अध्यात्म के सही स्वरूप का पुनर्जागरण

देवियो, भाइयो! आपको जहाँ कहीं भी वृक्ष- लता और पुष्प खिले हुए दिखाई पड़ें, समझ लेना कि यह जादू और चमत्कार उसका है, जो बीज गल गया। गले हुए बीजों का परिणाम आपको बगीचों के रूप में, फूलों के रूप में, उद्यानों के रूप में दिखाई पड़ता है। लेकिन जहाँ कहीं ऐसा दिखाई पड़ता हो कि सूखी हुई जमीन पड़ी है, सुनसान पड़ा हुआ है, जान लेना वहाँ कोई बीज गलने को तैयार नहीं हुआ। वहाँ बीजों ने गलने से इंकार कर दिया है। बीज जब कभी भी गले हैं, दुनिया में शांति आई है, दुनिया में खुशी आई है। दुनिया में व्यवस्था आई है, उन्नति आई है। हमारे भारतवर्ष में यह परंपरा रही है कि प्रत्येक व्यक्ति ने अपने जीवन की सार्थकता को इस बात से जोड़कर रखा कि मेरे गलने की प्रक्रिया कहाँ तक सफल रही। हर आदमी ने अपने आपसे हजार बार यह सवाल किया कि क्या मैं गलने में समर्थ हुआ? क्या मैं समाज के लिए गला? क्या मैं भगवान् के लिए गला? अगर गलने का जवाब यह आया कि हाँ, मैं गला, तो व्यक्तिगत जीवन में हरियाली आयेगी। सामाजिक जीवन में हरियाली आयेगी।

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