देवियो, भाइयो! गायत्री का नाम ‘त्रिपदा’ भी रखा गया है। यह किस उद्देश्य से रखा गया है? इसकी तीन धारायें प्रख्यात हैं। सृष्टि के प्रारम्भ में भगवान् का जो स्वरूप प्रकट हुआ था, उसे हम सत्, ‘चित्’, और ‘आनन्द’-इन तीन शब्दों में व्याख्या कर सकते हैं। भगवान क्या हो सकता है? भगवान क्या होना चाहिए? भगवान का स्वरूप कैसा होना चाहिए? इस बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए आपको यह जानना होगा कि भगवान सत्, चित् और आनन्द है। प्रकृति कैसी है? यह तीन तत्त्वों के ऊपर टिकी हुई है, जिसके नाम हैं-सत, रज, तम। प्रकृति की यह तीन मूल अवस्थायें हैं। पंचतत्त्व इसके बाद में पैदा होते हैं। पंचतत्त्वों के पैदा होने से पहले ‘सत’, ‘चित’, ‘आनन्द’ और ‘सत’, ‘रज’, ‘तम’ आते हैं। पंचतत्त्वों का प्रकटीकरण इसके बाद हुआ है। पंचप्राणों का जो प्रकटीकरण हुआ है, वह सृष्टि के मूल में दूसरी चीजें हैं, जिनको हम ‘सत्यम्’, ‘शिवम्’, ‘सुन्दरम्’ कहते हैं। इस सृष्टि में तीन शक्तियाँ हैं। ये ब्रह्मा, विष्णु और महेश के नाम से प्रख्यात हैं। इन तीन शक्ति धाराओं को, जो गायत्री मंत्र के अंतर्गत सन्निहित हैं, तीन देवियों के नाम से-सरस्वती, लक्ष्मी और काली के नाम से बताया गया है। तीन अवस्थायें हैं-पैदा होना, विकसित