पक्षियों में बहुत सी ऐसी बातें होती हैं, जो उन्हें अद्भुत बना देती हैं। ये प्रकृति के बहुमूल्य जीवंत उपहार हैं, जो इसकी सुंदरता पर चार चाँद लगाते हैं और अपनी संवेदना व अस्तित्व को अभिव्यक्त करते हैं। भारत में हर साल विदेशों से कई ऐसे प्रवासी परिंदे आते हैं, जो कँपकँपाती ठंढ में भी हजारों किलोमीटर की यात्रा पूरी करते हैं। इसका कारण यह है कि इनके देशों में जब चारों तरफ बरफ जम जाती है, तो इन्हें आहार मिलने में दिक्कत होती है; क्योंकि ये जिन कीड़ों, वनस्पतियों या जीवों को खाते हैं, वे बरफीले मौसम में समाप्त हो जाते हैं या फिर जमीन में छिपकर शीत निद्रा में चले जाते हैं। इसीलिए ये परिंदे आहार की खोज में भारत जैसे गरम देश में आते हैं और इनके आगमन के साथ ही यहाँ पर वर्षा ऋतु समाप्त होकर सरदी प्रारंभ हो जाती है, जिससे यहाँ पर नदी- जलाशय भरे होते हैं। बरफ नहीं जमती और हर जगह हरियाली होती है, जिसके बीच इन्हें पर्याप्त आहार मिल जाता है।
इन पक्षियों की खास विशेषता—इनके उड़ने की क्षमता होती है। कुछ पक्षी तेज उड़ान भरते हैं, तो कुछ बिना रुके लगातार लंबी उड़ान भर सकते हैं। ये दो अलग-अलग गुण हैं, जो हर पक्षी में नहीं होते, लेकिन स्वीडन का एक पक्षी ‘पेरेग्रीन फॉल्कॉन’ में ये दोनों ही विशेषताएँ होती हैं। आकार में छोटा सा दीखने वाला यह पक्षी कुछ ही हफ्तों में लगभग ८०,५०० किलोमीटर की उड़ान भर सकता है और जब इसे अपना आहार जुटाने के लिए शिकार पकड़ना होता है तो इसकी रफ्तार लगभग ३२२ किलोमीटर प्रति घंटे की हो जाती है।
सामान्य से दीखने वाले ये पक्षी शारीरिक रूप से अत्यधिक संवेदनशील, फुरतीले और तेज दिमाग के होते हैं। इसी कारण हर साल वे अपने उन्हीं निर्धारित स्थानों में आते हैं, जहाँ बीते वर्ष आकर वे रह चुके होते हैं। इतने दूर से आने के बावजूद ये भटकते नहीं हैं और अपने मनपसंद स्थानों में आकर रहने लगते हैं। अपनी यात्रा के आरंभ में ये सूर्य की दिशा व तारों की स्थिति की मदद लेते हैं। किस दिशा में जाना है, इसके लिए ये परिंदे पर्वत, नदी, वन, झील आदि की भी सहायता लेते हैं। किस वक्त इन्हें यात्रा शुरू करनी है, इसका भी इन्हें पता होता है। इसी कारण अपने देशों में बरफ जमने से पूर्व ये पर्याप्त वसा को अपने शरीर में जमा कर लेते हैं और फिर उड़ान भरते हैं। यह वसा ही इनका मुख्य ईंधन होता है, जिसे एकत्र कर लेने के बाद इनकी भारत यात्रा प्रारंभ होती है।
यात्रा करने वाले ज्यादातर छोटे पक्षी अपनी सुरक्षा की दृष्टि से रात के समय ही उड़ान भरते हैं। तूफान, बारिश, कड़ी धूप और परभक्षी जानवरों के आक्रमण के कारण कुछ परिंदे रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं तो कुछ अपनी विशेषताओं के कारण रास्ते में ही शिकार हो जाते हैं, जैसे—भरतपुर बर्ड सैंक्चुअरी की शोभा बढ़ाने वाले साइबेरियन सारस को अफगानिस्तान और पाकिस्तान में शिकारियों का खतरा अधिक रहता है। इसके अतिरिक्त ऊँची इमारतों, रेडियो एंटीना, हवाई जहाज आदि से भी ये पक्षी अपना बचाव करते हुए आते हैं, जो कि इनके लिए खतरे से खेलने के समान होता है, लेकिन फिर भी ये सभी बाधाओं का मुकाबला करते हुए आगे बढ़ते हैं।
अपने प्रवास के दौरान ये पक्षी उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर उड़ान भरते हैं और अपनी ऊर्जा की बचत के लिए अँगरेजी के ‘वी’ आकार में उड़ते हैं। भारत में सितंबर से मार्च तक इन प्रवासी परिंदों की संख्या सबसे अधिक होती है।
