मनुष्य के शरीर में दो चीज हैं- एक उसकी रचना अर्थात् उसकी काया और दूसरी चेतना। काया का खाने- पीने से संबंध है, सोने उठने से संबंध है और गिने- चुने लोगों से संबंध है। बस, पशु का छोटा सा जीवन जिस तरीके से काया के ऊपर टिका रहता है, उसी तरीके से मनुष्य का जीवन टिका रहे, तो यही मानना चाहिए कि मनुष्य के जीवन का कोई महत्त्व न बन सका और मनुष्य के जीवन का कोई उद्देश्य पूरा न हो सका। खाया और बच्चे पैदा किया और बच्चे पालने की जिम्मेदारियों में फँसे रहे। यह भी कोई जीवन है क्या? ये तो कोई जीवन नहीं है। ये तो बहुत घटिया और पशुओं जैसा नारकीय जीवन है।
मानवीय चेतना- विचारणा ही है विशेषता मनुष्य के पास जो कुछ भी विशेषता और महत्ता है, इससे वह स्वयं उन्नति कर जाता है और अपने समाज को ऊँचा उठा ले जाता है। उसकी अंतरंग की दिशाधारा को जिसको हम चेतना कहते हैं, अन्तरात्मा कहते हैं, विचारणा कहते हैं। वही एक चीज है जो मनुष्य को ऊँचा उठा सकती है, महान बना सकती है, शान्ति दे सकती है और समाज के लिए उपयोगी बना सकती है। चेतना मनुष्य की, जिसको विचारणा हम कहते हैं।