इस धरा के लिये
इस धरा के लिए, इस गगन के लिए॥
हम जियेंगे- मरेंगे वतन के लिए।
इसकी माटी को चन्दन सा महकायेंगे।
इसके कण- कण को तारों सा चमकाएँगे॥
अपने कदमों को आगे बढ़ाते हुए।
इस वतन पर सभी कुछ लुटा जायेंगे॥
हम जियेंगे नई रोशनी के लिये।
सारा सुख- दु:ख भी मंजूर है साथियों।
हौसला हम में भरपूर है साथियों॥
आओ हम सब गले से गले मिल चलें।
अब न मंजिल बहुत दूर है साथियों॥
सारी दुनियाँ में चैनो अमन के लिये।
यह अँधेरा मिटा करके दम लेंगे हम।
भेद सारा मिटा करके दम लेंगे हम॥
हर घरों को जो किरणों का उपहार दे।
वह सबेरा बुलाकर के दम लेंगे हम॥
आदमी- आदमी की खुशी के लिये।
मुक्तक-
प्राण से प्रिय हमारे लिए है वतन, स्वर्ग से भी बड़ा है हमारा वतन।
रक्त से भी अगर सींचना पड़ गया, बेहिचक सींच देंगे वतन का चमन।