उथल- पुथल की बेला एवं उज्ज्वल भविष्य की सम्भावनाएँ

सन् १९८० से लेकर २००० तक की अवधि को युग सन्धि बेला माना गया है। इसे प्रभात कालीन ब्रह्ममुहूर्त के समतुल्य समझा जाना चाहिए। कुछ समय पूर्व की सन्नाटा भरी घोर तमिस्रा को थोड़ी देर बाद हलचल भरे प्रकाश में परिणत कर देने का श्रेय ऊषाकाल के अरुणोदय को मिलता है। ठीक उसी तरह सर्वत्र छाई हुई अवांछनीयता को गलाने और उसे सदाशयता में ढाल देने के लिए इन दिनों महाकाल की प्रत्यावर्तन प्रक्रिया चल रही हैैै। इसे तत्त्वदर्शी महामनीषियों ने युगसंधि पर्व का नाम दिया है। इस अवधि में विनाश और संस्थापन की द्रुतगाती प्रक्रिया चलेगी। यह समय बीतते- बीतते ऐसा समय आ जायेगा जिसे नवयुग कहा जा सके।

कुछ विनाशकारी कारण इन दिनों ऐसे उभरे हैं जैसे पूर्वकाल में कभी भी नहीं थे। ये दिन- दिन प्रबल होते जा रहे हैं। फलत: विश्व संकट के बादल भी घनीभूत होते जा रहे है। यह महाप्रलय नहीं रचे तो ऐसी विपन्नता अवश्य पैदा करेंगे जिसे मानवी प्रयासों से नियन्त्रित करना सम्भव नहीं दीखता। ऐसी विपन्नताओं को हटाने के लिए महाकाल को अनुपयुक्तता को निरस्त करने के लिए भयानक तोड़- फोड़ करनी पड़ती है ताकि संकट उत्पन्न करने वाले तत्वों का उन्मूलन हो सके। असुरता घटने पर ही देवत्व को पनपने का अवसर मिलता है। लंका दहन और राम राज्य संस्थापन की दुहरी प्रक्रिया ऐसे ही अवसरों पर पूर्वकाल में भी सम्पन्न होती रही है। इन दिनों प्रस्तुत बीस वर्ष की अवधि को ऐसी ही समझना चाहिए जिसमें काली घटाएँ कड़कड़ाती बिजली के साथ बरसेंगी और हरीतिमा भरे वातावरण का अभिनव सृजन करेंगी।

() परमाणु बम, अन्तरिक्ष यान, मिसायलें, मृत्यु किरण, विषबम, लेसर हाइड्रोजन बम जैसे प्रलयंकर अस्त्रों के पर्वत खड़े होते जाना।

() अणु विस्फोटों से अन्तरिक्ष में भयानक विकिरण बढ़ते जाना और उसके फलस्वरूप प्राणी समुदाय को पीढ़ियों तक अभिशाप सहने के लिए विवश किया जाना।

() बढ़ते हुए कल कारखानों से वायु और जल का भयानक रूप से विषाक्त होना, फलत: दम घुटने की स्थिति बनना

() ईंधन का अत्यधिक प्रयोग होने से वातावरण का गर्म होते जाना, ध्रुवों की बरफ पिघलने से समुद्र की सतह का ऊपर उठना, फलत: आबादी और उपजाऊ जमीन का उसमें डूबना बढ़ती हुई अप्रत्याशित जनसंख्या के कारण आहार, जल, निवास आदि का संकट खड़ा होना। ईंधन साधनों के चुक जाने से नये किस्म के अवरोध का खड़ा होना। ये कुछ कारण है जिनसे महाविनाश की सम्भावनाएँ निकट दीखती हैं।

