युग गायन पद्धति

उठो सुनो प्राची से उगते

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टिप्पणी- सुनने वाले सुनो, उदीयमान सूर्य के साथ नवयुग का संदेश उतरा है कि यह भारत देश प्राचीन काल की तरह फिर संसार का सिरताज बनेगा। उसे एक बार फिर जगद्गुरु, चक्रवर्ती, स्वर्ग, सुमेरु, स्वर्ग देश, देव निवास आदि कहलाने का गौरव फिर से प्राप्त होगा॥

स्थाई- उठो सुनो प्राची से उगते, सूरज की आवाज।
अपना देश बनेगा सारी, दुनियाँ का सरताज॥

यह भारत वर्ष ही है जिसने संसार में सबसे पहले ज्योति फैलाई है। इसी देश के देवमानवों ने जीवन दर्शन सिखाया और संस्कृति के उच्च शिखर तक पहुँचने का मार्ग दिखाया। विज्ञान और आत्मज्ञान की किरणें यहीं से उदय होकर संसार भर में फैली। मनुष्य को भव बंधनों से मुक्त कराने का श्रेय इस देश के ऋषियों को मिला। इतिहास में अनेकों बार ऐसे अवसर आये कि मनुष्य की लाज डुबती दिखी पर उसे उबारने में इस देश का पुरूषार्थ ही चमत्कारी परिवर्तन कर सका।

अ.1- देश कि जिसने सबसे पहले जीवन ज्योति जलाई।
और ज्ञान की किरणें सारी दुनियाँ में फैलाई॥
मोहनिशा में फँसे विश्व को बंधन मुक्त कराया।
भ्रातृ भावना का प्रकाश सारे जग में फैलाया॥
अगणित बार बचाई जिसने मानवता की लाज॥

इस देश की संस्कृति है कि पशु- पक्षियों को भी प्राणों से प्रिय समझा गया और दया, करूणा बरसाकर परिजनों सखाओं जैसा सद्व्यवहार सिखाया गया। पाषाण प्रतिमाओ में देव भावना जगाई, शत्रु को भी आत्मीयता प्रदान की गई। शरणागत की रक्षा को दया, धर्म में सम्मिलित किया। प्रस्तुत पंक्ति यही प्रेरणा देती है।

अ.2- इतना प्रेम कि पशु पक्षी तक प्राणों से भी प्यारे।
इतनी दया कि जीव मात्र सब परिजन सखा हमारे॥
श्रद्धा अपरम्पार कि पत्थर में भी प्रीत जगाई।
और पराक्रम ऐसा जिसकी, रिपु भी करें बड़ाई॥
उसी प्रेरणा से रच दें हम, फिर से नया समाज॥

ऋषि दधीचि ने देवत्व की रक्षा के लिए अपनी हड्डियों तक दे डाली। माताओं ने अपने वीर पुत्रों को अनेक बार रण क्षेत्र में भेजा और गोदियाँ सूनी रख कर भी संतोष कर लिया। असीम कष्ट सह कर भी अनीति के सामने सिर नहीं झुकाया। अनाचार के साथ समझौता नहीं किया। चोटी कटाने की अपेक्षा सिर कटाने में गौरव समझा। भारत पुत्र दृढ़ चरित्र पर गौरवान्वित मस्तक से अभिमान करते रहे।

अ.3- मानवता के लिए हड्डियाँ तक जिसने दे डाली।
माताओं ने करीं अनेको बार गोदियाँ खाली॥
पर न पाप के आगे उनने अपना शीश झुकाया।
चोटी नहीं कटाई जिसने, हँस- हँस शीश कटाया॥
रहे शिवाजी अर्जुन जैसा, निच चरित्र पर नाज॥

देह को तप साधना ने जर्जर बना लिया फिर भी तन और मन को पुण्य परमार्थ की सम्पदा से रिक्त नहीं होने दिया। जटायु और गिलहरी तक ने महान प्रयोजन में आगे बढ़कर योगदान प्रस्तुत किया।

भगवान के बार- बार अवतार भी इसी देवभूमि में होते रहे नव जागरण का शंखनाद समय- समय पर यहीं से विश्व भर में गूँज उठा।

अ.4- देह सुखा डाली न पुण्य से तन- मन जिनके रीते
गीध गिलहरी तक न रहे थे परमारथ से पीछे॥
इसी भूमि में वेद पुराणों ने थी शोभा पाई।
जन्म अनेकों बार यहीं लेते आये रघुराई॥
स्वागत करने को नवयुग का, नया सजायें साज॥

‘‘विचार क्रांति अभियान’’ के ज्ञान यज्ञ की लाल मशाल अज्ञान, अंधकार का अंत करके रहेगी। हम बदलेंगे, युग बदलेगा का उद्घोष नव निर्माण का आधार सूत्र बनेगा और सफल होकर रहेगा। आओ हम भी गौरव गरिमा का स्मरण करते हुए फिर से स्वाभिमान को जगायें।

अ.5- सोये स्वाभिमान को आओ सब मिल पुनः जगायें।
नव जागृति के आदर्शों को दुनियाँ में पहुँचायें॥
ज्ञान यज्ञ की यह मशाल हर लेगी युग तम सारा।
हम बदलेंगे- युग बदलेगा आज लगायें नारा॥
सुनो अरे युग का आवाहन, करलो प्रभु का काज॥

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