इस प्रकार के अधिकारच्युत और पतित अवस्था में पडे़ लोगों के लिए ही तो धर्मोपदेश किया जाता है। सामर्थ्यवान् और साधन- संपन्न मनुष्य तो अपनी व्यवस्था स्वयं ही कर लेते हैं। इस प्रकार यद्यपि स्वामीजी ने अपने व्यवहार से स्त्री और शूद्रों को समान अधिकार देने की घोषणा कर दी, पर कार्य रूप में अभी तक इन सिद्धांतों पर बहुत कम अमल किया जाता है। महात्मा गांधी के प्रयत्नों और त्याग- तपस्या से शूद्रों को कुछ राजनीतिक औरथोडे़ से सामाजिक अधिकार अवश्य मिल गये हैं, पर धार्मिक और जातीय विषयों में अभी तक धार्मिक संस्थानों ने अपना दृष्टिकोण एवं व्यवहार पुर्ववत् ही बनाए रखा है। जान पड़ता है- यह क्रांति के बिना पूरा न होगा।