मंत्रजप से चेतना का मंथन

Akhand Jyoti May 2013

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गायत्री ही कामधेनु है। इसका पयपान करने वाले के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। इसीलिए शास्त्रकारों ने गायत्री महाशक्ति को मनुष्य की प्रथम आवश्यकता बताया है। यह सुमति की, सन्मति की, सद्बुद्धि की, सद् विवेक की, समझदारी की प्रतीक है। छोटे से लेकर बड़े कामों तक में इसकी जरूरत पड़ती है। इसलिए दिन में तीन बार इसका संध्यावंदन करने के लिए शास्त्रों में निर्देश दिया गया है। न्यूनतम एक बार थोड़ी- बहुत उपासना करना तो अनिवार्य ही माना गया है, चाहे वह बिना किसी विधि- विधान के ही क्यों न हो, किसी भी स्थिति में मानसिक रूप से ही कर ली जाए। आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश करने वालों के लिए गायत्री उपासना साक्षरता की तरह आवश्यक मानी गई है। गायत्री उपासना न करने वालों की कड़ी भर्त्सना की गई है। भटकाव से बचने और उन्हें दूरदर्शी विवेकशीलता की कसौटी पर कसने की प्रेरणा गायत्री महामंत्र देता है। इसीलिए इसकी महिमा गाते- गाते ऋषि, मुनि और शास्त्रकार थकते नहीं हैं।

गायत्री महामंत्र मानवीय भावनाओं और विचारणाओं को परिष्कृत एवं उदात्त बनाता है। ऐसे व्यक्तियों के संबंध में सुप्रसिद्ध मन:चिकित्सक एच० एफ० डनबार ने कहा है कि जिनका अंतराल और मन:संस्थान उदात्त भावनाओं और सद् विचारणाओं से लबालब भरा रहता है, प्रसन्न और प्रफुल्ल रहना जिनकी प्रकृति बन जाती है, उनका शरीर सदैव स्वस्थ रहता है। बाह्य उपचार एवं औषधियों से भी जिन रोगों का उपचार नहीं हो पाता, अंत:करण एवं मन- मस्तिष्क तथा प्राण को परिष्कृत करने वाले गायत्री महामंत्र का नियमित जप रोगों का शमन करके दीर्घकालिक एवं स्थायी स्वास्थ्य प्रदान करता है। यह एक तथ्य है कि मंत्रजप का लाभ मानसिक ओजस्विता, बौद्धिक प्रखरता एवं आत्मिक वर्चस के रूप में तो मिलता ही है, भौतिक स्वास्थ्य भी उससे सहज ही उपलब्ध हो जाता है।

वस्तुत: मंत्रों का बार- बार लयबद्ध रूप से उच्चारण करने से मानवीय मस्तिष्क के स्नायुतंत्र असाधारण रूप से प्रभावित होते हैं। मूर्धन्य वैज्ञानिकों ने इस संदर्भ में गहन अनुसंधान किए हैं और पाया है कि मंत्रजप से ध्यान की गहराई में मन को प्रविष्ट करने का अवसर मिलता है, जिसे ‘अल्फा स्टेट’ के रूप में ई० ई० जी० मशीन पर प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। यह वह अवस्था होती है, जिसका बाह्यरूप शांतचित्तता एवं आंतरिक प्रफुल्लता के रूप में दृष्टिगोचर होता है; जबकि आंतरिक रूप से अंत:करण में दिव्य गुणों का विकास होता है और अतींद्रिय क्षमताएँ जाग्रत होती हैं। मंत्रजप मानवीय चेतना को मथ डालने वाली संसार की सर्वाधिक शक्तिशाली प्रक्रिया है। उससे न केवल असाधारण मानसिक प्रसन्नता एवं शारीरिक क्षमता प्राप्त होती है, वरन समग्र स्वास्थ्य के साथ ही आत्मिक विभूतियाँ एवं भौतिक सिद्धियाँ भी हस्तगत होती हैं।

मनस्वी म्रियते कामं कार्पण्यं न तु गच्छति।
अपि निर्वाणमायाति नानलो याति शीतताम्॥

उच्च मन वाले मनस्वी मनुष्य मर भले ही जाएँ, परंतु वे कभी भी कृपणता तथा कायरता नहीं करते, जैसे अग्नि बुझ भले ही जाए, पर शीतल नहीं होती।

— सुभाषितरत्न भांडागार ८३/१९



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