गीत संजीवनी-1

गायत्रीमय आप हो गये

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गायत्रीमय आप हो गये, चेतन बन कर छाये हो।
युग प्रज्ञा का किया अवतरण, भागीरथ बन आये हो॥
ज्ञान की गंगा लाये हो, तुम ही यहाँ समाये हो॥
प्रखर साधना पुञ्ज आप हैं, हम जप, तप पुरुषार्थ करेंगे।
सृजन साधना स्वयं करेंगे, अभिनव साधक जग को देंगे॥
सृजन साधना के तुम दीपक, सबके मन को भाये हो।
गायत्रीमय आप हो गये, चेतन बन कर छाये हो॥
महाक्रान्ति के दीप बनें हम, घृत पूरित तुम करते रहना।
स्नेह बाँटते रहें विश्व में, निष्ठा जागृत करते रहना॥
महाक्रान्ति के दीप जलाने, ज्योति अखण्ड जलाये हो।
गायत्रीमय आप हो गये, चेतन बन कर छाये हो॥
ब्रह्म बीज बाँटे हैं तुमने, सुरभित जग को हम कर देंगे।
जीवन विद्या की खुशबू से, विश्व सुवासित हम कर देंगे॥
जन्म शताब्दी हेतु शिष्य की, शपथ परखने आये हो।
गायत्रीमय आप हो गये, चेतन बन कर छाये हो॥
छोटे- बड़े सभी हम दीपक, हाथ उठा संकल्प ले रहे।
समय साधना की श्रद्धाञ्जलि, दे तुमको आश्वस्त कर रहे॥
प्रज्ञा- श्रद्धा जागृत करने, माँ भगवती! संग आये हो।
गायत्रीमय आप हो गये, चेतन बन कर छाये हो॥
मुक्तक-
चेतनमय स्वरूप आपका, सवितामय प्रभु आप हो गये।
सबके लिए सुलभ हो ऋषिवर, जग व्यापी विस्तार हो गये॥    
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