गीत संजीवनी-2

चरणों में तेरे जीना मरना

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चरणों में तेरे जीना मरना, अब दूर यहाँ से जाना क्या।
एक बार जहाँ सिर झुक जाये, फिर सर को वहाँ से उठाना क्या॥

चरणों में तेरे बालक सारे- प्रभु शीश झुकाये बैठे हैं।
दो हुक्म हमें प्यारे सद्गुरु- हम पेश करें नज़राना क्या॥

मन भी तेरा हम भी तेरे- हर श्वाँस अमानत तेरी है।
जब नज़र कृपा की हो ही गई- फिर दिल का यूँ घबराना क्या॥

मन को भरमाने की ख़ातिर- हमें बहुत भुलावे आते हैं।
प्रभु प्यार का सिर पर हाथ रहे- फिर और के दर पर जाना क्या॥

किसी और गरज़ की ख़ातिर तो- ये हाथ जो अब उठते ही नहीं।
जब दिल में कोई ख़्वाहिश ही नहीं- तो दामन का फैलाना क्या॥

जो प्यार में तेरे मिल जायें- वो काँटे फूल से बेहतर हैं।
तेरा प्यार जो मेरे साथ रहे- तो गुलशन और वीराना क्या॥

मुक्तक-

यह तन विष की बेलरी- गुरु अमृत की खान।
शीश दिये जो गुरु मिलें- तो भी सस्ता जान॥
गुरु मूरत मुख चन्द्रमा- सेवक नयन चकोर।
अष्ट प्रहर निरखत रहूँ- श्री गुरु चरण की ओर॥    
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