अमृत वचन जीवन के सिद्ध सूत्र

मेरा जीवन अखण्ड दीपक

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     दीपक मैंने जलाये, अखण्ड दीपक मैंने जलाया और अखण्ड दीपक के सामने बैठा रहा, गायत्री मंत्र का जप करता रहा और भावविभोर साँप जैसे लहराते हैं, ऐसे ही मैं लहराता रहा और मैं अपने आपसे पूछता रहा कि ‘‘दीपक के तरीके से तू जल सकता है, दूसरों को रोशनी देने के लिये’’। छदाम का दीपक, कानी कौड़ी का तेल, एक कानी कौड़ी का इसमें रूई, इन सबको मिलाकर के अगर ये नन्हा सा दीपक दूसरों को रास्ता दिखा सकता है, दूसरों को रोशनी दे सकता है, अपने आपको जला सकता है, दूसरों को रोशनी देने के लिये। ‘‘इन्सान! क्या तू अपने जीवन को दीपक जैसा नहीं बना सकता?’’ अखण्ड दीपक मेरा जलता रहा। केवल मैं घी जलाने वाले लोगों में से नहीं हूँ। मैं तेल जलाने वाले लोगों में से नहीं हूँ। मैं चीजों को बरबाद करने वाले लोगों में से नहीं हूँ। मैं उन लोगों में से हूँ जो कर्मकाण्डों के माध्यम से अपनी भावनाओं का परिष्कार करने पर यकीन करते हैं और अपनी भावनाओं को परिष्कृत करता रहा। दीपक के तरीके से मेरा जीवन। जलता हुआ मेरा जीवन, दूसरों को रोशनी देता हुआ जीवन, लाखों आदमियों को रास्ता बताता हुआ जीवन, लाखों आदमियों के लिये द्वार खोलता हुआ जीवन। मेरा जीवन है, दीपक जैसा। जला हूँ मैं। शुरू से लेकर के आखिर तक मैं जलता रहा।

     15 वर्ष की उम्र से मुझे जलाया गया। 60 साल तक मैं सिर्फ जलना जानता हूँ। दूसरा कुछ नहीं जानता और अगले वाले दिन जो मुझे हिमालय पर जाकर के व्यतीत करने हैं। हिमालय पर क्या होता है? सिनेमा होता है क्या, नहीं बेटा। हिमालय पे क्या होता है, मिठाइयाँ बिकती हैं क्या? नहीं। हिमालय पे कचौड़ियाँ बिकती हैं क्या? क्या होता है हिमालय पे। रात भर जंगली जानवर चिल्लाते हैं और रात भर बड़े-बड़े अजगर निकलते हैं। पेड़ों के नीचे साँय-साँय होती रहती है और ठण्ड जब पड़ती है, तो आदमी का खून जम जाता है और आदमी को चलना-फिरना मुश्किल हो जाता है। ऐसे कष्टसाध्य जो कि जेलखानों से भी लाख गुनी ज्यादा मुसीबत की जगह है। मैं जा रहा हूँ। किसलिए जा रहा हूँ, जलने के लिये? मुझे जलना है, इसीलिये जलना है कि लोगों के अन्दर वो आग और वो गरमी पैदा कर सकूँ, जो लोगों के अन्दर आग और गरमी सो गयी है।

     आदमी का ईमान सो गया, आदमी की आत्मा सो गई, आदमी का दृष्टिकोण सो गया, आदमी का आदर्श सो गया। आदमी सिर्फ हैवान के तरीके से जिन्दा है-पेट पालने के लिये और बच्चे पैदा करने के लिये। इसके अन्दर आत्मा सो गई। आत्मा सो गई, मैं जलने के लिये जा रहा हूँ। गरमी पैदा कर रहा हूँ। मुर्दे को या फिर जल जाना चाहिए या जीवित हो जाना चाहिए। अपनी आग पैदा करने के लिये जा रहा हूँ। अपने आपको मैं रगड़ने जा रहा हूँ और रगड़ करके फिर मैं चाहता हूँ आग पैदा करूँ, रोशनी पैदा करूँ, गरमी पैदा करूँ, रफ्तार पैदा करूँ, दृष्टिकोण पैदा करूँ और आत्मा का बोध और आत्मा का ज्ञान, जिसको मैंने पहले दिन आपको प्रकाश के रूप में उल्लेख किया था कि मेरे गुरु ने मुझे प्रकाश दिया, ऊँचे दृष्टिकोण के रूप में। मैं उसके लिये जा रहा हूँ फिर, मैं अब चला। लेकिन, मैं जहाँ कहीं भी जाऊँगा, आपको यकीन दिलाता हूँ, आपको मैं दिखूँगा नहीं, पर आप मुझे दिखाई पक्का पड़ते रहेंगे। मेरी आँख से आप दूर नहीं रह सकते।

