श्रावणी पर्व पर प्रज्ञा परिजनों के नाम संदेश

हमारे ध्यान के दो ही केन्द्र हैं। एक तो भगवान् जिसने हमको रास्ता बताया जो हमारी पीठ पर है जो हमको धकेलता रहता है। खींचता रहता है एक भगवान् वह। एक भगवान् आप लोग हैं जो हमारे कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं हाथ- पाँव के तरीके से काम करते हैं आँख, कान, दाँत की तरीके से हमारे क्रियाकलापों में सहयोगी रहते हैं। आप लोग भी एक तरह के भगवान् हैं दो भगवान् हैं एक निराकार है एक साकार है आप लोग साकार भगवान् के रूप में दिखाई पड़ते हैं। आज अनायास ही ध्यान हो आया कि आप लोगों से अपने जी की बात कहूँ। हमने बहुत काम किया है अभी तो लोगों को नहीं मालूम पड़ता इस समय पर। पीछे जो मूल्यांकन करेंगे तब लोगों को पता चलेगा कि एक छोटे से मिशन ने जिसने विज्ञापन बाजी भी नहीं की। अखबारों में भी लेख नहीं छपायें कुछ और भी नहीं किया मुनादियाँ भी नहीं पीटी पर इतना बड़ा काम कर लिया जितना कि शायद ही किसी और संस्था ने किया होगा। न केवल हिन्दुस्तान में बल्कि हिन्दुस्तान से बाहर भी बहुत काम किया है हमने, ठोस काम किया है। ठोस काम कैसे किया है हमने। हमने जो ठोस काम किया है हम में आप सब लोग शामिल हैं। यह कैसे उठाया, यह बर्तन कैसे साफ किये हाथ की सहायता से किये। हाथ न होता तो? तो नहीं कर सकते थे। आप हमारे सहयोगी हैं। साथी है मित्र हैं सबने मिलजुलकर एक बड़ा काम किया है एकाकी यह काम कर सकना संभव नहीं था हमारे लिये। किसी के लिए भी संभव नहीं था। भगवानों के लिए भी संभव नहीं हुआ।

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