बोलती दीवारें- आदर्श वाक्य लेखन

स्वाध्याय का सर्वविदित उपाय सत्साहित्य का अध्ययन है। पर उसका एक और भी प्रेरणाप्रद स्वरूप है, वह है पोस्टर प्रचलन। दूकानों, दफ्तरों पर साईन बोर्ड इसी निमित्त लगे होते हैं कि वहाँ क्या सुविधा उपलब्ध है, इसे जानने पर जिन्हें आवश्यकता है वे सम्पर्क साधें। सिनेमा और औषध क्षेत्र के व्यवसायी अपने ग्राहक तलाश करने के लिए भारी खर्च उठाकर दीवार लिखते या कागज के पोस्टर चिपकाते हैं। प्रयोजन यह है कि इस प्रकार की आकाँक्षा एवं अभिरुचि को उत्तेजना, आकर्षण मिले और वे उत्पादकों, व्यवस्थापकों के साथ सम्पर्क साधें। इस आधार पर उनका प्रचार भी होता है और बिक्री भी बढ़ती है। ऐसा न होता तो हानिकारक धन्धे में कोई क्यों हाथ डालता।

अधिक लोगों की आँखों में अपने व्यवसाय की जानकारी देना एक बुद्धिमत्तापूर्ण प्रयास है। जिसमें ख्याति और आजीविका का साथ- साथ उपार्जन बनता है। यह पोस्टर प्रचार किस प्रकार कहाँ किया जाय वह अपनी सूझबूझ की बात है। अखबारों में विज्ञापन छपते हैं। दफ्तरों और मेजों पर रहने वाले कलेण्डर बड़े व्यवसायी अपने सम्पर्क क्षेत्र में मुफ्त पहुँचाते हैं। इसका उद्देश्य प्रस्तोताओं का नाम और काम स्मृति पटल पर सजीव बनाये रहना है।

प्रयास में कोई भी अग्रणी क्यों न हो, तथ्य को समझा जाना चाहिए। और उसका उपयोग उच्चस्तरीय उद्देश्यों की पुर्ति के लिए भी किया जाना चाहिए। सरकार एवं लोकसेवी संस्थानों द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर स्वास्थ्य रक्षा, नीति मर्यादा आदि से सम्बन्धित पोस्टर उपयुक्त स्थानों पर लगाये जाते हैं ताकि जन साधारण को उस स्तर की प्रेरणा मिले और सार्वजनिक हित साधन का सुयोग बने। उत्सव समारोहों की जानकारी प्राय: इसी तरह फैलती है।

चुनाव के अवसरों में तो इस प्रयास में एक प्रकार से प्रतिस्पर्धा ही बन जाती है। जिसके पोस्टर बड़े और अधिक होते हैं, उसका पक्ष प्रबल होने तक की बात लोग सोचने लगते हैं। इस प्रक्रिया को कौन किस प्रयोजन के लिए किस प्रकार प्रयुक्त करता है, यह दूसरी बात है पर इतना असंदिग्ध है कि जन मानस को खींचने, मोड़ने की दृष्टि से इस प्रयास की उपयोगिता एवं क्षमता असाधारण है।

नव निर्माण भी अपने ढंग का एक व्यवसाय है। उसमें जन मानस में घुसी हुई अनेकानेक अवांछनीयताओं को उखाड़ने, उजाड़ने की योजना है। साथ ही बहुत कुछ उगाने और भड़काने का उद्देश्य है। विचारक्रान्ति आन्दोलन एवं प्रज्ञा अभियान के अन्तर्गत दृष्टिकोण और प्रचलन के वर्तमान प्रवाह को दिशा देने का असाधारण नियोजन है। इसे मरुस्थलों को उद्यान में परिवर्तित करने और बाढ़ वाली उफनती नदियों पर बाँध रोककर खेत को सींचने वाली नहर निकालने के समतुल्य कहा जा सकता है।

