गीत संजीवनी-1

गुरुदेव! इस अधम पर

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गुरुदेव! इस अधम पर- इतनी तो कृपा करना।
‘पारस’ जिसे कहे जग, वह ज्ञान सदा भरना॥
वैसे तो जंग खाया- लोहा है यह अकिंचन।
लेकिन यह प्रार्थना है- इसको बनाओ कंचन॥
ज्ञानाग्नि में इसे प्रभु- अविराम तपा करना॥
सद्ज्ञान का अनूठा- ‘अमृत’ इसे पिला दो।
निष्प्राण हो रहा है- निज प्राण छल छला दो।
करुणा भरे हृदय से, इसको न जुदा करना॥
वह ‘कल्पवृक्ष’ देना- मन चाही वस्तुएँ दे।
सद्ज्ञान के फलों को- चख दिव्य शक्तियाँ लें।
सन्तोष तृप्ति मन में- गुरुदेव सदा भरना॥
सद्ज्ञान रश्मियों से- कल्मष कषाय काटो।
इसके पतन पराभव- के गर्त नाथ! पाटो॥
जब हो रहा पतन हो- तब तो न छुपा करना॥
इतना किया अनुग्रह- अपना इसे लिया है।
इसको तराशने का- विश्वास भी दिया है॥
इसको अधम समझकर- दर से न विदा करना॥
मुक्तक-
हम तो हैं बस आपके, अनगढ़ या नादान।
जैसा चाहो बना लो, हे सर्वज्ञ सुजान॥    
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