देवियो, भाइयो!
साधना की सफलता आन्तरिक पवित्रता- प्रखरता पर निर्भर करती है। वेदमंत्रों के उच्चारण का फल केवल अंतरंग को पवित्र करने से ही मिलता है। राजा दशरथ के यहाँ जब पुत्रेष्टि यज्ञ की बात चली थी, तो गुरु वशिष्ठ ने कहा था कि हमारे सौ बच्चे हो गये हैं। अतः हमारे द्वारा मंत्र पढ़ने से कोई लाभ नहीं होगा। संयम का पालन नहीं होगा, आहार- विहार ठीक नहीं होगा, तो वेदमंत्र का कोई लाभ नहीं हो सकेगा। ऋषियों में एक शृंगी ऋषि थे। उनकी संयम साधना, आहार- विहार साधना अनूठी थी। महिलाओं के सम्बन्ध में उन्हें कुछ भी पता नहीं था। वे जंगल में पले थे। आहार- विहार ठीक होने के कारण उनका अन्नमय कोष परिशोधित था। मनोमय कोश पवित्र था। अतः उस विशेष आयोजन के लिए शृंगी ऋषि को बुलाया गया था। उनके मुख से उच्चारित वेदमंत्रों के द्वारा यज्ञ होने पर दशरथ जी के यहाँ भगवान् के रूप में चार बालक पैदा हुए। भगवान् राम, भगवान् भरत, भगवान् लक्ष्मण, भगवान् शत्रुघ्न पैदा हुए। ये कहाँ से पैदा हुए? ये मंत्रों से पैदा हुए। उसे किसने बोला था? शृंगी ऋषि ने बोला था।
मित्रो! आहार- विहार के सम्बन्ध में परिष्कृत होने के लिए आपको भी तैयार होना चाहिए। हम ब्रह्मवर्चस्