यह युग निर्माण योजना खाई पाटने, सड़क बनाने जैसी है, इसके लिए लोक मानस में अनुकूलता उत्पन्न करने तथा जन समर्थन, जन सहयोग अॢजत करने की इन्हीं दिनों अत्यधिक आवश्यकता है। यह सब कार्य किसी दफ्तर में बैठे- बैठे सोचने या टाइप करते रहने भर से नहीं हो सकता। उपाय एक ही है जन सम्पर्क। इसके लिए जहाँ- तहाँ मिलने- जुलने, कहने- सुनने की आवश्यकता है वहाँ तद्विषयक साहित्य पढ़ने- पढ़ाने का भी अपना महत्व है। इस शृंखला में एक और महत्वपूर्ण कड़ी जुड़ती है, जिसे पोस्टर आन्दोलन या आदर्श वाक्य लेखन कहा जा सकता है। इस आधार पर कोटि- कोटि लोगों को स्वल्प काल में ही अभीष्ट प्रयोजन से अवगत कराया जा सकता है। जहाँ प्रचारक या अखबार नहीं पहुँचते, वहाँ भी इस आधार पर उधर से गुजरने वाले राहगीरों को भी यह बताया जा सकता है कि इस समय क्या हो रहा है, क्या होने जा रहा है और क्या होना चाहिए।

प्रज्ञा अभियान के प्रथम चरण में सृजन शिल्पियों के सम्मुख कार्यान्वित करने के लिए पंचसूत्री योजना प्रस्तुत की गई है। उसे स्वाध्याय, सत्संग प्रधान कहना चाहिए। जन जागरण के यही दो प्रमुख उपाय, उपचार हैं। इन पाँच कार्यक्रमों में एक है दीवारों को बोलती पुस्तकें बनाना। रास्ते के किनारों में चित्र कलेण्डर स्तर के आदर्श वाक्यों का टाँगना, यह दोनोंं ही उपचार एक- दूसरे के पूरक समझे जा सकते है।

हर वर्ष बीस आदर्श वाक्य प्रचारार्थ प्रसारित करते रहने का निश्चय किया गया है। गद्य की अपेक्षा पद्य अधिक प्रभावी माना गया है। तुक रहने के कारण वह स्मृति पटल पर भी अपना ध्यान जल्दी बना लेता है और बहुत समय तक स्मरण भी बना रहता है। इसलिए दो- दो कड़ी के पद्यों के रूप में ही इन्हें रखने का निश्चय किया गया है। इन्हें दीवारों पर लिखा जाना चाहिए। पेंटिंग के निमित्त कच्ची और पक्की स्याहियाँ बाजार में बिकती हैं। ब्रुश के सहारे उन्हें पेन्टरों की तरह सुन्दर अक्षरों में लिखा जा सके, तो बहुत समय तक टिकाऊ रहती है। गेरू या कागज में थोड़ा पानी और सरेस या गोंद मिलाकर भी ब्रुश से लिखा जा सकता है। इस हेतु उपयुक्त नीला रंग भी मिलता है।

टिन या प्लास्टिक के स्टेन्सिल काटकर उस पर स्याही या ब्रुश पोता जाय और जहाँ अक्षरों के ज्वाइन्ट हैं वहाँ उन्हें पतले ब्रुश से भर दिया जाय तो अक्षर भी सुन्दर होते हैं और जल्दी भी लिखे जा सकते है। इस आधार पर जिनकी लिखावट अच्छी नहीं है वे भी सुन्दर अक्षरोंं में आदर्श वाक्यों से विनिर्मित बोलती दीवारें प्रस्तुत करते रह सकते हैं। हजारी किसान ने हजार आम्र उद्यान लगाकर संकल्प को पूरा किया था। हमें पुण्य परमार्थ के लिए अथवा किसी पाप का परिशोधन, परिमार्जन करने के लिए आदर्श वाक्य लेखन नियत संख्या में करने का निर्धारण करके जन जागृति का वातावरण बनाने के लिए अपने क्षेत्र में दूर- दूर तक परिभ्रमण का निश्चय करना चाहिए। यह तीर्थ यात्रा का एक महत्वपूर्ण प्रचार उपक्रम है।

जहाँ स्याही, ब्रुश की व्यवस्था न हो सके वहाँ गेरू या मुल्तानी मिट्टी या खड़िया से मोमबत्ती जैसी पेन्सिलें बनाकर उनसे ही दीवार लेखन का कार्य आरम्भ कर देना चाहिए। इन पेन्सिलों में गोंद या सरेस मिला देने से वे मजबूत हो जाती हैं और टूटती नहीं। अक्षर उतने आकर्षक एवं टिकाऊ तो नहीं होते तो भी इस आधार पर जल्दी बहुत होती है। एक व्यक्ति एक ही दिन में सौ से अधिक वाक्य आसानी से लिख सकता है। वर्षा में अक्षर घुल जाते हैं जब उन्हें नये सिरे से लिखना पड़ता है। यह कठिनाई होते हुए भी रंग का डिब्बा और ब्रुश साथ लेाकर चलने की कठिनाई से बचा जा सकता है और जेब से पेन्सिल निकालकर कहीं भी उस कार्य को आरम्भ किया जा सकता है।

