विश्ववारा देव संस्कृति

बेटे, हमने तप किया है और तप करके पाया है और तू हिस्सा माँगता है । चल तुझे भी दे देंगे । यह क्या है ? छोटी चीज है रत्तीभर चीज है । न इसमें किसी को घमंड करने की जरूरत है और न सफलता प्राप्त करने की जरूरत है । हमने अध्यात्म से यह पा लिया, वह पा लिया । बेटे, पाने से अध्यात्म का कोई संबंध नहीं है । अध्यात्म का संबंध है, देने से । आपने क्या दिया, बताइए ? बस, यही एक सवाल है । अगर आप यह कहते हैं कि हम भगवान की भक्ति से कोई ताल्लुक रखते हैं, तो आप यह जवाब दीजिए कि दैवीय सभ्यता के लिए श्रेष्ठ आचरणों के लिए लोगों के सामने अच्छी परंपरा स्थापित करने के लिए आपने क्या दिया ? यही एक जवाब दीजिए और दूसरा हम कुछ नहीं सुनना चाहते । हमने इतना भजन किया । तो ठीक है अपने भजन को डिब्बी में रखिए । भजन का या किसी और का हवाला देना हम नहीं सुनना चाहते । गायत्री मंत्र की ग्यारह कापी हमने लिखीं । तो आप अपनी ग्यारह कापी ताले में बंद कर दीजिए । हमें मत बताइए । हमको तो यह बताइए कि आपने दैवीय सभ्यता के लिए कितना त्याग किया है ? कितना बलिदान किया है ? कितनी सेवा की है ?

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118