     मेरे पाँच शरीर हैं, आप जानते नहीं क्या? पर पचासों लोग जानते हैं, एक जगह मैं एक काम करता रहता हूँ, दूसरी जगह पर मैं दूसरा काम करता रहता हूँ। एक समय में, मैं बराबर लेख लिखता रहता हूँ और बराबर मेरी पुस्तकें बन छपती रहती हैं। एक शरीर से आप यहीं बैठा हुआ मुझे देखते हैं न। बराबर यहाँ सबेरे से आता हूँ, शाम तक बैठा रहता हूँ। रात को फिर पूजा करता हूँ, उठ जाता हूँ, फिर सायंकाल को पूजा करता हूँ, आप खाली देखते हैं मुझे। कौन से वक्त में मैं लिखा करता हूँ, आपको मालूम है क्या? मेरे पास पूरा समय है, आठ घण्टे का। मैं आठ घण्टे लिखता हूँ बराबर। आठ घण्टे मेरे गुरु को दिये जाते हैं, पत्रिकाएँ लिखी जाती हैं, दूसरी चीजें लिखी जाती हैं, शास्त्र लिखे जाते हैं, पूरा आठ घण्टे मैं लिखता हूँ, पर आठ घण्टे का वक्त, आप नहीं जानते मैं कहाँ से वक्त लाता हूँ। एक आदमी नहीं हूँ, मैं बहुत आदमी हूँ। एक घोंसले के अन्दर हम पाँच आदमी रहते हैं, पाँच कोष बताये जाते हैं, लेकिन पाँच कोष इस कलेवर के अन्दर रहते हैं और हम पाँच आदमी का काम करते हैं।

    मैं आप लोगों की देख−भाल रखूँगा। मेरा प्यार आपके ऊपर बरसता रहेगा। मैं आपको विदाई आज दे रहा हूँ। लेकिन ये विदाई अन्तिम विदाई नहीं है। ये विदाई शारीरिक दृष्टि से विदाई हो, लेकिन आत्मा की दृष्टि से ये विदाई नहीं हो सकती। आत्माएँ मरा नहीं करतीं, आत्माओं की बनी हुई मुहब्बत दूर नहीं हो सकती। आप लोगों को मैंने मुद्दतों से अपनी मोहब्बत के जाल में जकड़ के रखा था और मैं उस समय तक जकड़ के रखूँगा, जब तक हमारा और आपका कोई न कोई एक फैसला नहीं हो जाता। या तो मुझे ही नरक में जाना पड़ेगा या तो आपको भी स्वर्ग में चलना पड़ेगा। या तो कुत्ते के साथ युधिष्ठिर को भी जमीन पर रहना पड़ेगा या तो युधिष्ठिर के साथ कुत्ते को भी जाना पड़ेगा। कुत्ता और युधिष्ठिर की उपमा तो बहुत बड़ी हो गई। लेकिन मैं आपको उतनी बड़ी उपमा का अधिकारी तो नहीं मानता। लेकिन ये मानता हूँ कि मेरे साथ आप न जाने कितने जन्मों के साथ जुड़े हुए थे और उसी जुड़े हुए की वजह से मैंने खींच करके आपको बुलाया। अपना सारा मोहब्बत-प्यार आपके ऊपर उड़ेलने के लिये, आपके ऊपर सारी मुहब्बत उड़ेलने के लिये मैंने खींच करके आपको बुलाया है। 

आज की बात समाप्त।
।।ॐ शान्तिः।।
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