इन्हीं प्रवासी परिंदों में एक खूबसूरत पक्षी है—
‘ग्रेट रीड वार्ब्लर’। सात इंच के भूरे रंग के इस पक्षी को पोदेना भी कहा जाता है। इसके पेट का निचला हिस्सा नारंगीपन लिए हुए भूरा और गला सफेद होता है। यह पक्षी बहुत शोर मचाता है। इस प्रजाति के नर एवं मादा पक्षी, दोनों एक जैसे होते हैं, उन्हें पहचानना मुश्किल होता है। इनका घोंसला गहरा कटोरेनुमा होता है। मादा एक बार में तीन से चार अंडे देती है, जो हलके अंगूरी रंग के होते हैं। इनके अंडों पर स्लेटी, काली व बैंगनी चित्तियाँ व धब्बे होते हैं।
इसी से मिलता- जुलता एक और पक्षी है ‘ब्लिथ्स रीड वार्ब्लर’, जिसे छोटा पोदेना भी कहा जाता है। यह आकार में ग्रेट रीड वार्ब्लर से थोड़ा और छोटा होता है, लेकिन हमारे देश में यह उत्तर की ओर से हिमालय को लाँघकर भयंकर सरदी में पूरे देश में फैल जाता है। यह घने जंगलों को छोड़कर झाड़ियों वाले मैदानों में रहना अधिक पसंद करता है। झाड़ियों में इधर- उधर फुदककर कीड़े- पतंगों को पकड़ता रहता है, जो कि इसका मुख्य भोजन है। इसका घोंसला गहरे प्यालेनुमा होता है, जिसे यह नरम घास और डंठलों से बनाता है। इस प्रजाति की मादा पक्षी एक बार में प्राय: चार से पाँच अंडे देती है, जो नीलापन या हरापन लिए हुए होते हैं।
इसी तरह के और भी कई प्रवासी परिंदे भारत आते हैं, जो अपनी सुंदरता से नदियों, मैदानों की शोभा बढ़ाते हैं। जब ये पक्षी झुंड के झुंड में इकट्ठे होकर अपना भोजन तलाशते हैं, उड़ान भरते हैं या विहार करते हैं तो इनकी सुंदरता व शोभा देखते ही बनती है और ये मनुष्यों को यह सीख भी देते हैं कि मिल- जुलकर रहो और अपने परिवार का ध्यान रखो और जीवन की विषमताओं से बिना घबराए संघर्ष करते रहो।
महाभारत का युद्ध निश्चित हो गया था। दोनों पक्ष अपने- अपने सहायकों को एकत्र करने में लग गए थे। इसी क्रम में एक दिन दुर्योधन भगवान श्रीकृष्ण के पास युद्ध में सहायता माँगने हेतु पहुँचे। श्रीकृष्ण उस समय विश्राम कर रहे थे। दुर्योधन उनकी शय्या के सिरहाने बैठ गए। तभी अर्जुन भी इसी उद्देश्य से श्रीकृष्ण के पास पहुँचे। वह उन्हें सोया हुआ देखकर उनके चरणों के पास खड़े हो गए। जागने पर श्रीकृष्ण ने अपने सम्मुख अर्जुन को देखा और उनके आने का उद्देश्य पूछा। दुर्योधन तुरंत बोले—‘‘वासुदेव! पहले मैं आया हूँ।’’ तब जनार्दन ने पीछे देखकर दुर्योधन के आने का कारण पूछा। तब दुर्योधन ने और फिर अर्जुन, दोनों ने अपने आने का उद्देश्य श्रीकृष्ण को बताया। इस पर श्रीकृष्ण बोले—‘‘मैं इस युद्ध में शस्त्र नहीं उठाऊँगा। एक ओर मैं शस्त्रविहीन रहूँगा और दूसरी ओर मेरी सेना रहेगी।’’ अर्जुन ने नि:शस्त्र श्रीकृष्ण को और दुर्योधन ने सेना को चुना। दुर्योधन प्रसन्न होकर चले गए। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से पूछा—‘‘तुमने नि:शस्त्र मुझको क्यों चुना, सेना क्यों नहीं ली?’’ तब अर्जुन बोले—‘‘हमारी जय हो या न हो, हम आपको छोड़कर नहीं रह सकते।’’ वासुदेव ने हँसकर पूछा—‘‘मुझसे क्या कराओगे?’’ अर्जुन ने हँसते हुए कहा—‘‘आपको बनाऊँगा सारथी। मेरे रथ की रश्मि हाथ में लीजिए और मुझे निश्चिंत कर दीजिए।’’ जो अपने जीवन-रथ की डोर भगवान के हाथ में सौंप देते हैं, उनकी लौकिक तथा पारमाॢथक विजय निश्चित है।
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