अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य -1

चुटकियों में हुआ ब्लड कैंसर का इलाज

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        वर्ष १९८६ के प्रारंभिक दिनों में शान्तिकुञ्ज से थोड़ी दूर, रायवाला छावनी के सैनिक आवास में मैं अपनी बीमार पत्नी श्रीमती उर्मिला लाल के साथ रहता था। राँची के एक वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. रमण और कैंसर रिसर्च इन्स्टीट्यूट की रिपोर्ट के  अनुसार उन्हें ‘ब्लड कैंसर’ था, जो दुनिया के लिए आज भी लाइलाज बीमारी है।

        चिकित्सकों की एक ही राय थी कि उनकी मृत्यु ६ माह के अन्दर निश्चित है। इसीलिए मैं उन्हें अपने पास रायवाला ले आया था। दिन में दो बार उन्हें १०६.४ डिग्री ताप का बुखार चढ़ता था, जो किसी भी दवा से थमता नहीं था और लगभग २ घंटे रहता ही था। रुड़की मिलिट्री हॉस्पिटल के कर्नल साहब ने भी स्वयं टेस्ट करके ‘ब्लड कैंसर’ की पुष्टि कर दी थी।

        तभी रायवाला छावनी के मेजर सक्सेना ने सलाह दी कि मैं अपनी पत्नी का इलाज शान्तिकुञ्ज में कराऊँ। उर्मिला जी दिनों- दिन दुबली होती जा रही थीं, १८- २० दिनों से खाना बंद था। खाने का प्रयास करते ही उल्टी हो जाती थी। किसी तरह जीप में बिठाकर मैं उन्हें शान्तिकुञ्ज ले आया और डॉ. राम प्रकाश पाण्डेय के समक्ष उपस्थित हो गया। निरीक्षण के उपरान्त उन्होंने सलाह दी कि माता जी के दर्शन का समय है, अतः मैं पहले सपत्नीक उनके दर्शन कर लूँ, उसके बाद ही चिकित्सा प्रारम्भ करवाई जाए।

        मैं आधे- अधूरे मन से माता जी के दर्शन के लिए चल पड़ा, क्योंकि मेरे मन में धार्मिक गुरुओं के प्रति अच्छी धारणा नहीं थी। अपने पिछले अनुभवों के कारण मैं उन्हें समाज का नासूर मानता था। किसी प्रकार पत्नी को सहारा दे कर प्रथम तल वाले उस कक्ष में ले गया, जहाँ माता जी बैठती थीं।

        पत्नी ने रो- रो कर अपना दुखड़ा सुनाया। माता जी ने बड़े स्नेह और दुलार से कहा था ‘‘अरे बेटी, तुझे कुछ भी तो नहीं हुआ है, वैसे ही दुःखी हो रही है। तू तो अभी बहुत जियेगी और गुरुदेव का कार्य भी करेगी। छोटी- सी बीमारी है, पाण्डेय जी से जड़ी- बूटी लेकर ठीक हो जायेगी।’’

        माता जी के शब्दों में न जाने कैसा जादू था कि मैं भाव- विह्वल हो उठा। मेरी आँखों से आँसुओं की धार फूट पड़ी। मैंने अपना सिर उनके चरणों में रख दिया। उन्होंने कहा भोजन- प्रसाद लेकर ही जाना। उस समय ऊपर ही भोजन की व्यवस्था थी। पता नहीं कैसे, पत्नी ने भी आधी रोटी खा ली।

        डॉ. पाण्डेय जी के पास आने पर उन्होंने एक दवा खिलायी और कुछ देर और बैठने को कहा। दस मिनट के बाद मेरी पत्नी को ढेर सारी उल्टी हुई। उल्टी इतनी बदबूदार थी कि जैसे कोई जानवर मर कर सड़ गया हो। पास खड़े एक व्यक्ति ने हाथ- मुँह धुलवाया और अपने हाथों से फर्श की सफाई की। मैं सेवा भावना के इस रूप से परिचित नहीं था, सोचा कोई सफाई कर्मचारी होगा। मुझे तो बाद में पता चला कि सफाई करने वाले सज्जन उड़ीसा से आए हुए एक एम.बी.बी.एस. हैं, जो आदरणीय पाण्डेय जी से आयुर्वेद की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।

        मैं पत्नी को वापस रायवाला ले गया। वहाँ चिकित्सा प्रारम्भ हुई और पहले ही दिन बुखार १०२ डिग्री से अधिक नहीं बढ़ा। दूसरे दिन केवल १०१ डिग्री तक रहा और रात्रि के २ बजे के आस- पास पत्नी ने मुझे जगा कर कहा कि मुझे खाने को चाहिए, भूख लगी है। डॉक्टर की सलाह के अनुसार मैंने एक सेब के चार टुकड़े किए, आधे ग्लास पानी में उबाल कर जूस को ठंडा करके पीने दे दिया। सेब का जूस पी कर उन्होंने कहा कि वह रोटी खाएँगी।

        मुझे लगा कि अब उनका अंतिम समय आ गया है। यही सोचकर मैंने दो रोटियाँ सेंक दीं। पहली रोटी खाते ही उन्हें नशा- सा हो गया और वह बिना हाथ धोए सो ही गईं। ऐसे, जैसे बेहोश पड़ी हों। सुबह साढ़े चार बजे मैंने बाबूजी (डॉ. रामप्रकाश पाण्डेय) को फोन कर सारी बातें बताईं। पिता की तरह थोड़ी डाँट सुनने को मिली और निर्देश हुआ कि यथाशीघ्र, पत्नी की नींद खुलते ही, शांतिकुंज लेकर आऊँ।

        शांतिकुंज पहुँचने पर उन्होंने पुनः उर्मिला जी का निरीक्षण किया। दवाइयाँ बदल दीं और मुझे विशेष निर्देश दिये, जो खान- पान और चिकित्सा से सम्बन्धित थे।  उन्होंने कहा- ठीक से देख- भाल करोगे, तो १० दिनों में १५ किलो वजन बढ़ जाएगा और शरीर में नई जान आ जाएगी।
        नकारात्मक सोच में डूबा हुआ मेरा मन अपने- आप से कह उठा ‘‘वाह! बड़ा डॉक्टर आ गया, १० दिनों में १५ किलो वजन बढ़ा देगा।’’  मुझे क्या पता था कि महाकाल के इस घोंसले में जड़- चेतन सभी केवल उन्हीं की आज्ञा का पालन करते हैं। उनके शिष्य जो कहें,  वैसा न हो, यह असम्भव है। १० दिनों के बाद मैं जब पुनः जाँच कराने आया, तो पाया गया कि मेरी पत्नी का वजन था ५४ किलो। उस दिन वह स्वयं सीढ़ियाँ चढ़कर वंदनीया माता जी के पास आशीर्वाद लेने गईं।

        ६ महीने की चिकित्सा के बाद जब पुनः मिलिट्री अस्पताल रुड़की में कैंसर का टेस्ट किया गया, तो रिपोर्ट देखकर कर्नल साहब देर तक मेरी पत्नी को अविश्वास की दृष्टि से देखते रहे। रिपोर्ट में कैंसर का नामोंनिशान नहीं था।

        इस घटना को २४ वर्ष बीत चुके हैं। आज भी सब कुछ सामान्य है। वंदनीया माताजी की अनुकम्पा से मेरी पत्नी का उत्तम स्वास्थ्य आज भी आस- पास की महिलाओं के लिए एक उदाहरण है।

प्रस्तुतिः भास्कर प्रसाद लाल
साधनगर, पालम कालोनी (नई दिल्ली) 
  
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