अध्यात्म का मर्म समझने हेतु बालिग बनिए-४

हमारी पूजा- उपासना का मूल आधार क्या हो? इस पर युगऋषि की अमृतवाणी को तीन अंकों से पढ़ रहे हैं। वे कहते हैं कि कर्मकाण्ड गौण हैं, उनके पीछे जो शक्ति काम करती है वह है आत्मबल। सबसे महत्त्वपूर्ण है आत्मपरिष्कार एवं फिर गुणों का समुच्चय भगवत्सत्ता का सामीप्य। नाला- गंगा बेल- वृक्ष पतंग- डोर आदि के उदाहरणों से उपासना का मर्म समझाने का प्रयास किया गया था। पूज्यवर कर्मव्यवस्था को सर्वोपरि वरीयता देते हैं एवं इसके अनुशासन को मानना अध्यात्म का पहला पाठ बताते हैं। समर्पण और भावनाओं के महत्त्व को उनने समझाया। नारद- प्रकरण के माध्यम से बताया कि मनोकामनाएँ इस तरह पूरी नहीं होतीं। अब पढ़ें समापन किश्त में मर्मस्पर्शी प्रतिपादन उनकी ही अमृतवाणी के माध्यम से—

अध्यात्म महँगा है
मित्रो! जितने भी आदमी भगवान के भक्त हुए हैं, योगी हुए हैं, उनकी भक्ति और योग क्या योगाभ्यास तक, प्राणायाम तक या उपासना तक ही सीमित रही? नहीं, मैं आपको बताना चाहूँगा कि विवेकानन्द आधा घंटा उपासना करते थे- डेढ़ घंटा ध्यान करते थे। और गाँधी जी आधा घंटा सामूहिक प्रार्थना करते थे। लेकिन विवेकानन्द से लेकर गाँधी जी तक का सभी का सारा का सारा जीवन भगवान के क्रियाकलापों को पूरा करने के लिए समर्पित हो गया। बाकी भी जो महामानव हुए हैं, उनके जीवन की ओर जब हम देखते हैं, तो भगवान बुद्ध ने क्या उपासना की, क्या पूजा की, हमें नहीं मालूम। नहीं साहब! आप बताइये कि भगवान ने क्या पूजा की और कोन सा मंत्र जपा? बेटे, हमें नहीं मालूम, लेकिन हाँ उन्होंने अपनी जिंदगी के सारे सुखों को, संसार को, जो उनके जीवन में शामिल थे, हर सुख को अलग फेंक दिया। बच्चे को अलग फेंक दिया। और भगवान की इच्छा पूरी करने के लिए और भगवान की दुनिया को सुन्दर बनाने के लिए अपनी सारी जिंदगी खतम कर दी। यही उनका असली मंत्र था।

नहीं महाराज जी! उसे कहने दीजिए और ये बताइये कि वे कौन सी माला से जप करते थे? बेटे- तू पागल आदमी है, केवल माला पूछता रहता है, मंत्र पूछता रहता है। असली माला नहीं पूछता, जो बड़ी मँहगी पड़ती है। नहीं साहब। सस्ती माला बताइये। सस्ती माला कहीं नहीं बिकती है। अध्यात्म वाली माला मँहगी है, अध्यात्म महँगा है। गाँधी जी कौन सा मंत्र जपते थे, बेटे हमें नहीं मालूम है। हमने उन्हें ‘हरे राम- हरे कृष्ण’ ये कहते देखा था। ईश्वर- अल्लाह तेरो नाम। सबको सन्मति दे भगवान् कहते सुना था। नहीं महाराज जी! कोई तो मंत्र जपते होंगे, उसी से ऐसा चमत्कार वे दिखा सके। यह तो हमें नहीं मालूम, लेकिन इतना मालूम है कि उन्होंने अपने जीवन का एक- एक अंश और एक- एक अंग इतना परिष्कृत बनाया था कि राम और गाँधी में कोई फर्क नहीं रह गया था। नानक जी ने कौन सा मंत्र जपा था? बेटे हमको नहीं मालूम। नहीं साहब! कोई तो किया होगा? बेटे तुम तो बेकार की बहस करते हो, तुझसे हम यह कह सकते हैं कि उन्होंने अपने सारे जीवन का क्रम और स्वरूप ऐसा बना लिया था, जिससे कि भगवान को मजबूर हो करके उनके समीप आना पड़ा।

