दाम्पत्य जीवन का प्रयोजन एवं सुनियोजन

प्रजनन प्रक्रिया में जो आवेश उद्वेग है, नर- नारी के बीच जो आकर्षण है, वह प्रकृति ने इस प्रयोजन के लिए सँजोया है कि उस आधार पर दो व्यक्तित्वों के मिलन की भावनात्मक एवं रासायनिक क्रिया इस जगती के लिए कुछ उपयुक्त अनुदान प्रस्तुत करती रहे।

दो वस्तुओं के मिश्रण से तीसरी वस्तु बनने की रासायनिक प्रक्रिया से हर कोई परिचित है। औषधि शास्त्री जानते है कि यदि अमुक वनस्पतियों, धातुओं अथवा क्षारों का अलग- अलग सेवन किया जाय तो उसमें सामान्य परिणाम ही रहेगा, पर यदि उन्हें मिला दिया जाय तो इस मिश्रण से एक नई वस्तु, नई प्रक्रिया उत्पन्न होगी। रसायन शास्त्र इस रीति- नीति को खोजता रहता है और उपलब्ध ज्ञान के आधार पर नित नये आविष्कार करता रहता है।

यही मिश्रण सृष्टि निर्माण क्रम में चलता रहने से रंग- बिरंगे और विविध प्रतिभाओं से सुसम्पन्न फूल और तरह- तरह के स्वाद वाले फल उत्पन्न होते हैं। नर- नारी के बीच ऐसे अद्भुत घुलनशील तत्व है कि यदि वे गहन स्तर तक परस्पर मिल सकें, तो एक नया व्यक्तित्व उत्पन्न होता है और उसके प्रभाव से दोनों अपना पुराना स्तर खोकर नये स्तर के बन जाते हैं। कुमारी अवस्था में लड़की जिस स्तर की थी उसमें विवाह के बाद काया कल्प जैसा परिवर्तन होता है और किशोर लड़के विवाह से पूर्व जिस प्रकृति के थे विवाह बाद वे इतने बदल जाते हैं कि केवल आकृति ही पुरानी रह जाती है, प्रकृति में जमीन- आसमान जैसा अन्तर उपस्थित होता है। पर यह होगा तभी जब वे दोनों भाव गह्वर में गहराई तक उतरकर एक दूसरे में घुल जाने की स्थिति प्राप्त कर लें। शारीरिक संयोग बहुत उथला है। वह नाई की दुकान पर हजामत बनवा लेने या तेल मालिश करा लेने, दाद खुजाने जैसी नगण्य और तुच्छ क्रिया है, वह भी विवाह का एक प्रयोजन है, पर उतने भर से व्यक्तित्वों का मिलन या घुलन पूरा नहीं होता, उसके लिए ममता, आत्मीयता, भावुकता, वफादारी और आत्म- समर्पण के भाव गहन स्तर पर उतर कर एकत्व में परिणत होने चाहिए।

व्यक्तित्व के घुलन का अर्थ है भावनात्मक इतनी सघनता, जिसमें शरीरों की भिन्नता का आभास ही नष्ट हो जाय। एक प्राण दो शरीर का आभास होने लगे। इतनी सघनता के प्रतिफल दो होते हैं, एक प्रखर, एक अभिनव व्यक्तित्व का ऐसा नव निर्माण, जिसकी आभा से दोनों शरीर समान रूप से जगमगा उठें। दूसरा प्रतिफल होता है सन्तान की ऐसी उपलब्धि भी जो अगणित प्रतिभाओं और विशेषताओं से सम्पन्न हो। विवाह का मूल प्रयोजन यही है। नर- नारी के बीच स्वाभाविक आकर्षण का कारण यही है। रति क्रिया में जिस आनन्द, आवेश का समावेश है उसका कारण यही है। प्रकृति चाहती है उसकी दुनियाँ में जीवधारियों का वंश ही न बना रहे वरन् उनका स्तर भी विकसित होता रहे। भावनात्मक सघनता का सम्मिश्रण व्यक्तित्वों का स्तर विकसित करता है और पीढ़ियों में विशेषता भरता है। यही प्रतिक्रिया जब शारीरिक सघनता में परिणित होती है तो उच्चकोटि के गुणों से सम्पन्न सन्तति का जन्म होता है।

जहाँ पति पत्नी की प्रकृति मिल जाती है और दोनों में परस्पर सघन सहयोग होता है, वहाँ इच्छित सन्तान का होना सुनिश्चित है।

