गीत संजीवनी-1

गुरु चरणों में आकर देखो

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गुरु चरणों में आकर देखो- सब कलह क्लेश मिट जाते हैं।
अन्तर निर्मल हो जाता है- भवशूल कभी न सताते हैं॥

जब प्राण दुःखी होते जग के- मर्मान्तक हाहाकारों से।
जब बीच भँवर में नाव अलग- हो जाती है पतवारों से॥
संसार सिन्धु से तब गुरु ही- कर गहकर पार लगाते हैं॥

जब पीर हृदय को मथती है- दुःख छा जाते मानस तन पर।
दुनियाँ के झंझट सहन नहीं- कर पाते हम अपने बल पर॥
तब काट हमारे पापों को- गुरु शान्ति सुधा बरसाते हैं॥

जब भेद नहीं हम कर पाते, सच- झूठ भरे उलझाओं में।
जब मार्ग नहीं हम चुन पाते- आसक्तिपूर्ण भटकावों में॥
उस चक्रव्यूह से सद्गुरु ही- निर्णय कर हमें बचाते हैं॥

जग को, प्रभु को, और आत्मा को- केवल गुरु ने ही जाना है।
सन्तों ने इसीलिए गुरु को- प्रभु से भी ऊँचा माना है॥
हम गोविन्द से पहले गुरु के- चरणों में शीश झुकाते हैं॥
मुक्तक-
सद्गुरु का दरबार अनूठा- प्राण पिलाये जाते हैं।
दैहिक, दैविक, भौतिक तीनों- ताप मिटाये जाते हैं॥
है श्रद्धा विश्वास न जिनमें- उन भटकों का क्या कहना।
वरना मझधारों वाले भी- पार लगाये जाते हैं॥    
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