जीवन साधना महत्त्वपूर्ण विधि या माला नहीं
महाराज जी! नरसी मेहता ने कौन सा जप किया था? बेटे तू बड़ा पागल है। हर दम मंत्र- तंत्र पूछता रहता है। यह नहीं पूछता कि नरसी मेहता ने जिंदगी कैसी जी थी। सुदामा जी ने भक्ति की थी, तो श्रीकृष्ण भगवान के पास कौन सा चावल लेकर के गये थे? महाराज जी आप बता दीजिए कि कितना ले जाऊँ तो मैं भी ले जाऊँ। बेटे, तू बासमती का डेढ़ किलो चावल लेकर श्रीकृष्ण भगवान के मंदिर में चले जाना और फिर यों कहना कि साहब! मैं नहीं देता हूँ......। जब भगवान तुम्हारी पोटली छीन लें, तब कहना कि लाइये, राजपाट दीजिए। मित्रो! पोटली नहीं, सुदामा जी की जिंदगी को देखिये। यह नहीं कि वे कौन सा मंत्र जपते थे, वरन् यह देखिये कि शुरू से अंत तक का उनका जीवन कैसा रहा? जीवन साधना कैसी रही? मित्रो! सारी जिंदगी में साधना करनी पड़ती है। साधना आधे घंटे में नहीं होती। आधे घंटे में तो केवल नशा किया जाता है, जिसका असर कुछ घंटे तक रहता है, किंतु साधना की मस्ती, भक्ति की मस्ती सारे दिन- सारी जिंदगी छायी रहती है। शराब का नशा पाँच मिनट में भी हो सकता है और पन्द्रह मिनट में भी हो सकता है। इसी तरह भजन का नशा जल्दी भी हो सकता है और देर में भी हो सकता है, पर नशा होना चाहिए। अगर नशा नहीं आवे तब? तब तो बैठा रह घंटे भर तक, छ: घंटे तक बैठा रह, नशा तो आना चाहिए। भक्ति का नशा हमारे जिंदगी में आना चाहिए।

आए जिन्दगी में भक्ति का नशा
मित्रो! भक्ति का नशा अगर हमारी जिंदगी में आयेगा, तो आप पायेंगे कि आपके चिंतन और आपके स्वरूप सब बदलने हुए चले जायेंगे। आप सारे के सारे भक्तों के क्रिया- कलापों को मत पूछिये, जप की विधि मत पूछिये, वरन् आप उनके जीवन को देखिये। आप देखिये कि उन्होंने कौन सी भक्ति की थी और किस ढंग से की थी। सुदामा की भक्ति को देखिये। सुग्रीव की भक्ति को देखिये कि उसने किस तरह की भक्ति की थी। अंगद की भक्ति को देखिये, हनुमान् की भक्ति को देखिये। हनुमान् जी का जीवन देखिये। नहीं साहब! कौन से मंत्र का जप किया था और कौन सा अनुष्ठान किया था और कुंडलिनी कहाँ से जगायी थी? हनुमान् चालीसा का पाठ कैसे किया था। बेटे तू बड़ा पागल और जाहिल आदमी है। जाहिल और पागल मैं इसलिए कहता हूँ कि तू केवल कर्मकाण्डों की बाबत मालूम करना चाहता है। कर्मकाण्डों के साथ में जीवन की जो प्रक्रियाएँ जुड़ी हुई हैं उनको सुनना नहीं चाहता, देखना नहीं चाहता, बोलना नहीं चाहता और सोचना नहीं चाहता। नहीं साहब! आप तो हनुमान् चालीसा को गालियाँ देते हैं। नहीं, बेटे मैं गालियाँ नहीं देता, वरन् मैं तो बीसों से कहता रहता हूँ कि जिनको रात में खराब सपने दिखाई पड़ते हैं, बीसों आदमियों से मैंने ये कहा है कि हनुमान् चालीसा सिर के नीचे रखकर सोया कर। रात में मुझे जो वो भूत- प्रेत दिखाई पड़ते हैं और घर के चक्कर लगाते रहते हैं, जो गायत्री माता के जप से भी नहीं डरते, तो फिर तू हनुमान् जी का जप किया कर। हनुमान् चालीसा पढ़ता हुआ सो जाया कर, निकल जाया कर। कोई आया भूत, बस बुला लिया हनुमान् जी को।

