व्याख्या- परम पूज्य गुरुदेव का कथन है ‘‘खर्चीली शादियाँ हमें दरिद्र और बेईमान बनाती है,’’ इसी ने दहेज जैसी कुप्रथा को जन्म दिया है। इसके कारण कितनी ही बच्चियाँ बिन व्याही रह जाती है। हमें इसे मिटाना ही होगा। दहेज रूपी दानव को भगाना पड़ेगा।
स्थाई- इस दहेज ने ही फैलाया, भारी अत्याचार है।
इस दानव को मार भगाओ, यह समाज का भार है॥
व्याख्या- यह एक कटु सत्य है चाहे कितने ही प्रगतिशील विचारों
के हम हो लेकिन बेटे एवं बेटी का भेद हमारे क्रियाकलापों एवं
लोकव्यवहार में दिखाई पड़ता है। पुत्र जन्म लेने पर खुशियाँ एवं
बेटी के जन्म लेते ही माथे पर चिन्ता की लकीरें खींच जाती हैं
कारण एक ही है, बेटी हेतु दहेज की चिन्ता।
अ.1- पुत्र जन्म लेते ही घर में, लहर खुशी की छा जाती॥
लेकिन कन्या इस धरती पर, एक समस्या बन जाती॥
कैसे हाथ करेंगे पीले, यदि अभाव घर में धन का।
घर- वर दोनों ठीक चाहिए, प्रश्न समूचे जीवन का॥
बात सैकड़ों की न कहीं भी, पहला अंक हजार है॥
व्याख्या- देश के कुछ हिस्से में तो लकड़ियों
को इसलिए नहीं पढ़ाते कि पढ़ी लिखी लड़की के लिए ज्यादा दहेज की
व्यवस्था करनी पड़ेगी। इस दहेज रूपी राक्षस के आगे बहुतों ने
घुटने टेक दिये, और आत्महत्या करने के लिए आमादा हो गये। आये दिन
अखबारों में हम यही पढ़ते रहते हैं।
अ.2- शिक्षित और सुशील सुपुत्री, रूप गुणों की उजियारी।
किन्तु पिता के पास नहीं धन, इसीलिये बैठी क्वाँरी॥
चिन्ता ही दहेज की निशदिन, किये यहाँ हैरान बड़ा।
एक तरफ शादी का सौदा, एक तरफ ईमान खड़ा॥
परेशान होकर बहुतों ने, छोड़ दिया संसार है॥
व्याख्या- ‘‘यस्य नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’’
की उक्ति में नारी को पूजने और घर को स्वर्ग बनाने का संकेत
है। फिर नारी को नर से कमजोर क्यों माना जाता है। लड़कों के आगे
क्यों उसकी नीलामी की जाती है, क्यों बोली लगायी जाती है। नई
पीढ़ी को इस कुरीति से मुक्त कराने एवं बिना दहेज विवाह करने का
संकल्प लेना चाहिए।
अ.3- नारी का क्या मूल्य न कोई- क्या वह पशु से दीन कहो।
नर की तुलना में क्यों इसको, माना इतना हीन कहो॥
लड़के वाला लेन- देन में, कितनी अकड़ दिखाता है।
नीलामी जैसी बोली वह, नेगों की लगवाता है॥
यह पुनीत सम्बन्ध नहीं है, निन्दनीय व्यवहार है॥
व्याख्या- दहेज के दानव ने ही जन साधारण को घूस, मिलावट, चोर- बाजारी,
बेईमानी के लिए प्रेरित किया है। हमें इस दहेज के दानव को
मिलजुलकर खत्म करना होगा। तभी समाज का, परिवार का और नारी शक्ति
का उद्धार हो पायेगा।
अ.4- इस कुरीति ने दुष्कृत्यों की, बाढ़ भयंकर फैलायी।
घूस, मिलावट, चोर- बजारी बेईमानी सिखलायी॥
ओ समाज के ठेकेदारों, कुम्भकरण बन सोते हो।
अनाचार से आँख फेरकर, बीज पाप के बोते हो॥
पैसे को भगवान समझकर, रचा क्रूर व्यवहार है॥