अद्भुत स्मरणशक्ति संपन्न विभूतियाँ

Akhand Jyoti May 2013

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स्मृति अर्थात याद करना। अनुभव किए हुए विषयों का फिर से ज्ञान होना ही स्मृति है। यह स्मृति सभी में होती है, परंतु किसी- किसी में यह अद्भुत एवं आश्चर्यजनक ढंग से पाई जाती है। उनकी स्मरण क्षमता को देखकर हैरानी होती है। मन में यह प्रश्न कौंधता है कि क्या ऐसा संभव है कि किसी को इतनी सारी चीजें याद रह सकती हैं? ऐसे एक नहीं अनेकों उदाहरण हैं, जिनकी स्मरणशक्ति हैरतअंगेज करने वाली है। विज्ञान इस संदर्भ में अपना विश्लेषण एवं विवेचन प्रस्तुत करता है, परंतु यह नहीं बता पाता है कि आखिर ऐसा क्यों है ?

स्मरणशक्ति की मिसाल एवं जीवंत प्रतिमान के रूप में लवीनाश्री प्रतिष्ठित है। वह मदुरई के लक्ष्मी स्कूल में सातवीं कक्षा की विद्यार्थी है। उसकी स्मरणशक्ति अचंभे में डालने वाली है। उसकी स्मरणशक्ति फोटोग्राफी के समान है, अर्थात जिसे देख लिया, वह याद हो जाती है। तीन साल की उम्र में ही लवीनाश्री ने तमिल के तिरुक्कुराल नामक ग्रंथ की १३०० पंक्तियाँ सुनाकर लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में स्थान पाया। उसकी इस अद्भुत क्षमता से प्रभावित होकर उसका नाम ‘ग्लोबल वर्ल्ड रेकार्ड्स ’ एवं ‘एशिया बुक ऑफ रेकार्ड्स’ में भी शामिल किया गया। उसे इतना कुछ याद है कि यदि उसे लिखा जाए तो जाने कितने एनसाइक्लोपीडिया निर्मित हो जाएँ।

लवीनाश्री को आठ साल की उम्र में कंप्यूटर में माइक्रोसाफ्ट की प्रमाणपत्र परीक्षा में १००० में से ८४२ अंक मिले। खास बात तो यह थी कि उसने यह प्रमाण पत्र विश्व में सबसे कम उम्र में प्राप्त किया था। अपने आप में यह एक अनोखा विश्व कीर्तिमान है। जो आज तक नहीं हो सका, उसे लवीनाश्री ने करके दिखा दिया। अपने भाई कन्ना के कहने पर उसने एम० सी० पी० का कोर्स भी आठ साल की उम्र में पास करके एक और नया कीर्तिमान स्थापित किया। इसके पश्चात उसने लाइनेक्स के आर० एच० सी० ई० में भी एक विश्व कीॢतमान बनाया। अगस्त, २०१० में दस साल की उम्र में दुनिया में सबसे छोटी उम्र में उसने ‘रेड हैड सॢटफाइड इंजीनियर’ की उपाधि पाई।

स्मरण क्षमता की धनी अमेरिकन अभिनेत्री मारिलु हेनर अत्यंत विख्यात हैं। ६ अप्रैल, १९५२ में अमेरिका में पैदा हुई उस अभिनेत्री की स्मृति हैरान करने वाली है। वह हाइली सुपीरियर ऑटोबॉयोग्राफी मेमोरी (एच० एस० ए० एम०) के लिए जानी जाती हैं। वह बचपन से ही अपने प्रत्येक दिन की गतिविधियों के बारे में वैसा ही बता देती हैं, जैसा उस दिन घटित हुआ था। उसे यदि कहा जाए कि ७ अप्रैल, १९६३ को कौन- सा दिन था तथा उस दिन प्रात:काल से सायंकाल तक उसने क्या खाया, कौन- सा कपड़ा पहना था, कितने लोगों से मिलीं तथा उनसे क्या- क्या बातें हुईं, तो वह पूरा ब्योरा एवं विवरण प्रस्तुत कर देती हैं। अपनी इस प्रतिभा के कारण वह अमेरिका के प्रतिष्ठित रेडियो एवं टी० वी० चैनलों के कार्यक्रम में अपनी भागीदारी दे चुकी हैं।

मारिलु हैनर कहती हैं कि मुझे अपने जीवन की एक- एक बात पूरी तरह से याद है। इस कारण कोई यदि कुछ भूल जाता है तो मुझसे पूछने आता है और उसे मैं पूरी बात बता देती हूँ। इसलिए मुझे ‘फेमिली हिस्टोरियन’ अर्थात पारिवारिक इतिहासवेत्ता कहते हैं। इस संदर्भ में टाम वर्ग की एक किताब ‘रिमेम्बरिंग इवरीडे ऑफ योर लाइफ ’ बहुचॢचत हुई थी। इसमें जील प्राइस नाम की महिला का उल्लेख है, जो १९६५ में अमेरिका में पैदा हुई थी। चौदह वर्ष के पश्चात वह भी अपने जीवन के एक- एक दिन को याद रखे हुई है। गुजरे हुए दिनों के बारे में वह ऐसा बोलती- बताती है, जैसे अभी कुछ पल पहले की ही बात हो। मनोविज्ञानी इसे हाइपरथाइमेसिया कहते हैं, जिसमें अपने अतीत के बारे में पूरी बात याद रहती है। हाइपरथाइमेसिया के अब तक २० लोगों का ही पता चला है, इनकी स्मरणशक्ति अद्भुत होती है।