कोर्ट फील्ड (इंग्लैण्ड) के कर्नल जान फ्रान्सिवान की पत्नी लुईस एलिजावेथ अत्यन्त धार्मिक प्रकृति की विदुषी महिला थी। पति भी उनके ठीक उसी प्रकृति के थे। दोनों दूध- पानी की तरह एक थे। सन्तान के सम्बन्ध में दोनों की इच्छायें भी एक सी थी। पति को जब अवसर मिलता, गिरजा जाते पर पत्नी तो बहुत ही भक्ति भाव सम्पन्न थी, वे घण्टों उपासना करती थी और यही प्रार्थना करती थी कि उनकी सभी संतानें धर्म की सेवा में ही अपने जीवन का उत्सर्ग करें। उनकी यह मनोकामना पूर्णतः सफलीभूत हुई। लुईस के ८ लड़के और ५ लड़कियाँ थी। वे सभी धर्मसेवी बने, अविवाहित रहे और सारा जीवन ईसाई मिशन के लिए दान कर दिया। पादरी और ननों के रूप में पवित्र जीवन बिताने वाले पवित्र माता के इस पवित्र बच्चों की चर्चा पाश्चात्य जगत में शताब्दियों तक चर्चा का विषय रही है।

दो व्यक्तियों के मिलन की जादूगरी रासायनिक प्रक्रिया, भावनात्मक प्रक्रिया उत्पन्न करने की असाधारण उपलब्धि के लिए पति- पत्नी के बीच सघन प्यार और विश्वास होना चाहिए। उसमें आशंकाओं और तुनक मिज़ाजी के लिए कोई स्थान नहीं। जब साथी के गुण ही गुण दिखाई पड़े और भूल, अपेक्षा अथवा विनोद, उपहास की वस्तु बन जाय उसके कारण मनोमालिन्य उत्पन्न होने की सम्भावना ही न हो, तब समझना चाहिए कि सच्चे मन से समर्पण या घुलने की बात पूरी हुई।

जर्मनी का प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ लेखक और कवि कार्ल्स हम्बोर अपनी पत्नी को अत्यधिक प्यार करता था। पत्नी का नाम था- कैटोलिन वान। पत्नी यों गुणवती और सुयोग्य भी थी, पर पति के प्यार ने उसकी दृष्टि में उसे मानवी नहीं देवी बना लिया था। वह उसके सम्बन्ध में प्रायः प्रतिदिन १०० पंक्तियों की कविता लिखता था। ३८ वर्ष की उम्र में उसने यह विवाह किया था। पत्नी अधिक दिन जीवित न रही। पर उसने दूसरा विवाह नहीं किया और सौ पंक्तियों की कविता का क्रम उसने विदुर होने के बाद भी जारी रखा। जब तक वह इस श्रद्धांजलि को उसकी कब्र पर चढ़ा नहीं देता था तब तक वह सोता नहीं था।

यदि इतनी सघनता न हो तो दोनों में से जिसका व्यक्तित्व अधिक प्रतिभा सम्पन्न और जबरदस्त होता है उसी की छाप सन्तान पर पड़ती है। इसलिए सन्तान का स्तर उसी दिशा मे विकसित होता है। हलके स्तर का सरल व्यक्तित्व अपनी कोमलता के कारण दब जाता है। ऐसे गृहस्थ तो चलता रह सकता है पर एक पक्षीय प्रयत्न एक हाथ से ताली बजाने की तरह अपूर्ण ही रहता है।

फ्रांस के एक पादरी यह सिद्ध करना चाहते थे कि यदि एक पक्ष सज्जन है तो दूसरे को अपने में ढाल सकता है। यह बात तभी हो सकती है जब दूसरा पक्ष जैसा भी कुछ है अपना पूर्ण समर्पण कर दे। यदि दोनों व्यक्ति अपनी अहंता अलग- अलग बनाये रहें तो उनमें जो जबरदस्त होगा उसी की विजय होगी। पर सज्जन पादरी एकांगी बात सोचते थे, वे पुरुष की सज्जनता के महत्त्व को ही सब कुछ मानते थे। उनने अपनी बात यही सिद्ध करने के लिए विपरीत गुण, स्वभाव वाली पत्नी से विवाह करके सुयोग्य सन्तान की बात सिद्ध करने का प्रयत्न किया, पर वे सफल न हो सके।

