प्रज्ञायोग की सुगम साधना

देवियो, भाइयो! भगवान के अवतार समय- समय पर हुए हैं और जब जिस काम के लिए जरूरत पड़ी है, तब- तब उसी काम के लिए उन्होंने अवतार उसी तरह का धारण किया है ।। यह समय इस तरह का है कि इसमें आस्था संकट छाया हुआ है ।। सब जगह आस्थाएँ कमजोर पड़ गई हैं ।। आदर्शों के लिए कहिए, उत्कृष्टताओं के लिए कहिए सबके लिए आस्थाएँ कमजोर पड़ गई हैं ।। आस्थाएँ कमजोर पड़ने की वजह से जो आदमी काम कर रहा है, चिंतन कर रहा है, यह गलत कर रहा है ।। उसका निवारण करने के लिए भगवान का नया अवतार होना चाहिए ।। वह प्रज्ञा अवतार होगा ।। निष्कलंक भी इसी को कहते हैं ।। दसवाँ अवतार या चौबीसवाँ अवतार निष्कलंक अवतार है, जिसे प्रज्ञा अवतार भी कहते हैं ।। प्रज्ञा दूरदर्शी विवेकशीलता को कहते हैं ।। केवल वही निष्कलंक है और सबमें कलंक लगा हुआ है ।। इसलिए यह महाप्रज्ञा के अवतार का जो समय है, इसको आप बहुत महत्त्वपूर्ण मानें और इसी का स्मरण करें ।। अपनी उपासना में इसी का समावेश करें ।।

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