जीवन क्रम को बदलना होगा
महाराज जी! तो फिर आप हनुमान् जी की भक्ति को गाली क्यों दे रहे थे? गाली इसलिए दे रहा था कि आप तो हनुमान् चालीसा का पाठ करने तक सीमित हो गये? आपने यह विचार नहीं किया या नहीं करना चाहते कि भक्त को हनुमान् जी जैसा होना चाहिए। भक्त को अपने जीवन का स्वरूप इस तरीके से बनाना चाहिए, जिस तरह से कि हनुमान् जी का श्रेष्ठ जीवन, आदर्श जीवन, उत्कृष्ट जीवन, आकांक्षाओं से रहित जीवन रहा है। ‘राम काज कीन्हें बिना, मोहि कहाँ विश्राम- यह हनुमान् जी का आदर्श है। राम के काम में दिन और रात लगे बिना आप हनुमान् जी की पूजा करना चाहते हैं। नहीं साहब! मैं तो हनुमान् चालीसा का पाठ करूँगा। भाड़ करेगा हनुमान् चालीसा का पाठ, अपने जीवन को सुधारना नहीं चाहता और पाठ करेगा। मित्रो! आप योगाभ्यास का मतलब समझिये। आप जहाँ कहीं भी जाइये, ध्रुव को देख लीजिए, विभीषण को देख लीजिए, हनुमान् जी को देख लीजिए, अर्जुन को देख लीजिए, हर एक को देख लीजिए। आप सांसारिक गुरु भक्ति को देखना चाहें, तो शिवाजी को देख लीजिए कि समर्थ गुरु रामदास का चेला कैसा हो सकता है? इन सबको आप देख लीजिए।

वास्तविक चेला कौन?

नहीं महाराज जी! मैं तो आपका चेला हूँ। आपसे इसलिए गुरुदीक्षा ली थी कि आपकी कृपा हो जायेगी। कहाँ ली थी गुरुदीक्षा? महाराज जी! जब आप वहाँ कोटा- बूँदी गये थे। हाँ बेटे, तब ली होगी, लेकिन बेटे, गुरुदीक्षा ले तो इस तरह की ले, जैसे शिवाजी ने, समर्थ गुरु रामदास से ली थी। मैं तो ऐसी ही गुरुदीक्षा देता हूँ। नहीं साहब! हम तो आप से आशीर्वाद माँगने के लिए गुरुदीक्षा लेते हैं। चालाक कहीं का, हमसे आशीर्वाद पाने के लिए दीक्षा लेता है? हमारा तीस साल का तप ले जाना चाहता है और हमें चवन्नी की माला पहनाना चाहता है, धूर्त कहीं का। तू चेला नहीं, हमारा असली गुरु है। इसलिए मित्रो। चेला बनने के लिए आपको इन खेल- खिलौनों की बात नहीं करनी चाहिए। आपको शिष्य बनना हो तो, मान्धाता जैसा शिष्य बनना चाहिए। मान्धाता किसका शिष्य बना था? शंकराचार्य का। और भगवान बुद्ध का शिष्य बना था- अशोक और हर्षवर्धन। आप ऐसे शिष्य बनिये। नहीं महाराज जी! आप तो हमारे गुरु हैं? नहीं बेटे, तू क्या जाने गुरु और चेला। तू बेकार में गुरु और चेला बकता फिरता है। तूने ये दो शब्द कहीं से सुन लिए हैं कि कोई गुरु होता है और कोई चेला होता है, किन्तु इनका मतलब नहीं समझता है, कि गुरु- चेला का अर्थ क्या है?

         बेटे, गुरु ओर चेला का मतलब होता है- गाँधी और जवाहरलाल नेहरू जैसा, रामकृष्ण और विवेकानन्द जैसा। महाराज जी! हमें भी विवेकानन्द बना दीजिए? हाँ बेटे, वायदा करता हूँ कि मैं किसी को विवेकानन्द बना दूँ, पर पहले तू चेला तो बन। नहीं महाराज जी। आप तो वैसे ही विवेकानन्द बना दीजिए और अमेरिका का टिकट दिलवा दीजिए और जहाँ कहीं भी स्पीच दूँ, वहाँ की फोटो अखबारों में छपवा दीजिए। बेटे तू अपनी चालाकी से बाज़ नहीं आयेगा। हाँ महाराज जी! मैं तो व्याख्यान देकर आऊँगा और फिर नौकरी कर लूँगा। ब्याह- शादी भी अगले साल कर लूँगा और देखिए फिर मैं तीन बच्चे भी पैदा करने वाला हूँ और विवेकानन्द भी बनने वाला हूँ। हाँ बेटे तू बड़ा होशियार है। सारी होशियारी तो तेरे हिस्से में ही आ गयी है। हाँ महाराज जी! मुझे विवेकानन्द बना दीजिए। तुझे पागल को विवेकानन्द बना दें?