मानवी आचरणों से प्रकृति का सूक्ष्म वातावरण प्रभावित होता है। सतयुग में मानवी सद्भावनाएँ प्रकृति को अनुकूल बनाये रहती थी। धरती से धान्य, बादलों से जल और अन्तरिक्ष से जीवन प्राण के अजस्र अनुदान मिलते थे, सर्वत्र सुख शान्ति की परिस्थितियाँ बनी रहती थी। अब जबकि मनुष्य के दृष्टिकोण और आचरण में निकृष्टता भर गई हैै, सूक्ष्म जगत चेतन विषाक्तता से भरता चला जा रहा है फलत: प्रकृति प्रतिकूल होती जा रही है और क्रुद्ध हाथी की तरह आये दिन विनाश का संकट प्रस्तुत करती रहती है। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, भूकम्प, तूफान, बाढ़, महामारी जैसे प्रकृति प्रकोप दिन- दिन बढ़ते ही जा रहे हैं। सूर्य कलंकों का बढ़ना, सौर मंडल का ग्रह सन्तुलन बिगड़ना जैसे कारणों को देखते हुए अन्तरिक्ष विज्ञानी चिन्तातुर है कि इन असन्तुलनों का प्रभाव अपनी धरती की परिस्थितियों में विनाशकारी उथल- पुथल प्रस्तुत कर सकता है।

युगसंधि के बीस वर्षों में सन् १९८० से २००० तक सूर्य ग्रहणों की असाधारण शृंखला चलेगी। इनमें तीन खग्रास और अतिप्रभावी होंगे- एक १६ फरवरी १९८०, दूसरा २४ अक्टूबर १९९५ का और तीसरा ११ अगस्त १९९९ का। इनमें से एक तो हो चुका। इन तीनों का संयुक्त प्रभाव इस अवधि में पृथ्वी के वातावरण को विचित्र रूप से प्रभावित करेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार इनके कारण अन्तरिक्षीय प्रभाव ऐसे उत्पन्न होंगे जो प्राणियों को रुग्णता, पदार्थों को अस्त- व्यस्तता की ओर धकेलेंगे, मौसमी संतुलन बिगाड़ेंगे और प्रकृति प्रकोपों का सिलसिला बढ़ायेंगे। इस अवधि में चन्द्र ग्रहणों और सूर्यग्रहणों का ऐसा उपक्रम बन रहा है जिसे असामान्य कहा जा सके। इस योग के सम्बन्ध में इस्लाम धर्म की प्रसिद्ध पुस्तक ‘‘मौज जात मसीह’’ के पृष्ठ १४६ पर हजरत इमाम बाकर का हवाला देते हुए कहा गया है- ऐसे कुयोग आने पर समझा जाय कि कयामत नजदीक आ गयी।

युगसंधि में सूर्य पर धब्बे उभरेंगे। उनकी चुम्बकीय प्रतिक्रिया अत्यन्त तीव्र होगी। इस कारण समुद्रों और नदियों का पानी तेजी से भाप बनकर उड़ने लगेगा। समुद्रों की धाराओं तथा परतों में परिवर्तन आने से मौसम अस्त- व्यस्त होंगे। ध्रुवों की बरफ पिघलने से नये संकट खड़े होंगे। अमेरिका के ऊर्जा आयोग ने आंकड़ों के आधार पर सिद्ध किया है- जब भी सौर कलंक चरम स्थिति में होते हैं तो दुर्घटनाएँ प्राय: : गुनी अधिक बढ़ जाती है। न्यूयार्क के प्रख्यात डाक्टर बेकर की खोज है कि तीव्र सौर प्रतिक्रिया से मानसिक रोगियों की संख्या में असाधारण वृद्धि होती है। भारत के पुरातन ज्योतिवदों में से गर्ग, पारासर, देवल, कश्यप आदि ने भी इस संदर्भ में ऐसे ही निष्कर्ष निकाले हैं।

