मित्रो! हमने अपने मन का भगवान बना लिया है । हमारे मन का भगवान आपने हमारी पूजा की कोठरी में देखा होगा । माताजी जो ध्यान करती हैं, वह गायत्री माता का ध्यान करती हैं । हम जो ध्यान करते हैं, अपने गुरु का ध्यान करते हैं। चौबीस घंटे हमको एक ही दिखाई पड़ता है । हमारे आत्मोत्थान का श्रेय जब खुलता है, तो हमको वही दाढ़ी दिखाई पड़ती है, वही चमक दिखाई पड़ती है, बड़ी-बड़ी तेजस्वी आँखें दिखाई पड़ती हैं, लंबे वाले बाल दिखाई पड़ते हैं । हिमालय पर रहने वाला एक व्यक्ति दिखाई पड़ता है, जो न कभी खाता है, न कभी पीता है । हमेशा उसका सूक्ष्मशरीर ही काम करता रहता है । मैंने तो उसी को भगवान भी मान लिया है । गायत्री माता को भी वही मान लिया है । मेरे मन की एकाग्रता उन पर जम गई है ।