पात्रता का विकास करें
मित्रो, क्या करना पड़ेगा? आपको आध्यात्मिकता के उन सिद्धान्तों को जीवन में समाविष्ट करना पड़ेगा और अपनी पात्रता और प्रामाणिकता बढ़ाती चाहिए। स्वाति नक्षत्र में पानी की बूँदें सीप में गिरती हैं और उसमें मोती बनता है। हर जगह मोती नहीं बनता। आपको मोती वाली सीप बनना चाहिए और मुँह खोलना चाहिए, ताकि स्वाति की बूँदें आपके अन्दर प्रवेश करने में समर्थ हो सकें। बरसात होती है, तो किसी बर्तन में केवल उतनी ही मात्रा में पानी जमा होता है, जितनी कि उसके पास जगह होती है। आप अपने बर्तन का आकार बढ़ाइये, ताकि भगवान की कृपा और भगवान का अनुग्रह और गुरु का आशीर्वाद आपके ऊपर छाया रहे और आप उसको हजम कर सकें तथा उसको धारण कर सकें। धारण करने की ताकत इकट्ठी कीजिए। धारण करने की ताकत नहीं है और दुनिया भर से माँगते फिरते हैं। आप उसे रखेंगे कहाँ पर? नहीं साहब! आप तो आशीर्वाद दीजिए। बेटे हम आशीर्वाद तो दे भी दें, पर तू उस आशीर्वाद को रखेगा कहाँ पर? उसे रखने के लिए तेरे पास जगह भी है या नहीं? नहीं महाराज जी! धी दे दीजिए। अच्छा, बेटे दे देंगे, लेकिन इसे रखेगा किसमें? महाराज जी! कुत्ते में ले लूँगा। ठीक है, कुत्ते में ले ले घी, लेकिन इससे तेरा कुर्ता भी खराब हो जाएगा, धोती भी खराब हो जाएगा और घी भी फैल जाएगा। नहीं महाराज जी! आप तो दे सकते हैं? कैसे दें, लेगा कहाँ? आशीर्वाद को लेने के लिए ताकत चाहिए। हजम करने के लिए शक्ति चाहिए, उसको धारण करने के लिए क्षमता चाहिए। आप अपने भीतर उस क्षमता को पैदा कीजिए, फिर हम दे देंगे आशीर्वाद।

इच्छा भगवान को सौंप दें
   मित्रों! पात्रता का विकास यही है, जिसके आधार पर हमारी भक्ति सफल होती हुई चली जाती है। भगवान की नाव पर सवार होकर के हम अपने आपको पार कर सकते हैं। हवा की तरीके से ऊँचे उठते हुए चले जा सकते हैं, लेकिन इसके लिए हमको एक काम करना पड़ेगा। हमको अपनी इच्छाएँ भगवान को सौंपनी पड़ेंगी। आप अपनी इच्छाएँ सौंप दीजिए ओर भगवान की बिरादरी में शामिल हो जाइये और यह कहिये कि अब हमारी कोई इच्छा नहीं है। अब भगवान की इच्छा ही हमारी इच्छा है। आप चलाइये, हम अपने जीवन की नीति का निर्धारण उसी तरीके से करेंगे। हम अपने विचारों का और दृष्टिकोण का नवीनीकरण इस तरीके से करेंगे जैसे भगवान की शास्त्रों की, आदर्शों और सिद्धान्तों की प्रणाली है। बेटे, हमने यही किया। हम योगी हैं। कौन सा योग करते हैं? बेटे हम शीर्षासन करते हैं। अच्छा तो गुरुजी! आप शीर्षासन में सिर के बल चलना शुरू कर देते हैं? नहीं बेटे, ऐसे तो नट करता है। तो फिर आप नाक में से पानी निकालते हैं? नहीं बेटे। तो फिर आप कैसे योगी हैं। बेटे हम ऐसे योगी हैं कि हमने अपने गुरु को भगवान माना है और उनसे यह कहा है कि आप हुकुम दीजिए और हम आपके साथ- साथ चलेंगे। सारी जिंदगी भर- पचास वर्ष हो गये, पंद्रह वर्ष की उम्र से लेकर के आज सड़सठ वर्ष की उम्र तक हमारे मन में दूसरा कोई ख्याल नहीं आया। एक ही ख्याल आया कि उत्तर की तरफ मुँह करके यह पूछते हैं कि हमारे मार्गदर्शक- हमारे मास्टर हुकुम दें, ताकि हमारी बची हुई हड्डियाँ बचा हुआ माँस बचा हुआ रक्त, बचा हुआ धर्म और हमारी क्षमताएँ आपके काम आ सकें और हम आपके हुकुम के लिए काम आ सकें। इसके अतिरिक्त हम कुछ और नहीं सोचते हैं।