संसार भर के महान वैज्ञानिकों ने मानवी गतिविधियों द्वारा विनिर्मित होती जाने वाली परिस्थितियों का गम्भीर पर्यवेक्षण करते हुए यह निष्कर्ष निकाला है कि सन् १९८० से लेकर २००० तक की मध्यावधि में प्रकृति प्रकोपों से लेकर मानवी विग्रहों तक की ऐसी कितनी ही विभीषिकाएँ दृष्टिगोचर होंगी, जिनसे विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के संकट उभरेंगे और कल्पनातीत विपत्तियाँ उत्पन्न करेंगे। इस प्रकार के प्रतिवेदन प्रस्तुत कर्ताओं में मूर्धन्य विज्ञानियों की लम्बी शृंखला है। उनमेें से जीव शास्त्री रासेल कारमन, खगोल शास्त्री कार्ल सागन, दार्शनिक स्वाल्ट स्पेंगुलर, पत्रकार वगजी लेटीना आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय है।

बाइबिल में डेनियल तथा रिवेलेशन अध्यायों में युग परिवर्तन के सम्बन्ध में जो भविष्यवाणियाँ दी है वे सेविन टाइम्स के नाम से जानी जाती है। उन्हें लेकर अंग्रजी में कितनी ही पुस्तकें छपी हैं। इनकी गूढ़ विवेचनाओं में अगणित विद्वानों ने अपना सिर खपाया है। इनमें युद्ध, अकाल, महामारी, भूकम्प जैसे प्रकृति प्रकोपों से महाविनाश की सूचना के साथ ही यह भी कहा गया है कि इसी बीच महाप्रभु का अवतरण होगा और वे सदाशयता को पुनर्जीवित करने में सफल होंगे। यह सेविन टाइम कब हो सकता है इस सम्बन्ध में जेम्स ग्राण्ट ने अनेकों आधार लेकर गणना की है और उसे सन् १९८५ से लेकर २००० के मध्य का बताया है।

युगसंधि की इस छोटी सी अवधि में महाविनाश की सम्भावनाओं से महामनीषी समय- समय पर सर्वसाधारण को जानकारी और चेतावनी देते रहे है। इनमें कई महत्वपूर्ण हैं। इस्लाम धर्म के प्रवक्ता चौदहवीं सदी में कयामत होने की चर्चा करते रहे हैं। भविष्य पुराण में भी ऐसा ही उल्लेख है। इसके अतिरिक्त मूर्धन्य भविष्य दर्शियों ने समय- समय पर इसी तथ्य को अपने- अपने ढंग से प्रस्तुत किया है जिनके भविष्य कथन विश्व घटनाओं के सम्बन्ध में सर्वथा खरे उतरते रहे हैं।

विश्व विख्यात भविष्य वक्ता कीरो के कथन उनके जीवनकाल में तथा मरण के उपरान्त भी लगातार सही होते चले आये है उनने विश्व भविष्य के सम्बन्ध में लिखा है- मध्य पूर्व में अरबों और यहूदियों की भयानक टक्कर होगी। इसी बीच एक नई- नई विश्व सभ्यता उभरेगी और संसार के वर्तमान ढाँचे में उसके कारण असाधारण परिवर्तन सन् २००० से पूर्व ही हो जायेगा। भारत का भविष्य अन्य सभी देशों की तुलना में अधिक उज्ज्वल है। उसका आश्चर्यजनक अभ्युदय होगा।

पिछले दिनों जिन अदृश्य दर्शियों के भविष्य कथनों की धूम संसार भर में रही है उनमें मूर्धन्य सात हैं- १. जीन डिक्शन २. जूल वर्न ३. प्रो. हरार ४. पीटर हरकौस ५.नोस्ट्राडेमस ६. जान सेवेज ७. एण्डरसन। इन्हें आस्तिक, नास्तिक, राजनीति, दर्शन विज्ञान आदि के सभी वर्गों ने हर कसौटी पर कसा और ९० प्रतिशत सही पाया है। इन सातों ने युगसंधि के दिनों घटित होने वाली घटनाओं के सम्बन्ध में जो संकेत दिये हैं उनका तीन तथ्यों में सन्निहित सार संक्षेप इस प्रकार है- १. इन बीस वर्षों में मनुष्य जाति के सामने असाधारण कठिनाइयाँ खड़ी रहेंगी। २. साथ ही उज्ज्वल भविष्य की सम्भावनाएँ विकसित होंगी। वर्तमान व्यवस्था बदलेगी। लोगों के दृष्टिकोण सुधरेंगे। ३. विश्व सन्तुलन में भारत की भूमिका महान होगी। इस अवधि में उसे विश्व सेवा का उच्च स्तरीय अवसर मिलेगा।

