परिष्कृत मनःस्थिति ही स्वर्ग है

देवियो, भाइयो! भगवान की समीपता और कृपा पाने के लिए जिन दो कार्यों की आवश्यकता होती है, उनका विवेचन हम इन शिविरों में करते आ रहे हैं । इन सबका एक ही उद्देश्य है कि आप लोग जो यहाँ आए अब यहाँ से जाने के साथ-साथ भगवान के साथ रिश्ता मजबूत बनाते हुए जाएँ । रिश्ता मजबूत करने के साथ-साथ उनकी कृपा भी प्राप्त करें । भगवान का रास्ता अपनाना केवल धार्मिक कर्मकांड ही नहीं है, केवल परलोक की तैयारियों ही नहीं है, मरने के बाद मुक्ति या स्वर्गलोक प्राप्त करने का आधार ही नहीं है, बल्कि इसी जीवन में सुख और शांति से ओत-प्रोत होने का रास्ता है । मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा या नहीं? यह हम नहीं जानते, लेकिन इसी जीवन में स्वर्ग स्थापित कर सकते हैं, आध्यात्मिक साधना के मार्ग पर चलते हुए । मित्रो! साधना नगद धन है, यह उधार नहीं । कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिनका परिणाम तुरंत मिलता है,लेकिन कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिनका परिणाम तुरंत नहीं मिलता । विद्या पढ़ने का परिणाम शायद तुरंत न मिले, लेकिन जहर खाने का परिणाम तुरंत ही मिल जाता है । गलत काम करने के परिणाम देर से मिलें, लेकिन अपने दोष और दुर्गुणों के परिणाम तुरंत ही मिल जाते हैं। इसी तरीके से अध्यात्म एक ऐसी प्रक्रिया का नाम है, जो मनुष्यों को तुरंत लाभ प्रदान करती है, जिसका परिणाम तुरंत मिलता है ।

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