सम्भ्रान्त महानुभाव और देवियो! कल मैं भगवान शंकर जी के सम्बन्ध में निरन्तर प्रकाश डालता रहा हूँ। यह बताता रहा हूँ कि इनके विग्रह और इनके बाहरी स्वरूप के भीतर क्या शिक्षाएँ और क्या प्रेरणाएँ भरी हुई हैं? शिक्षाओं और प्रेरणाओं को मूर्तिमान करने के लिए अपने हिन्दू समाज में इनकी प्रतीक पूजा की व्यवस्था की गयी है। देवताओं के जितने भी प्रतीक हैं, उन सबके पीछे कोई न कोई संकेत भरा हुआ है। गायत्री माता का वाहन हंस है। हंस का क्या अर्थ है? हंस का अर्थ यह है कि जो नीर और क्षीर का विवेक कर सकता हो। दूध और पानी को अलग- अलग कर सकता हो। पानी को फेंक सकता हो और दूध को पी सकता हो। ऐसे हंस के ऊपर गायत्री माता सवार रहेंगी और वह उनकी कृपा का भाजन बन जायेगा।
मित्रो! हंस पर गायत्री माता सवार होती हों, ऐसी कोई बात नहीं है। हंस तो एक छोटा सा पक्षी होता है। गायत्री माता कम से कम एक- दो मन की तो होंगी ही। ऐसे में तो बेचारे हंस का कचूमर निकल जायेगा। जब वे हंस के ऊपर बैठेंगी, तब वह उड़ेगा कैसे, चलेगा कैसे? हंस की तो मुसीबत आ जाएगी। गायत्री माता हंस