कामनाओं का विसर्जन
मित्रों! उसका परिणाम क्या हुआ? उसका परिणाम यह है कि उनकी शक्तियाँ, उनकी सामर्थ्य, उनका तप, उनकी क्षमता हमारे पास असंख्य मात्रा में उड़ती हुई चली आती है। हमने एक सेर अपना कमाया है, तो निन्यानवे सेर गुरु का खाया है। हमारा संबंध उसी रिजर्व बैंक से है। हमारे बैंक में तो पैसा रहता नहीं है, लेकिन हम ड्राफ्ट काट देते हैं, दूसरों को चेक दे देते हैं। कहाँ से पैसा आ जाता है? रिजर्व बैंक से आ जाता है। हमने अपने आपको रिजर्व बैंक में ‘मर्ज’ कर दिया है, इसलिए रिजर्व बैंक हमारे ‘क्रेडिट’ और डेबिट- दोनों को संभालती है। इसलिए मित्रो! आप हिम्मत कीजिए, अपने कलेजे को कड़ा कीजिए, बहादुर बनिये और एक चीज त्याग दीजिए, जिसको इच्छा कहते हैं, कामनायें कहते हैं। आप अपनी कामनायें भगवान के ऊपर मत थोप दीजिए। आप अपनी कामनाएँ खत्म कर दीजिए और भगवान की कामनाओं को अपने रोम- रोम में बसाकर के ले जाइये। आप योग्य हो जाइए। अगर आप भगवान में मिल गये, उनकी कामनाओं में शामिल हो गये, अगर आप बूँद की तरह समुद्र में शामिल हो गये, फिर आप भक्ति का कमाल देखिये, भक्ति का चमत्कार देखिये। फिर भगवान की सामर्थ्य का, भगवान की कृपा का चमत्कार देखिए। फिर योगाभ्यास का चमत्कार देखिये। योग ऐसा ही होना चाहिए। उल्टा चलने वाला, नाक में से पानी पीने वाला, पेट में से हवा निकालने वाला योग नहीं है। आप योगी बनिये, फिर उसका मजा देखिये कि उसका क्या फायदा हो सकता है।

दुखों को सहना, तप करना

साथियों! दूसरा हिस्सा है- तप तप किसे कहते हैं? बेटे, तप उसे कहते हैं कि कुछ मुसीबतें तो हमारे भाग्यवश आती हैं, परिस्थितिवश आती हैं। कुछ मुसीबतें ऐसी होती हैं, जिन्हें हम सिद्धान्तों की वजह से, आदर्शों की वजह से अपने आप बुलाकर स्वीकार करते हैं। इसका नाम है- तप मुसीबतें किसके पास नहीं बाती, बताना जरा? आपमें से किसी के पास मुसीबतें आई? हाँ महाराज जी। हमारे व्यापार में बहुत घाटा हो गया। आपमें से इन मुसीबतों से कोई बचा हुआ है क्या? कोई एक भी आदमी बताये मुझे। कहा गया है- रे रे मनुष्य: वदति अतिसुखम्.......’’। अर्थात् अरे मनुष्यों। किंचित् तुममें से कोई एक आदमी भी ऐसा हो, जो ये कह सकता हो कि हमने सारी जिंदगी सुख के साथ व्यतीत कर ली, आपमें से कोई हो तो, हमें बताओ। एक भी नहीं है। हर एक के ऊपर मुसीबतें आती हैं, आएँगी और आनी चाहिए। क्योंकि सुख जहाँ हमें उन्नति की ओर ले जाते हैं वहीं दुःख और मुसीबतें हमें सावधानी की ओर ले जाती हैं, सतर्क बनाती हैं, मजबूत बनाती हैं, बहादुर बनाती हैं। हमारे ज्ञान और धर्म को सही करती हैं। दुःख भी अपने आपमें जरूरी है। शक्कर भी जरूरी है, नमक और मिर्च भी जरूरी है। दोनों के बिना साग नहीं बन सकता।