इस प्रयोजन के लिए छोटी- छोटी रबड़ की मोहरें भी बनाई गई हैं। इन्हें अपने पत्र व्यवहार में काम लाया जा सकता है। बिल, पर्चों, रसीदों में, निमन्त्रण पत्रों पर लगाया जा सकता है। विद्यार्थी अपनी पुस्तकों, कापियों पर लगाकर उस प्रेरणा को साथियों की और अध्यापकों की दृष्टि के सामने से बार- बार गुजार सकते हैं। इन वाक्यों को मोटे कार्ड बोर्ड के टुकड़ों पर लगवा कर किसी हर्ष विनोद के, पर्व त्योहार, बारात, जन्मदिन आदि के अवसर पर मित्रों में वितरित किया जा सकता है। यह जिनकी आँखों के सामने से गुजरेंगे उनमें नयी दिशा देने और नया उत्साह भरने की भूमिका सम्पन्न करेंगे।

युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि मथुरा में पिछले दिनों अत्यन्त प्रेरणाप्रद आदर्श वाक्य छपे हैं। साइज भी बड़ा है। मूल्य लागत जितना सस्ता। उन्हें चित्रों और कलेण्डरों की तरह दुकानों में लगाया जा सकता है। निरर्थक और बेतुके चित्रों की अपेक्षा इन उद्देश्य युक्त वाक्य चित्रों को सामने लगाने का प्रभाव यह होता है कि घर में जो भी आता है वह युग चेतना से अवगत अनुप्राणित तो होता ही है, साथ ही मन में यह मान्यता भी बनाता है कि जिस घर में इन्हें टाँगा गया है उसका वातावरण तो ऐसा होगा ही। इस घर के निवासियों में इन आदर्शों के प्रति आस्था होगी, वे अपेक्षाकृत अधिक उदार आदर्शवादी होंगे।

कहना न होगा कि ऐसी मान्यता जिनके सम्बन्ध में बनेगी, उन्हें अधिक सज्जन और प्रामाणिक माना जायेगा। उन पर अधिक विश्वास किया जा सकेगा। फलत: अधिक सहयोग के, आदान- प्रदान का द्वार खुलेगा। इस प्रकार घर में इन वाक्यों का टाँगना न केवल कमरों की शोभा सज्जा का उद्देश्य पूरा करता है, वरन् शालीनता की दृष्टि से भी उसमें रहने वालों का स्तर ऊँचा उठता है। इन लाभों को देखते हुए इस सज्जा के निमित्त मुट्ठी भर पैसे खर्च कर दिये जाते हैं, तो उन्हें अन्तत: सत्परिणाम उत्पन्न करने वाला बीजारोपण ही कहा जा सकता है।

रास्ता चलते स्थानीय अथवा बाहरी व्यक्ति जब उधर से गुजरते हैं तो अनायास दृष्टि पड़ने पर न केवल उपयोगी जानकरी मिलती है, वरन् अचेतन मन पर अच्छी छाप पड़ती है। चिन्तन और रुझान तदनुरुप ढलता है। प्रतीत होता है कि जिस क्षेत्र में यह वाक्य लिखे है वहाँ का वातावरण भी वैसा ही होगा। अनेक स्थानों पर अनेक गांवों में यह आदर्श वाक्य लिखे या टंगे मिलें तो प्रतीत होता है कि इस समूचे क्षेत्र पर यह विचारधारा हावी है। लोग बहुसंख्यकों के पीछे दौड़ते हैं। जब प्रतीत होता है कि कोई प्रवाह व्यापक रुप से बहा है, तब अनुकरण प्रिय अचेतन मन इसी नतीजे पर पहुँचता है कि हमें भी बहुसंख्यकों के साथ चलना चाहिए। जन आन्दोलन इसी तरह पनपते और प्रखर होते हैं। इस तरह यह पोस्टर अभियान सविनय अवज्ञा आन्दोलन से कहीं अधिक सशक्त भूमिका निभा सकता है।