क्लारमान्ट (फ्रांस) के पादरी क्रेटीन यह दावा करते थे कि वंश परम्परा से अपराधों का कोई सम्बन्ध नहीं है। मनुष्य का भला या बुरा होना शिक्षा, संस्कार तथा वातावरण पर निर्भर है। वंशानुक्रम की अद्भुत विशेषताओं पर बल देने वाले वैज्ञानिकों को चुनौती देने के लिए उन्होंने गृहस्थ जीवन स्वीकार किया और एक अपराधी वंश की लड़की से विवाह कर लिया। उसका बाप पड़ोसी के घर में ईर्ष्यावश आग लगाने के अपराध में जेल काट चुका था। विवाह के बाद संतानें भी हुई। उनकी शिक्षा- दीक्षा पर भी यथा सम्भव ध्यान दिया गया। किन्तु वंश परम्परा का प्रभाव सन्तान पर समयानुसार उभरता ही गया और वे कई पीढ़ियों तक आगे भी अपराध करते रहे।


कइयों का वंश परम्परा की रक्षा और रक्त शुद्धि पर बहुत ध्यान रहा है। उनका कहना यह रहा है कि अपना रक्त अपने रक्त में घुलकर ही शुद्ध रह सकता है। दूसरी जाति या स्वभाव के लोगों के साथ रक्त का सम्मिश्रण नहीं होना चाहिए। इससे रक्त दूषित होता है और अवांछनीय सन्तान उत्पन्न होती है। अभी भी रोटी बेटी को वंश कुल की मर्यादाओं में सीमित रखने की बात यही सोचकर की जाती है। इस सम्बन्ध में मिश्र में तो अति ही बरती गई। वहाँ के शासक सोचते थे कि राजवंश का रक्त अत्यन्त पवित्र है। उसे दूसरे रक्त के साथ घुलकर अपनी विशेषता नहीं खोनी चाहिए, इसलिए विवाह शादी अपने घर- परिवार में नहीं, सगे बहिन- भाइयों में ही सीमित रखी जाय। यह प्रयोग किया तो बहुत दिन गया पर सफल नहीं हुआ।

मिश्र के टाल्मी राजवंश में प्राचीनकाल में भाई- बहिन की शादी का प्रचलन था। वह वंश अपने को दैवी शक्तियों से उत्पन्न मानता था और दूसरे लोगों के साधारण रक्त के साथ अपना रक्त नहीं मिलाना चाहता था। रक्त शुद्धि की दृष्टि से उन लोगों ने यह प्रथा चलाई और बहुत समय तक चलती भी रही। इतिहासकारों के अनुसार यह क्रम तेरह पीढ़ियों तक चला और तब बन्द हुआ जबकि एक बार सब लड़के ही लड़के पैदा हो गये और बाहरी लड़की लिए बिना वंश डूबने का ही खतरा पैदा हो गया।

मिश्र के दूसरे उच्च समझे जाने वाले घरानों में भी राजवंश की देखा- देखी यह प्रथा चल पड़ी थी। मिश्र की अति सुन्दर साम्राज्ञी क्लियोपात्रा अपने रूप लावण्य के लिए प्रख्यात थी उसने अपने विनोद कौतुक की तृप्ति के लिए एक- एक करके दोनों सगे भाइयों से विवाह किया और पसंदगी से उतर जाने पर दोनों को मरवा भी डाला।

टेक्सास के गवर्नर हेनरी स्मिथ ने एक- एक करके अपनी तीनों सगी बहिनों से खुद ही विवाह किया था। लोग जब उसकी निन्दा करते थे तो वह यही कहता नर- नारी की घनिष्ठता को आवश्यकतानुसार प्रणय से बदलना प्रकृति के कानून में दोषयुक्त नहीं, मनुष्य समाज ने भले ही उस पर बन्धन लगाये हों।

मूल प्रश्न रक्त शुद्धि का नहीं व्यक्तियों की घुलनशीलता का है। इसके लिए एक पक्ष का प्रयास सफल नहीं हो सकता है, इसमें दोनों को ही पिघलना पड़ता है और यह प्रयत्न करना पड़ता है कि घनिष्ठ एकता को हर कीमत पर बनाये रहा जाय। यदि ऐसा न हुआ तो फिर जो पक्ष अधिक सबल होगा दूसरे पर छा जाने का प्रयत्न करेगा। यहाँ समर्थता का अर्थ शारीरिक या बौद्धिकता, सबलता से नहीं वरन् भावनात्मक प्रचण्डता से है। यदि किसी में घृणा या प्रतिहिंसा की भावना तीव्र है तो उसी की तीव्रता रहेगी।

बर्लिन (जर्मनी) की एक महिला इमगार्डब्रन्स ने पाँच बार विवाह किये। उनमें से प्रत्येक को क्रमशः आत्महत्या करके ही अपने जीवन का अन्त करना पड़ा। उसकी भावनात्मक प्रचण्डता इतनी तीव्र थी कि पति उसके शिकार होकर अपना सन्तुलन खोते चले गये।

