पति के रेल सेवा से मुक्त होने के बाद हमने अपना मकान लखनऊ में बनाया। गुरुदेव की कृपा से मकान बहुत शीघ्र ही बन गया। अपने द्वारा बनाए घर में रहने की इच्छा पूर्ण हुई। हम सब बहुत खुश थे। सारी व्यवस्था बन जाने के बाद गृह प्रवेश का कार्यक्रम गायत्री जयंती के दिन तय किया गया। गर्मी का मौसम था। तपिश काफी हो रही थी। दोपहर में लू भी काफी चल रही थी, लेकिन गायत्री जयंती का पर्व नजदीक था। इसलिए हम लोगों ने दिन रात मेहनत कर दिनांक २ जून १९९० को गृहप्रवेश का कार्यक्रम रखा। हम सभी लोग बहुत उत्साहित थे। गायत्री जयंती पर्व और गृहप्रवेश दोनों एक साथ होने से खुशी दोगुनी हो गई थी। कार्यक्रम यज्ञ संस्कार द्वारा बहुत ही अच्छे ढंग से हो गया था। आने जाने वाले परिचित व आस- पड़ोस के लोग जा चुके थे। सभी कार्य अच्छी तरह सम्पन्न होने के कारण हम बहुत प्रसन्न थे। गर्मी बहुत थी, किन्तु सभी के मन में खुशियों की ठण्डी- ठण्डी लहर दौड़ रही थी। शाम होते- होते हल्की- हल्की हवा भी बहने लगी। यज्ञीय ऊर्जा से वातावरण अभी भी सुगन्धित हो रहा था।
शाम के समाचार का समय था। रेडियो खोला गया। सभी लोग समाचार सुनने लगे। मुख्य समाचार में ही गुरु देव के ब्रह्मलीन होने का समाचार मिला। आनन्द का वह अवसर पलभर में शोक पूर्ण हो उठा। सभी के मन बहुत व्यथित और व्याकुल थे। मन में न जाने कितनी आशंकाएँ उठ रही थीं। आज गृहप्रवेश किया और हमारे गुरु देव नहीं रहे। पता नहीं यह घर भविष्य में क्या- क्या दिन दिखाएगा। दूसरी बात यह भी मन को रह- रह कर परेशान करती थी कि अब हमारी दुःख तकलीफ परेशानी कौन सुनेगा? जब- जब हमारे ऊपर मुसीबत आती थी, गुरु देव हम सबकी समस्या का समाधान करते थे। अब कहाँ जाएँगे समाधान के लिए? हजारों सवाल मन में उठ रहे थे। परेशान तो सभी लोग थे, लेकिन कोई भी किसी से बात नहीं कर रहा था। सभी शोक में डूबे थे। नींद नहीं आ रही थी। रात भी हो चुकी थी। सोचते- सोचते मुझे हल्की- सी झपकी आ गई।
मैंने स्वप्न देखा कि घर में जिस जगह पर यज्ञ हुआ था, उसी जगह पर यज्ञाग्नि प्रज्ज्वलित हो रही है। यज्ञ की लपटें ऊँची- ऊँची उठ रही हैं। परम पूज्य गुरु देव यज्ञ कुण्ड के चारों ओर धीरे- धीरे चक्कर लगा रहे हैं और मुझे समझा रहे हैं ‘‘तू इतनी चिन्ता क्यों कर रही है। मैं हूँ न तुम्हारे पास। मैं यहाँ हमेशा रहूँगा तू चिन्ता करना छोड़।’’ अचानक मेरी आँखें खुल गईं। आँखों के आगे बार- बार वही दृश्य आता रहा। मन में बहुत ग्लानि हुई कि मैं तो गुरु देव को केवल शरीर तक ही जानती थी। उसी दिन उनके विराट् स्वरूप का ज्ञान हुआ कि गुरु देव हर समय हर क्षण अपने बच्चों के साथ रहते हैं।
तब से अब तक कुछ भी परेशानी होती है तो गुरु देव का आश्वासन याद आता है कि कुछ अनिष्ट नहीं होगा। गुरु देव की सूक्ष्म सत्ता हमारी रक्षा कर रही है।
प्रस्तुति:- सरस्वती श्रीवास्तव, लखनऊ, (उत्तर प्रदेश)