गीत संजीवनी-4

इन्द्रधनुष- सी छटा सुहानी

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इन्द्रधनुष- सी छटा सुहानी

इन्द्रधनुष- सी छटा सुहानी- आज गगन में छाई।
दो आत्माओं के मिलने की- मंगल वेला आई॥

सखियों- स्वजनों ने मिल करके दुल्हन आज सजाई।
शुभ विवाह संस्कार है पावन, बजती है शहनाई॥
पाणिग्रहण के अवसर पर- उल्लास मनों में छाया।
नई वधू का स्वागत करने- हृदय हर्षाया॥
बजी ढोलकें, गाईं सबने- भावों भरी बधाई॥

जीवन का यह पथ अनजाना- पर न तनिक घबराना।
परमेश्वर का कार्य समझकर- आगे कदम बढ़ाना॥
जब भी उलझन हो,सुन लेना- गुरु के निर्देशों को।
शान्त- संतुलित रह,आने मत- देना आवेशों को॥
इसे साधना समझा, तो फिर सद्गृहस्थ सुखदाई॥

सेवा, संयम और सहिष्णुता- दोनों को अपनाना।
धार- कूल या गंध- फूल जैसे पूरक बन जाना॥
पग- पग होगी, संस्कारों की- शुचिता अनुभव तुमको।
आत्मा का संतोष बनेगा- फिर शुभ वैभव तुमको॥
गुरु सत्ता ने तुम पर अपनी- अनुकम्पा बरसाई॥

एक दूसरे की कमियों पर- पल पल ध्यान न देना।
जो भी गुण हों, उन्हें परस्पर आत्मसात कर लेना॥
दोनों की प्रतिभाएँ विकसित हों- यह सदा प्रयास रहे।
शंकित कभी न हो मन, ऐसा आपस में विश्वास रहे॥
मंत्रों के माध्यम से ऋषि ने- यही बात समझाई॥

मुक्तक-


आओ विवाह में स्वागत है- हम गीत खुशी के गायेंगे।
सद्भावों से नव दम्पति के, जीवन को धन्य बनायेंगे॥
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