निरोग रहने के स्वर्ण सूत्र।

March 1945

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ले.-पं. राजकिशोर बाजपेयी ‘राजेन्द्र’

1- रात्रि को अधिक जागने से शरीर क्षीण होता है, और आरोग्यता का ह्रास होता है।

2- यथा साध्य जल्दी उठने की आदत डालनी चाहिए जल्दी उठना और जल्दी सोना स्वास्थ्य और सौंदर्य का अचूक नुस्खा है।

3- सदैव हंसमुख और प्रसन्न चित्त रहना चाहिए। एक कहावत है कि “हंसो और मोटे बनो”

4- खाने के समय पीओ मत और पीने के समय खाओ मत।

5- भोजनोपरांत तुरन्त पेशाब करना चाहिए। इससे पेट हल्का रहेगा और मूत्र-विकार नहीं होंगे।

6- अच्छी भली दशा में बेहोश या पागल बनना (नशा आदि का सेवन) तन्दुरुस्ती पर दाग लगाना है।

7- महीने में कम से कम दो बार तो अवश्य ही उपवास करना चाहिये। इससे शरीर अच्छा रहता है।

8- हरी-2 हरियाली को कुछ देर तक लगातार देखते रहने से नेत्रों का तेज बढ़ता है। प्रति दिन अवश्य हरे भरे बागों और नदी झरनों आदि के दृश्यों को देखना चाहिए।

9- पैर धोने के प्रथम यदि सिर धोया जाय तो मस्तक कदापि कमजोर नहीं होता है।

10- भोजनोपराँत गीले हाथ आंखों पर फेरने से नेत्र-रोग नहीं होते हैं।

11- खुले पैरों से बहुत रास्तों पर चलने से जितने रोग दूर हो सकते हैं, उतने रोग किसी दवा से नहीं दूर होते हैं। यदि प्रातःकाल ओस पर नंगे पैरों चला जाय तो स्वास्थ्य पर बड़ा अच्छा प्रभाव पड़ता है।

12- प्राणायाम अवश्य करना चाहिए इससे फेफड़े पुष्ट होते हैं और जीवन और आमाष्य बढ़ता है।

13- दिन भर में (भोजन के समय थोड़ा जल पीकर) यदि पाँच गिलास पानी तुम पीते हो तो तुमको वैद्य बुलाने की आवश्यकता नहीं है।

14- प्रातःकाल सूर्योदय के प्रथम उठना चाहिये।

15- वेगों को (छींक, जंभाई, पेशाब, दस्त आदि) को कभी भी न रोकना चाहिये। रोकने से अनेकों भयंकर बीमारियाँ पैदा होती हुई कष्ट साध्यकारी होती है।

16-जिस देश में हम पैदा हुए हैं, वहीं ही की आबोहवा और उस देश की पैदा हुई वनस्पतियाँ और अनाज जैसे अनुकूल हो सकते हैं वैसे विदेशी वस्तुएं आदि नहीं हो सकती हैं।

17- चलते-फिरते समय यदि शरीर के किसी भाग में मोच आ जाय तो तुरन्त गर्म जल से धो डालना चाहिए।

18-भोजन में सदैव हरी शाक भाजिओं और फलों का उपयोग करना चाहिए। इससे शरीर की त्वचा का जमा हुआ मैल बाहर हो जाता है।

19- नींद की स्वाभाविक वृत्ति बड़ी विचित्र है। वह शारीरिक परिश्रम से जितना प्रेम करती है, मानसिक परिश्रम से उतनी ही घृणा।

20- यदि तुम चाहते हो कि कभी गठिया आदि न हो तो प्रतिदिन चलने की मात्रा कम न करो।

21- प्रातःकाल का स्नान स्वास्थ्य के लिए बड़ा ही उपयोगी है। स्नान करने के बाद ईश्वर-चिंतन अवश्य करना चाहिए, इससे मन को शान्ति मिलती है, और आत्मा का विकास होता है। जिससे स्वास्थ्य पर बड़ा अच्छा प्रभाव पड़ता है।

22-भोजन सदैव सादा करना चाहिए। मिताहार करने से पेट में विकार नहीं होते। यदि अजीर्ण हों तो बार-2 थोड़ा जल पीना चाहिए, आयुर्वेद में कहा है कि- अजीर्ण में पानी पीना लाभदायक है।


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