गीत संजीवनी-4

इतनी शक्ति हमें देना दाता

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इतनी शक्ति हमें देना दाता

इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना।
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे, भूलकर भी कोई भूल हो ना॥

हर तरफ जुल्म है बेवसी है, सहमा- सहमा सा हर आदमी है।
पाप का बोझ बढ़ता ही जाये, जाने कैसे ये धरती थमी है।
बोझ ममता का तू जो उठाले, तेरी रचना का ये अन्त हो ना॥

हम अँधेरे में हैं रोशनी दे, खो न दें खुद को ही दुश्मनी से।
हम सजा पायें अपने किये की, कष्ट भी हो तो सहलें खुशी से।
कल जो गुज़रा है फिर से न गुज़रे, आने वाला वो कल ऐसा हो ना।

दूर अज्ञान के हों अँधेरे, तू हमें ज्ञान की रोशनी दे।
हर बुराई से बचते रहें हम, जितनी भी दे भली जिन्दगी दे।
बैर हो ना किसी का किसी से, भावना मन में बदले की हो ना॥

हम न सोचें हमें क्या मिला है, हम ये सोचें किया क्या है अर्पण।
फूल खुशियों के बाटें सभी को, सबका जीवन ही बन जाये मधुवन।
अपनी करुणा का जल तू बहाके,कर दे पावन हर एक मन का कोना॥

मुक्तक-


आत्मविस्तार की शक्ति देना हमें, श्रेष्ठ पथ से ही अनुरक्ति देना हमें।
दूर अज्ञान हो साथ सद्ज्ञान हो, लोक मंगलमयी भक्ति देना हमें॥
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