किवाड़ों, अलमारियों, गाड़ियों, हैण्ड बैगों, अटैचियों पर चिपकाये जा सकने वाले स्टीकर भी गायत्री तपोभूमि से नगण्य से मूल्य पर मिलते हैं। उन्हें न केवल अपनी वस्तुओं पर चिपकाना चाहिए, वरन् दूसरों को भी वैसा ही करने के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए। आदर्श वाक्यों के प्रसार विस्तार में संलग्र होकर प्रेरणाप्रद वातावरण बनाने का उद्देश्य पूर्ण होता है और इस आधार पर सत्प्रवृत्ति संवर्धन का एक नया मार्ग बनता है। दीवार लेखन आदर्श वाक्यों के कलेण्डर, स्टीकर्स प्रकारान्तर से स्वाध्याय की पुर्ति ही करते है। मात्र पुस्तक पढ़ना ही स्वाध्याय नहीं। आज कामुकता का वातावरण फैलाने में जितनी बड़ी भूमिका इस प्रयोजन से दीवालों पर लिखे गए, चिपकाए गए पोस्टरों ने निभाई है, उसे नकारा नहीं जा सकता। वातावरण की इस विषाक्तता से भी निपटना ही होगा। संव्याप्त निषेधात्मक स्थिति का उन्मूलन तभी संभव है, जब बदले में विधेयात्मक वातावरण बनाया जाय। सत्साहित्य के प्रति, आदर्शवादिता के प्रति अभिरुचि जगाने हेतु प्रचार का यही स्वरुप जन- जन तक पहुँचने के लिए प्रयुक्त हो सकता है।

प्रजातन्त्र प्रधान हमारे राष्ट्र की कुछ परिस्थितियाँ भी ऐसी है कि इस प्रक्रिया के क्रियान्वयन में बाधक नहीं बन सकती। किसी को भी ऐसे आदर्श, श्रेष्ठता को व्यवहार में उतारने वाले निम्न्लिखित चुने हुए वाक्य अपने यहाँ लगाने दीवार पर लिखवाने में किसी प्रकार का संकोच होगा भी नहीं। वोट से लेकर दवाओं के विज्ञापनों की जब दीवालों पर भाँति- भाँति की चित्रकारी कर दी जाती है, तो ऐसी प्रवृत्ति की ओर मोड़े गये प्रयासों को किये जाने पर सफलता अवश्य मिलेगी।

इस वर्ष के बीस आदर्श वाक्य

इस वर्ष के लिए २० वाक्यों का चयन किया गया है। प्रतिवर्ष ये बदले जाते रहेंगे। ये वाक्य दीवाल लेखन के है। पोस्टर्स, सदवाक्य तथा चिपकाने वाले स्टीकर्स इनके अतिरिक्त हैं। वे तपोभूमि मथुरा से मँगाये जा सकते हैं। लिखे जाने वाले वाक्य-

(१) हम बदलेंगे- युग बदलेगा। हम सुधरेंगे- युग सुधरेगा।
(२) सतयुग फिर आयेगा कब? जन- जन जब चाहेगा तब।
(३) देव संस्कृति के निर्माता। यज्ञ पिता गायत्री माता।
(४) सादा जीवन- उच्च विचार। संयम बरतें- रहें उदार।
(५) सज्जन व्यक्ति- सभ्य परिवार। न्याय विवेक- समाज सुधार।
(६) नया संसार बनायेंगे। एकता, समता लायेंगे।
(७) प्रचलन नहीं विवेक प्रधान। तर्क, तथ्य को दे सम्मान।
(८) नर और नारी एक समान। जाति वंश सब एक समान।
(९) अनाचार बढ़ता है तब सदाचार चुप रहता जब।
(१०) जिनने बेच दिया ईमान। करें नहीं उनके गुणगान।
(११) जैसी करनी वैसा फल। आज नहीं तो निश्चय कल।
(१२) विग्रह छोड़े- स्नेह बढ़ायें। अपना सोया भाग्य जगायें।
(१३) अपनी गलती आप सुधारें। अपनी प्रतिभा आप निखारें।
(१४) रोटी, कपड़ा और मकान। साथ- साथ नैतिक उत्थान।
(१५) अधिक कमायें, अधिक उगायें। लेकिन बाँट- बाँटकर खायें।
(१६) अगर रोकनी है बर्बादी। बन्द करो खर्चीली शादी।
(१७) अपनी गुत्थी खुद सुलझायें। आश्रय तकें न दीन कहायें।
(१८) हाथ चलायें पैर बढ़ायें। श्रमरत रहें- समृद्ध कहायें।
(१९) प्रजनन रोकें- वृक्ष उगायें। शुभ शिक्षा सहकार बढ़ायें।
(२०) हँसना सीखें- सृजन विचारें। आशा रखें- भविष्य सुधारें।
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