आदर्शों के लिए करें गरीबी स्वीकार

मित्रों! दुखों की अपनी उपयोगिता है तो सुखों की अपनी उपयोगिता है। लेकिन जब हम दुखों को सिद्धान्तों के लिए, आदर्शों के लिए इच्छा पूर्वक स्वीकार करते हैं, जब हम उन्हें बुलाते हैं कि आप आइये, हम सिद्धान्त का जीवन जीना चाहते हैं, आदर्श का जीवन जीना चाहते हैं, तो हमें स्वेच्छा से गरीबी मंजूर करनी पड़ती है। गरीबी के बिना आध्यात्मिक जीवन प्रारंभ नहीं हो सकता। एक गरीबी थोपी हुई होती है और एक गरीबी इच्छानुकूल ली हुई होती है। इसका क्या मतलब होता है? इसका मतलब होता है कि हम अपने आपमें किफायतसारी बनें। कम से कम में, न्यूनतम में जितनी भी हमारी आवश्यकतायें पूरी की जा सकती हैं, उतने में पूरी करें। इसके बाद जो बाकी हमारे पास पैसा बच जाता है, श्रम बच जाता है, समय बच जाता है, अकल बच जाती है, उन सारी की सारी चीजों को बचत करने के पश्चात् उसे भगवान के तई लगायें, समाज के तई लगायें, श्रेष्ठ कर्मों के तई लगायें। ये तप कहलायेगा। कैसे कहलायेगा? क्योंकि इसमें आपको मुसीबतें उठानी पड़ेंगी, अपने आपको तंग करना पड़ेगा। आप किफायतसार बनेंगे, तो आपको तंगी आयेगी कि नहीं? फिर आपको कैसे अच्छा खाना मिल सकता है, जब आपको यह मालूम पड़ेगा कि हम इस गरीब मुल्क में रहते हैं, जिसमें मनुष्यों को दोनों वक्त का भोजन नहीं मिलता। फिर आप मक्खन की डिमाण्ड नहीं कर सकते, दूसरी चीजों की डिमाण्ड नहीं कर सकते।

अपने लिए कम औरों के लिए ज्यादा

तप का आरंभ यहीं से होता है, जिसको हम भूखा रहने के माध्यम से शुरू कराते हैं, तप में क्या- क्या नियम पालन करने पड़ते हैं? गायत्री अनुष्ठानों में हम आपको तप के नियम पालने के लिए कहते हैं। हम कहते हैं कि आप तपस्वी बनिये और तप करने के छोटे- छोटे नियम हम आपको बताये देते हैं। जीभ पर काबू रखिये, उपवास कीजिए, भूखे रहिये, ब्रह्मचर्य से रहिये, जमीन पर सोइये, अपने शरीर की सेवा स्वयं कीजिए। यह सारे के सरे तप के नियम हम आपको बताते हैं। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब केवल इतना है कि हम मुसीबतों का स्वेच्छा से अभ्यास करें, तितिक्षा का हम स्वेच्छा से अभ्यास करें। अगर हमें गरीबी में रहना पड़ें, कंगाली में रहना पड़े, किफायतसारी में रहना पड़े तो हम कम खर्चे में भी काम चला सकें। तप यहीं से प्रारंभ होता है। तप का दूसरा पक्ष है- सादा जीवन उच्च विचार’’। उच्च विचार वही आदमी कर सकता है जो ‘‘सादा जीवन’’ में विश्वास करता है। ब्राह्मण के लिए, साधू के लिए यही नियम बताया गया है कि उसे किफायतसार होना चाहिए, मितव्ययी होना चाहिए, अपरिग्रही होना चाहिए। इसका क्या मतलब है? इसका एक ही मतलब है कि जो कुछ भी आपके पास है, अपने लिए उसका कम से कम इस्तेमाल करें और ज्यादा से ज्यादा समाज को दें।