जील प्राइस कहती हैं— मुझे वह दिन याद है, जिस दिन से मुझे जीवन की सारी बातें याद होने लगीं। वह

दिन था मंगलवार ५ फरवरी, १९८०। पाँच फरवरी से मेरे जीवन में एक नया मोड़ आ गया और सब कुछ मानसपटल पर अंकित होकर सुस्पष्ट रूप से दीखने लगा। लुडविग अर्नोल्ड ने अपनी चर्चित किताब में इंडोनेशिया के जनक एवं प्रथम राष्ट्रपति सुकर्णो की चर्चा की है। सुकर्णो की स्मृति को फोटोग्राफिक मेमोरी कहा जाता था। वे एक बार जिसे देखते, उसे कभी भी नहीं भूलते थे। इस क्षमता के कारण वे कई भाषा सीख गए थे। ‘दि लेजेंड ऑफ वोन न्यूमेन’ के लेखक हेल्मोस पॉल ने उल्लेख किया है कि जॉन वोन न्यूमेन की स्मृति इतनी अधिक थी कि फोनबुक के कॉलम को देखकर उसमें विद्यमान सभी नंबरों को याद कर लेते थे। ऐसा नहीं था कि वह इन नंबरों को देखकर याद करते थे, बल्कि पलक झपकने में जो देख लेते थे, उसी में यह सब याद हो जाता था। उनके मित्र हर्मन गोल्डस्टीन कहते थे कि एक बार वे किसी सेमिनार में गए। सेमिनार से पूर्व उन्होंने एक किताब को यों ही पलटते हुए देखा था। जब उन्हें संबंधित संदर्भ के बारे में कहना था, तब उन्होंने उस किताब की सभी चीजों को अक्षरशः प्रस्तुत कर दिया। सभी लोग उनकी इस क्षमता से अभिभूत थे।

फर्डिनेंड मार्कोस की स्मरणशक्ति भी लाजवाब थी। वे फिलीपींस के भूतपूर्व राष्ट्रपति थे। वे कठिन से कठिन तथ्यों को एक क्षण में याद कर लेते थे। उन्हें फिलीपींस के संविधान के सभी अनुच्छेद याद थे और उन्हें वे आगे एवं पीछे, दोनों ओर से बता सकते थे। सन् १९३९ में उन्होंने बार परीक्षा ९८.०१ प्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण की थी। कई लोगों ने इस पर विवाद किया कि ऐसा संभव ही नहीं है; क्योंकि इससे पहले अधिकतम प्राप्तांक ७१ प्रतिशत तक पहुँचा था, फिर ऐसा कैसे संभव हो सकता है, तब उनकी फिर से परीक्षा ली गई, जिसमें सबकी उपस्थिति में उन्होंने ९९ प्रतिशत अंक प्राप्त किए। सभी उनकी याददाश्त से अभिभूत थे।

तुर्की के सॅर्दी नर्सी को अनेक किताबें मुँहजबानी याद थीं। एक बार उनकी परीक्षा लेने के लिए बुसर के अल हरीर नामक ग्रंथ को दिया गया और कहा गया कि एक पेज को पढ़ें, फिर उसे बिना देखे बताएँ। सॅर्दी की याददाश्त अद्भुत थी। वह एक पेज पढ़ते, फिर उसे उसी रूप में दोहरा देते थे। दोहराते समय उनके द्वारा किसी प्रकार की कोई गलती नहीं होती थी।

इस  प्रकार स्मरणशक्ति एवं क्षमता, अपार एवं असीम होती है, केवल उसे संयम एवं अभ्यास के द्वारा जाग्रत करने भर की देरी होती है। जिनकी यह क्षमता जन्मजात होती है, वे तो विलक्षण होते हैं, परंतु विशेष अभ्यास एवं लगन के द्वारा यह विलक्षणता प्राप्त भी की जा सकती है।      

सामर्थ्य बढ़ने के साथ ही मनुष्य के दायित्व भी बढ़ते हैं। ज्ञानी पुरुष बढ़ती सामर्थ्य का उपयोग पीड़ितों के कष्ट हरने एवं भटकी मानवता को दिशा दिखाने में करते हैं और अज्ञानी, उसी सामर्थ्य का उपयोग अहंकार के पोषण और दूसरों का अपमान करने के लिए करते हैं। जय और विजय भगवान विष्णु के द्वारपाल थे। उन्हें अपने पद का अभिमान हो गया। एक दिन उसी अहंकार के कारण उन्होंने सनक, सनंदन, सनातन और सनत्कुमार जैसे ऋषियों का अपमान कर दिया। परिणामस्वरूप उन्हें असुर होने का शाप मिला और तीन कल्पों में हिरण्याक्ष-हिरण्यकशिपु, रावण-कुंभकरण एवं शिशुपाल-दुर्योधन के रूप में जन्म लेना पड़ा। पद जितना बड़ा होता है, सामर्थ्य उतनी ही ज्यादा और दायित्व उतने ही गंभीर। ऐसा ही अपमान किसी साधारण द्वारपाल ने किया होता तो इतने परिमाण में दंड न चुकाना पड़ता। सामर्थ्य का गरिमापूर्ण एवं न्यायसंगत निर्वाह ही श्रेष्ठ मार्ग है।



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