देवियो, भाइयो!
आप सभी जानते हैं कि जब रात्रि समाप्त होती है, तो सूरज पूर्व दिशा से ही निकलता है। सूरज के निकलने की और कोई दिशा है ही नहीं। जब चारों ओर अंधकार छाया रहता है, तब हर एक आदमी ठोकर खाता हुआ फिरता है। उसे न तो दिशा का ज्ञान रहता है और न ही वस्तु का ज्ञान रहता है। सब जगह घोर अंधकार छाया हुआ रहता है। उस समय उलूक, साँप, बिच्छू, चोर, भूत- पलीत और निशाचरों का साम्राज्य छाया रहता है। भले आदमी खर्राटे भरकर सोये हुए रहते हैं। ऐसे अंधकार के समय में जब चारों ओर निस्तब्धता छायी रहती है, हलचलों का नामोनिशान तक नहीं दिखाई देता, नींद की खुमारी सब पर छायी रहती है। घोर अंधकार के समय में सब जगह सुनसान हो जाता है। उस अंधकार को दूर करने के लिए जब कभी सूरज निकलता है, जब कभी ब्रह्ममुहूर्त आता है- ऊषाकाल आता है, तब हमें उसके लिए सूरज को ही देखना पड़ता है। प्राची अपने साथ ऊषाकाल लाती है। प्रातःकाल में ही सूरज की लालिमा चमकती है और वह घोर अंधकार, जो किसी तरह समाप्त नहीं हो सकता, इसको मिटाने के लिए भी कोई समर्थ नहीं हो सकता, वह केवल प्राची से उदय