कई बार कई व्यक्तियों को यह सनक सवार रही है कि चूँकि पुरुष पक्ष बहुत स्वस्थ, सुयोग्य एवं समर्थ है इसलिए उसे बहुत विवाह करने चाहिए और बहुत बच्चे पैदा करने चाहिए, ताकि वे उसी के जैसे गुण वाले हों, और उनका नाम या वंश अधिक ख्याति प्राप्त करे। यह प्रयोग अनेक जगह हुए हैं, पर उससे संख्या मात्र बढ़ी। पति- पत्नी में सघन विश्वास का वातावरण न बना, प्रेम और सौहार्द्र भी पैदा न हुआ, फलस्वरूप सन्तान संख्या वृद्धि की बात तो सहज थी सो पूरी हो गई, पर पिता के गुण ही सब सन्तान में होंगे यह प्रयोजन पूरा न हुआ। घृणा और अविश्वास के वातावरण में चलने वाले दाम्पत्य जीवन किसी प्रकार गाड़ी धकेलते तो रहते हैं, पर उनको जो शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, सामाजिक एवं वंश परम्परागत लाभ मिलना चाहिए वह बिल्कुल भी नहीं मिलता। 

मोरक्को का एक नगर है। यहाँ के सभी निवासी अपने को राज कुमार कहते हैं। इस नगर का संस्थापक था मुलाई इस्माइल नामक एक मुसलमान राजा। उसने कितने ही युद्ध किये और गुलाम पकड़े। पकड़े गये पुरुषों को उसने शहर की इमारतें बनाने में लगाया और स्त्रियों को बच्चे उत्पन्न करने में लगाया। इन दो शौकों को पूरा करने के लिए ही वह युद्ध लड़ता और आक्रमण करता था। उसकी मृत्यु के समय तक जीवित और समर्थ बच्चों की संख्या ८८८ हो गई थी और गुलाम इतना बड़ा नगर बना चुके थे जिसमें इन सब बच्चों के स्वतन्त्र परिवार रह सकें इस कार्य में उसे बीस वर्ष लगे। उसकी छोड़ी हुई इन ८८८ सन्तानों की वंशवृद्धि से ही पूरा- पूरा नगर बसा है, अस्तु वे सभी राजा के वंशज होने के कारण अपने को राजकुमार या राजकुमारी कहते है।

हाँ कई पत्नियाँ होते हुए भी उनके बीच स्नेह, सौहार्द्र विश्वास और प्रेम का वातावरण बना रहे तो उस विषमता के बीच भी सन्तुलन बना रह सकता है और सामूहिकता के साथ सौजन्य का एकत्रीकरण का सफल हो सकता है।

हंगरी के प्रसिद्ध वायलिन वादक रैक्ज पाली अपनी कई पत्नियों द्वारा उत्पन्न तथा गोद लिए हुए ४९ बच्चों के पिता थे। उन्हें अपनी वायलिन वादन कला की ही तरह बालकों के समूह में भी आनन्द आता है। उनने अपनी इन दोनों अभिरुचियों को परस्पर मिला कर रखा। सभी बच्चों को वायलिन वादन सिखाया और उनमें से एक को छोड़कर शेष सभी अपने पिता की तरह वायलिन कलाविदों के रूप में प्रख्यात हुए।

भारत में बहुपत्नी प्रथा कभी थी। इनमें श्रीकृष्ण भगवान को भी सम्मिलित बताया जाता है। पर यह प्रयोग सफल तभी हो सकता है, जब इस सारे समूह का स्तर बहुत ही उच्चकोटि का हो, अन्यथा ईर्ष्या- द्वेष की आग जब एक पत्नी एक पति वाली स्थिति में नरक उत्पन्न कर देती है, तब बहुपत्नी या बहुपति वाली स्थिति घटिया स्तर से तो सर्वनाश ही प्रस्तुत करेगी।
विवाह का उद्देश्य यदि संख्या वृद्धि करने वाला पशु प्रजनन हो तो बात दूसरी है अन्यथा व्यक्तियों में प्रखर प्रत्यावर्तन उत्पन्न करना और प्रतिभाशाली सन्तान प्राप्त होना तभी सम्भव है जब नर- नारी के बीच अत्यन्त गहरे एवं सघन स्तर की आत्मीयता स्थापित हो सके। ऐसे ही विवाह सच्चे अर्थों में विवाह है अन्यथा उन्हें एक मजबूरी का निर्वाह मात्र ही कहा जा सकता है।
***







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118