भारत के मान्य ज्योतिषी श्री गोपीनाथ शास्त्री चुलैट ने एक रात स्वप्न देखा कि नये युग का आविर्भाव सन्निकट है। उठकर उनने स्वप्न की कुण्डली बनाई और उसके आधार पर अनेकों फलितार्थ निकाले जो युग परिवर्तन पुस्तक में छपे। इन घोषणाओं में से अधिकांश सही सिद्ध हो चुकी है। इस आधार पर जो अगले दिनों घटित होने वाला है वह इस प्रकार है- यह युगसंधि का समय है। अन्धकार घटता और प्रकाश बढ़ता जायेगा। यह समय संसार भर के लिए प्रसव पीड़ा की तरह कष्टप्रद होगा। किन्तु अन्तत: ऐसे सुखद परिवर्तन होंगे, जिससे नये युग के लोग हर दृष्टि से समुन्नत हो सके।

हरिवंश के भविष्य पर्व की काल गणना के अनुसार इसी युग संधि के दिनों कलियुग की समाप्ति और शुभ युग की शुरुआत होनी है। पुरातत्व शोध संस्थान ने इस समय को ब्रह्मरात्रि का तपोमय संधिकाल कहा है। महाभारत वन पर्व के अनुसार जब युग संधियाँ आती है तब संसार में तीव्र संघर्ष और विनाश विग्रह खड़े होते हैं।

पटना की खदाबख्श ओरियेंटल लाईब्रेरी में बुखारा के प्रख्यात सन्त शाहनियर मतुल्लावली साहब की लिखी फारसी कसीदों की एक पुस्तक है, जिसमें विश्व भविष्य के सम्बन्ध में अनेकों जानकारियाँ तथा चेतावनियाँ छपी हैं। उनमें से अधिकांश अब तक अक्षरश: सही सिद्ध हो चुकी है। जिनका प्रभाव आगे आने वाला है वे इस प्रकार है- तृतीय विश्वयुद्ध बड़ा भयंकर होगा। उससे श्वेत जातियाँ बहुत कमजोर पड़ जायेंगी। भारत का अभ्युदय आश्चर्यजनक होगा। इस देश में एक फरिश्ता आयेगा जो सामान्य लोगों को संगठित करके उनसे असामान्य काम करा लेगा। इन प्रयत्नों से मनुष्य का गौरव बढ़ेगा और भविष्य उज्ज्वल होगा।

कुछ समय पूर्व संसार भर के ऐसे मूर्धन्य एक सौ चार भविष्य वक्ताओं का सम्मेलन कोरिया में हुआ था जिनकी भविष्यवाणियाँ ८० प्रतिशत सही उतरती रही है। उन लोगों ने संयुक्त रूप से सन् ८० से २००० तक के बीस वर्षों का भविष्य बहुत सोच विचार और अध्यात्म तथा ज्योतिर्विज्ञान का सहारा लेकर प्रकाशित किया था। उनमें प्रमुख बातें यह थी- १९८५ के लगभग ऐसा महायुद्ध हो सकता है जिसे विश्व युद्ध की संज्ञा मिल जाय। पूर्वात्य तथा पाश्चात्य देशों की राजनैतिक तथा आर्थिक स्थिति में भारी उथल पुथल होगी। प्रकृतिगत विपदाएँ बढ़ेगी। भूकम्प आयेंगे और अकाल पड़ेंगे। पारस्परिक कलह बढ़ेंगे और विद्वेष फूटेंगे। वैज्ञानिक प्रगति ध्वंसात्मक उत्पादनों में लग जायेगी और ईंधन की कमी सर्वत्र अनुभव होगी। लोग कई कारणों से खिन्न रहेंगे।