प्राणवान बनिये, कष्ट उठाइए

मित्रो! तप वहाँ से प्रारंभ होता है, जबकि हमको भिन्न- भिन्न कामों के लिए कष्ट उठाने के लिए तैयार रहना पड़ता है। आपने देखा होगा कि अच्छे काम करने वालों को गालियाँ पड़ती हैं। समाज सुधारकों को रोज गालियाँ पड़ती हैं। स्वामी दयानंद को जहर खिला दिया गया। गाँधी जी को गोली मार दी गई। श्रीकृष्ण को तीर से मार दिया गया। वे सब, जिन्होंने समाज की विकृतियों से लोहा लिया, सबको मुसीबतें उठानी पड़ीं। आप स्वेच्छा से तैयार हो जाइये और कहिये कि मुसीबतों आपका स्वागत है। कठिनाइयों आपका स्वागत है। लोग आपको गाली देंगे। गालियाँ देने वालो आपका स्वागत है। बेटे, मैं तो हरदम कहता रहता हूँ कि गाँधी के चेलों ने गोलियाँ खाई थीं। आचार्य जी का जो कोई चेला बनना चाहता है वह कम से कम गालियाँ खाकर के आये। ‘बॉस’ की गाली खाकर के आये, बीवी की गाली खाकर के आये। पड़ोसी की गाली खाकर के आये। जब आप श्रेष्ठ सिद्धान्तों को कार्य रूप में परिणत करने के लिए खड़े हो गये हों, तो जिन- जिन लोगों के स्वार्थों को आघात पहुँचता होगा, वे सब आपकी बुराई करेंगे और ढेरों गालियाँ देंगे, रात को नुकसान कर जायेंगे। ‘बॉस’ आपका ट्रांसफर करा देगा, करेक्टर रोल खराब कर देगा, जुर्माना करा देगा। मित्रो! आपको मुसीबतें और कठिनाइयाँ उठाने के लिए तपस्वी का जीवन जीना चाहिए। अपने अंदर क्षमताओं का विकास करना चाहिए। आपको उदार बनना चाहिए, दानी बनना चाहिए। आपको प्राणों से भरा होना चाहिए, ताकि आप मुसीबतें उठा सकें।

मैं तो कंगाल बना सकता हूँ

नहीं, महाराज जी! आप तो हमें आमदनी करा दीजिए, बीमा दिलवा दीजिए। नहीं बेटे, मैं ऐसा नहीं करा सकता। तू अध्यात्म मार्ग पर चलने की हिम्मत करता है, तो मैं तुझे कंगाल बना सकता हूँ। देख राजा भर्तृहरि को कंगाल बनना पड़ा, राजा हरिश्चंद्र को कंगाल बनना पड़ा, ध्रुव को कंगाल बनना पड़ा। गोपीचन्द को कंगाल बनना पड़ा, बुद्ध को कंगाल बनना पड़ा, रामचंद्र जी को कंगाल बनना पड़ा, भरत जी को कंगाल बनना पड़ा, भगवान के भक्तों में से हर एक को कंगाल बनना पड़ा। नहीं महाराज जी! आप तो हमें अमीर बना दीजिए। नहीं बेटे, मैं अमीर नहीं बना सकता। अमीर बनने की तेरी इच्छा है, तो राम नाम लेना बंद कर, फिर मैं एक और मंत्र तुझे बता सकता हूँ। उसका नाम है रावण। तू रावण के नाम का जप कर, क्योंकि रावण के पास एक सोने की लंका थी। बाल- बच्चे भी थे। तू रावण का पाठ किया कर और ‘रावणाय नम:- रावणाय नम:’ का जप किया कर। इससे शायद लक्ष्मी जी भी आ सकती हैं। पैसा भी आ सकता है। राम के नाम से नहीं आएगा। राम के नाम से तुझे तपस्वी जीवन जीना पड़ेगा। ब्रह्मचर्य रहना पड़ेगा और मर्यादाओं का पालन करना पड़ेगा नहीं साहब! रामचंद्र जी का जप करूँगा और पैसा कमाऊँगा। बेटे, ऐसा नहीं हो सकता।

