अमृत वचन जीवन के सिद्ध सूत्र

अपने व्यक्तित्व को बदलिये

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          अपने आपको बदल लेना, आपके हाथ की बात है। परिस्थितियों को बदलना आपके हाथ की बात नहीं, लोगों को अपनी मरजी से बदलना आपके हाथ की बात नहीं। जो आपके हाथ की बात नहीं है, उसके लिये आप प्रयत्न करेंगे तो बेकार हैरान होते रहेंगे। आपके घर वालों को आपके आज्ञानुवर्ती बनना चाहिए, यह मत सोचिए। आप यह देखिए आप उन घर वालों के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन कर सकते हैं कि नहीं, बस इतना ही काफी है और आगे बढ़िए मत। परिस्थितियाँ आपके अनुकूल बन जायेंगी, मत सोचिए। परिस्थितियाँ कहाँ बन पाती हैं, आदमी की स्थिति के अनुरूप। 

          श्रीकृष्ण भगवान् सारे जीवन भर पुरुषार्थ तो करते रहे, पर परिस्थितियाँ कहाँ बनीं उनके साथ में, आप बताइये? गृह- कलह हुआ और सारे परिवार के लोग मारे गये, अंततः उनको अपना जो राज- पाट बड़ी मेहनत से जमाया था, सुदामा जी के हवाले करना पड़ा, तो बताइए आपकी परिस्थितियाँ अनुकूल हो सकती हैं? भगवान् की परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं हुईं तो अगर आप ये सपना देखते हैं कि हमारी मनोकामना पूरी हो जायेगी और हमारी इच्छानुकूल परिस्थितियाँ बदल जायेंगी, ऐसा आप सोचते हैं, तो आपको नहीं विचार करना चाहिए। 

          यह दुनिया आपके लिये बनी हुई नहीं है। आपकी इच्छा पूर्ति के लिये पात्रता की और पूर्व संचय- कृत्यों की जरूरत है, वरना ऐसा आप क्यों सोचते हैं कि सब आपकी इच्छानुकूल हो जायेगा। आप स्वयं को बदल दीजिए। क्या बदल दें? बूढ़े से जवान हो जायें? नहीं, ये आपके हाथ की बात नहीं। ये शरीर प्रकृति का बनाया हुआ है और प्रकृति उसकी मालिक है। वो जब चाहती है, पैदा करती है और जब चाहती है, समेट लेती है। आप प्रकृति के मालिक हैं क्या? बुढ़ापे को जवानी में बदल सकते हैं क्या? न, मौत को जिन्दगी में बदल सकते हैं क्या, न। आदमी की सीमा है और जिस सीमा से आप बँधे हुए हैं, आप उसी सीमा की बात कीजिए, उसी सीमा का विचार कीजिए तो पूरा होना भी सम्भव है। असीम बातों को सोचेंगे, असंभव बातों की कल्पनाएँ- मान्यताएँ बनाकर के बैठेंगे तो सिवाय हैरानी के आपके पल्ले पड़ने वाला नहीं है। आप हैरानी में न पड़ें, जो उचित है, उसी को विचार करें, जो सम्भव है, उसी में हाथ डालें। आपके हाथों में ये सम्भव है कि अपने मन को बदल दें। अपने ढर्रे को बदल दें, अपने रवैयों को बदल दें, अपने सोचने के तरीके को बदल दें, अपने स्वभाव को बदल दें, यह बदल देना आपके लिये बिलकुल सम्भव है। 

          आप यहाँ से जायें तो आप एक ऐसी जिन्दगी लेकर जायें, जो सब किसी को बदली हुई मालूम पड़े। आकृति तो नहीं बदली जा सकती आपकी, पर प्रकृति बदल जायेगी। आकृति कैसे बदली जा सकती है? आकृति नहीं बदली जा सकती है। आपके शरीर की बनावट नहीं बदली जा सकती। आपका स्वभाव बदला जा सकता है। 

          अब तक तो आपकी जिन्दगी में दो काम शामिल रहे हैं- एक जिन्दगी के लिये काम शामिल रहा है, उसका नाम है- पेट भरना। दूसरे शब्दों में उसे लोभ कहते हैं। दूसरा काम आपके जिम्मे रहा है- प्रजनन। शादी कर लेना, ढेरों के ढेरों बच्चे पैदा करना, ढेरों के ढेरों बच्चों के बच्चे के वजन को कंधे पे उठाना। उस भारी वजन को उठाने के लिये उचित और अनुचित काम करते रहना। दिन और रात चिंता में डूबे रहना, पेट और प्रजनन के लिये। यही तो काम रहा है और बताइये, कौन- सा काम रहा। इन दो कामों के अलावा और आपने क्या काम कर दिया? चलिये, तीसरा एक और काम भी किया होगा आपने। अपने अहंकार की पूर्ति के लिये, ठाठ- बाट बनाने के लिये, लोगों की आँखों में चकाचौंध पैदा करने के लिये, हो सकता है आपने कुछ ऐसे काम किये हों, जिससे आपको बड़प्पन का आभास होता हो। बड़प्पन का आभास होता है। है नहीं बड़प्पन। दूसरों की आँखों में चकाचौंध पैदा करके आप किस तरीके से बड़े बन पायेंगे। बड़ा बनना तो अपने व्यक्तित्व की कीमत और व्यक्तित्व के मूल्य बढ़ा देने के ऊपर है। आँखों में चमक तो कोई भी पैदा कर सकते हैं। आँखों में चमक से क्या है? आँखों में चमक तो तस्वीरें भी पैदा कर लेती हैं, मूर्तियाँ भी पैदा कर लेती हैं। बीमार आदमी को सजाकर बिठा दिया जाये तो वो भी चमक पैदा कर लेता है। चमक पैदा करना भी कुछ काम है क्या? उसमें अपने सिवाय अहंकार की पूर्ति के दूसरा कुछ है ही नहीं। हम बड़े आदमी हैं, बड़े आदमी हैं। अरे, आप क्या बड़े आदमी हैं? मन आपका बड़ा नहीं है, व्यक्तित्व आपका बड़ा नहीं है, संस्कार आपके बड़े नहीं हैं तो बड़प्पन का स्थायित्व कैसे रह पायेगा? सारी जिन्दगी आपकी इन कामों में खतम हो गई है। 

         अब आप कृपा कीजिए। अपनी जिन्दगी में कुछ नये काम शामिल करिये। हम अपने स्वभाव को बदल दें, हम अपने चिंतन को बदल दें, हम अपने आचरण को बदल दें, अपने कुटुम्ब के प्रति जो रवैया है, जो आपके सोचने का तरीका है, उसको आप आसानी से बदल सकते हैं और आपको बदल ही देना चाहिए। अपने समाज को प्रगतिशील बनाने के लिये, उन्नतिशील बनाने के लिये कुछ न कुछ योगदान देना। ऐसा निर्धारण अगर करके आप ले जायें, ऐसा कार्यक्रम यहाँ से बनाकर ले जायें, ऐसी तैयारी में जाते ही आप जुट जायें तो मैं ये कहूँगा कि आपका भविष्य इतना शानदार होगा कि आप देखकर के स्वयं दंग रह जायेंगे और जो भी आपके सम्पर्क में आयेंगे, वे सब ये कहते रहेंगे कि इस आदमी का कायाकल्प हो गया। आप ऐसा कर पायें तो सार्थक हो जाये, आपका ये शिविर। 
आज की बात समाप्त। 

॥ॐ शान्तिः॥ 

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