अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य -1

इसी बुड्ढे ने बचाई थी मेरी जान

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        सन् १९८८ ई. की बात है। गायत्री शक्तिपीठ, बलसाड़ की एक विशेष गोष्ठी में गायत्री महामंत्र की असीम शक्तियों पर परिचर्चा हो रही थी। धीरे- धीरे परिचर्चा का विषय इस युग के अन्यतम गायत्री साधक पं. श्रीराम शर्मा ‘आचार्य’ की अलौकिक क्षमताओं की ओर मुड़ने लगा। कई परिजनों ने सूक्ष्म रूप से पूज्य गुरुदेव द्वारा जीवन- रक्षा किए जाने के विस्मयकारी प्रसंगों की झड़ी लगा दी। इन चर्चाओं से सभी इस नतीजे पर पहुँचे कि ऐसे अद्भुत कार्यों का सम्पादन या तो ईश्वर कर सकते हैं या ईश्वर के अवतार।

        इन चर्चाओं से अभिभूत होकर कई वृद्ध परिजनों ने एक स्वर में कहा- काश! हम अभागे लोग भी अवतार पुरुष के दर्शन कर पाते। वृद्ध परिजनों की मार्मिक पीड़ा देखकर कुछ युवकों ने इन्हें हरिद्वार ले जाने का बीड़ा उठाया।

        अगले दिन उन युवकों ने हरिद्वार की यात्रा की योजना पर विचार- विमर्श शुरू किया। गुरु दर्शन के लिए जाने की ललक से भरे ग्रामीणों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी। ६०० से अधिक लोगों की सूची तैयार हो चुकी थी। इतनी बड़ी संख्या को देखकर आयोजक युवकों ने एक पूरी ट्रेन बुक कराने का निर्णय लिया।

        बलसाड़ स्टेशन से स्पेशल ट्रेन से यात्रा शुरू हुई। रेलगाड़ी के सभी डिब्बों का वातावरण गायत्रीमय हो गया था। किसी डिब्बे में गायत्री महामंत्र का सामूहिक जप, किसी में वरिष्ठ परिजनों का उद्बोधन, किसी में पूज्य गुरुदेव तथा वन्दनीया माता जी के  प्रेम- निर्झर की चर्चाएँ, तो किसी में युग संगीत का गायन- वादन। सभी हर्षोल्लास में डूबे यात्रा करते रहे।

        दूसरे दिन, रात के १०:०० बजे ट्रेन दिल्ली पहुँची। आधे घंटे बाद हरिद्वार के लिए रवाना हुई। ट्रेन अभी आउटर सिग्नल को क्रास कर ही रही थी कि बीच के एक डिब्बे से अति वृद्ध महिला, जो खुले दरवाजे के पास बैठी थीं, ट्रेन के तेज झटके से संतुलन खोकर, नीचे गिर पड़ीं। महिला के नीचे गिरते ही पूरे ट्रेन में कोहराम मच गया- बाई गिर पड़ी...... बाई गिर पड़ी। शोर- शराबे और अफरा- तफरी के बीच एक युवक ने चेन पुलिंग की। ट्रेन रुक गई।

        बहुत सारे परिजन टार्च लेकर उतरे और बाई क को खोजते हुए विपरीत दिशा में बढ़ने लगे। ये लोग कुछ ही दूर बढ़े थे कि दिल्ली की तरफ से दूसरी ट्रेन आती हुई दिखी। दिल्ली से तो वैसे भी बहुत सारी रेल गाड़ियाँ अलग- अलग जगहों के लिए चलती ही रहती हैं। सबको यह देखकर आश्चर्य हुआ कि ग्रीन सिग्नल होने के बावजूद ट्रेन की रफ्तार कम होती जा रही है। धीरे- धीरे वह दूसरी ट्रेन उस ट्रेन के सामने आकर रुक गई जो इन लोगों को लेकर हरिद्वार जा रही थी।

        जिस डिब्बे से बूढ़ी औरत गिरी थी, ठीक उसी डिब्बे के सामने वाले डिब्बे से कुछ लोगों ने ऊँची आवाज में कहा- इस ट्रेन से अभी थोड़ी देर पहले एक बाई गिर पड़ी थी। उसे हम सुरक्षित साथ ले आये हैं। इसके साथ के लोग यदि इस डिब्बे में हों, तो आकर इसे ले जाएँ। सामने के डिब्बे से बहुत सारी औरतें नीचे उतर आईं। उधर बाई को खोजने के लिए निकल पड़े लोग भी वापस लौटकर डिब्बे के पास आ चुके थे। सभी ने जोर से कहा- हाँ..हाँ। हम लोगों ने इसी बाई की खोज करने के लिए ट्रेन रुकवाई थी और दिल्ली की ओर जाने लगे थे। बाई को दूसरी ट्रेन से नीचे उतारकर वापस आरक्षित ट्रेन में बिठाया गया। बाई एकदम ठीक- ठाक दिख रही थी। फिर भी कई लोगों ने जिज्ञासावश पूछा- क्या हुआ था, कैसे गिरी, कहीं चोट तो नहीं लगी? बाई ने कहा- मैं बिल्कुल ठीक हूँ, कुछ नहीं हुआ है, अचानक गिर पड़ी थी। एक बूढ़े ने मुझे गिरने से पहले ही अपने हाथों में उठा लिया और ले जाकर आराम से उस ट्रेन में बिठा दिया।

        ट्रेन का वातावरण एक बार फिर गायत्रीमय हो चुका था। लोग पहले की तरह गायन- वादन में तल्लीन हो गए। सुबह होते- होते ट्रेन हरिद्वार पहुँची। हरिद्वार से शांतिकुंज पहुँचने पर सभी नहा- धोकर गुरुदेव के दर्शन के लिए गए। साथ में वह बूढ़ी महिला भी थी। उसकी नजर जैसे ही गुरुदेव पर पड़ी, वह जोर से चिल्ला उठी- यही है.....यही वह बुड्ढा है, जिसने मेरी जान बचायी है। जब मैं ट्रेन से नीचे गिरी थी, तो इसी ने मुझे अपने हाथों में सम्हाल कर दूसरी ट्रेन में बिठाया और फिर तुरंत गायब हो गया। पूज्य गुरुदेव के दर्शन को आये हुए सभी लोग महिला की कहानी सुनकर विस्मय- विमुग्ध हो गए। गुरुसत्ता की उस असीम अनुकम्पा से सभी की आँखें भर आईं।  

                                                        सौजन्यः ई. एम. डी. शान्तिकुञ्ज,
                                                                   हरिद्वार (उत्तराखण्ड)

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