तप से आयेगी मजबूती

मित्रो! तपस्वी का जीवन जीने के लिए आपको हिम्मत और शक्ति इकट्ठी करनी चाहिए। तपाने के बाद हर चीज मजबूत हो जाती है। कच्ची मिट्टी को जब हम तपाते हैं, तो तपाने के बाद मजबूत ईंट बन जाती है। कच्चा लोहा तपाने के बाद स्टेनलेस स्टील बन जाता है। पारे को जब हकीम लोग तपाते हैं, तो पूर्ण चन्द्रोदय बन जाता है। पानी को गरम करते हैं, तो भाप बन जाता है और उससे रेल के बड़े- बड़े इंजन चलने लगते हैं। कच्चे आम को पकाते हैं, पका हुआ आम बन जाता है। जब हम वेल्डिंग करते हैं, तो लोहे के दो टुकड़े जुड़ जाते हैं। उस पर जब हम शान धरते हैं, तो वह हथियार बन जाता है। बेटे यह सब गलने की निशानियाँ हैं। आपको अपने ऊपर शान धरनी चाहिए और भगवान के साथ वेल्डिंग करनी चाहिए। आपको अपने आपको कितना तपाना चाहिए कि आप पानी न होकर स्टीम-भाप बन जायें। कौन सी वाली स्टीम? जो रेलगाड़ी को धकेलती हुई चली जाती है। यह गर्मी के बिना नहीं हो सकता। गुरुजी! हम तो मुसीबतों से दूर रहेंगे। आप मुसीबतों से दूर नहीं रह सकते। तपस्वी जीवन, आध्यात्मिक जीवन मुसीबतों से दूर नहीं रखा जा सकता। गुरुजी! आप तो ऐसी कृपा कीजिए कि हमारी जिंदगी शांति से व्यतीत हो जाये। शांति से तेरा क्या मतलब है? शांति से मेरा मतलब चैन से है। नहीं बेटे, चैन की जिंदगी नहीं हो सकती। संघर्ष करने के बाद, अशान्ति को नष्ट करने के बाद जब हमको शांति मिलती है, विजयश्री मिलती है, उसी का नाम ‘शान्ति’ है। संतोष का नाम शान्ति है। संतोष श्रेष्ठ काम करने वालों को मिलता है। सफल को भी मिल सकता है, असफल को भी मिल सकता है। गरीब को भी मिल सकता है, अमीर को भी मिल सकता है। आपको तपस्वी बनने के लिए यही करना चाहिए।

योग एवं तप बनें जीवन के अंग

मित्रो! हमने लोगों को यज्ञ की शिक्षा दी है। हम यज्ञ की प्रक्रिया बताते हैं, यज्ञ का प्रचार करते रहते हैं, गायत्री का प्रचार करते रहते हैं। ‘‘धियो यो न: प्रचोदयात्’’ की शिक्षा देकर विवेक की शिक्षा देने के लिए, दूरदर्शिता की शिक्षा देने के लिए लोगों को हम योगी बनाते हैं। इसके लिए सबेरे आपको यज्ञ कराते हैं, गायत्री मंत्र का अनुष्ठान भी कराते हैं। यज्ञ का प्रचार हम इसलिए करते हैं कि लोगों में यज्ञीय वृत्ति पैदा हो जाये। यज्ञ में हम अपनी चीजों को हवन कर देते हैं, जला देते हैं, हवा में बिखेर देते हैं। समाज की संपदा बना देते हैं। आग जिस किसी को भी अपने पास पाती है, उसे अपने समान बना लेती है। आग अपना मस्तक नीचे नहीं झुकाती। यज्ञ हमारे इस शरीर में भी चल रहा है। यज्ञ आसमान में भी चल रहा है। पानी बादलों से बरसता है। बादल जमीन में से, समुद्र में से पानी लेकर के बरसते हैं और यह चक्र पानी का चलता रहता है। शरीर में भी चक्र चल रहा है। हाथ बनाते हैं, पेट खाता है। यह चक्र बराबर चल रहा है। इस चक्र को आप कायम रखें। एक दूसरे की मदद करें, एक दूसरे की सेवा करें, एक दूसरे की सहायता करें। हमने आपको तपस्वी बनने के लिए यज्ञ की शिक्षा दी है। यज्ञ का आंदोलन वास्तव में तपस्या का आंदोलन है, कष्ट सहने का आंदोलन है। खुशी- खुशी से कष्ट सहने के लिए, त्याग और बलिदान करने के लिए, खुशी- खुशी से सेवा करने के लिए आपके भीतर से प्रेरणा और उमंग उत्पन्न करने के लिए हमने यह आंदोलन चलाया। इसका अर्थ है- तप हमने गायत्री मंत्र का विस्तार इसलिए नहीं किया है कि आप मालदार होते हुए चले जायें और अमीर होते हुए चले जायें। हमने गायत्री मंत्र का विस्तार इसलिए किया है कि आपमें विवेकशीलता और समझदारी की शक्ति का विकास हो। अर्थात् योग अर्थात् गायत्री और तप अर्थात् यज्ञ यह हमारे आध्यात्मिकता के दोनों पहलू हैं, जो आपके व्यक्तित्व को श्रेष्ठ बनाते हैं।
आज की बात समाप्त


ॐ शान्ति:






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