इन्हीं दिनों १०४ मूर्धन्य भविष्यवक्ताओं की संयुक्त घोषणा में इन्हीं दिनों में घटित होने वाला एक शुभ संवाद भी है- व्यापार, धन धान्य, कृषि, पशु- पालन विज्ञान तथा तकनीकी क्षेत्र का एशियाई नेतृत्व भारत कर सकता है। राजनैतिक उथल- पुथल के बीच विचार क्रान्ति उभरेगी और उसका असर सारी दुनिया पर पड़ेगा। यहाँ तक कि कम्युनिष्ट भी अपनी वर्तमान मान्यताओं में बहुत कुछ सुधार करेंगे। यह बौद्धिक परिवर्तन आध्यात्मिक तथ्यों का प्रतिपादन करेगा। वर्ग, सम्प्रदायों तथा भाषा, भेष के अन्तर घटेंगे और एकात्म की दिशा में मानवी प्रयत्न तेजी से बढ़ेंगे। इस विश्व क्रान्ति का सूत्रपात एवं नेतृत्व एशिया का कोई मनीषी करेगा और उसका प्रयास सफल होकर रहेगा।

पिछले दिनों संसार के प्रमुख ५० राष्ट्रों के ६००० ऐसे महामनीषी टोरेन्टो में एकत्रित हुए जो फ्यूचरोलॉजी विज्ञान मं। निष्णात थे। फ्यूचरोलॉजी अर्थात् वर्तमान को देखते हुए तथ्यों के आधार पर भविष्य का सही अनुमान लगा सकने की विद्या। इस सम्मेलन का नाम फर्स्ट ग्लोबल कान्फरेंस आन फ्यूचर दिया गया। इसमें प्रस्तुत विभीषिकाओं और भावी सम्भावनाओं पर गम्भीर विचार विनिमय के बाद निष्कर्ष निकाला गया कि भविष्य चिन्ताजनक है, पर हम आशावादी है। कहने सोचने का समय चला गया। अब कुछ करने पर उतरना होगा। कहने लायक एक बुरी खबर है और एक अच्छी। बुरी यह कि अगले बीस वर्षों में संसार का अन्त समीप हैं, चूंकि प्रकृति से खिलवाड़ करके मनुष्य ने अपनी कब्र आप खोद ली है। पर एक शुभ समाचार यह है कि ऐेसे प्रयास जिनके द्वारा संकट को टाला जा सके, उत्साहपूर्वक चल पड़े हैं। कोई कारण नहीं कि सृजन की सुनियोजित क्रिया पद्धति विश्व स्तर पर अपनाई जा सके तो अन्धकार को प्रकाश में न बदला जा सके।

सम्मेलन ने नारा दिया है- थिंकिग ग्लोबली,ऐंक्टिग लोकली अर्थात् उत्कृष्ट चिन्तन, आदर्श आचरण। नवयुग के बारे में इन मनीषियों की सर्व सम्मत मान्यता है अगले दिनों सभी एक साथ मरेंगे, एक साथ जियेंगे, हिल- मिलकर काम करेंगे और मिल- बाँटकर खायेंगे। न गरीबी रहेगी और न असमानता। भेद मिटेेंगे और एकत्व बढ़ेगा। संयोजकों ने परामर्श तो शासकों को भी दिया है किन्तु आशा प्रतिभावान उदार चेताओं से ही की है कि नवसृजन में उन्हीं की भूमिका प्रमुख होगी। प्रयत्नों के पीछे उद्देश्य की उत्कृष्टता, कर्ताओं की नीति निष्ठा और प्रयास की व्यापकता अविछिन्न रूप से जुड़ी रहनी चाहिए।

संकेत सभी ओर से यही मिलते है कि प्रस्तुत बेला युग परिवर्तन की है जागरूकता की अपेक्षा ऐसे समय में समझदारों से ही की जाती है ऐसे प्रयास महाकाल की ओर से तो चल पड़े है, पर सहगामी होना है कि नही यह मनुष्य पर, उसके चिन्तन पर निर्भर है।







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