चलेंगे हम जगत जननी, तुम्हारे ही इशारों पर।
न है चिन्ता कि डूबें या, पहुँच जायें किनारों पर॥
भटकते ही रहे अब तक, अँधेरी वीथियों में हम।
रहे बस खोजते मोती, तटों की सीपियों में हम।
बड़े सौभाग्य से आये, यहाँ माँ के दुआरों पर॥
तुम्हारे शब्द में हमने सुनी, गुरुदेव की वाणी।
तुम्हारे स्नेह में देखी, गुरु की दृष्टि कल्याणी।
उसी से पार होंगे हम, समय की तेज धारों पर॥
हमारे कान में गुरु की, तुम्हीं ने बात दुहराई।
शिथिलता के पलों में माँ, तुम्हीं से प्रेरणा पाई।
हमारी हर प्रगति होगी, तुम्हारे ही सहारों पर॥
करें हम काम गुरुवर का, हमें वह शक्ति दे दो माँ।
दुःखी असहाय मानव में, हमें अनुरक्ति दे दो माँ।
करें हर सुख समर्पित माँ, हजारों बेसहारों पर॥
सुसंस्कृति की सुरक्षा को, विवेकानन्द हम होंगे।
कि बन्दा बैरागी से हम, जरा भी तो न कम होंगे।
ज़माना नाज़ कर लेगा, पुनः इन पंच प्यारों पर॥
मुक्तक-
माँ तुम्हारी याद आयी, नयन में भर गया पानी।
हम सुकृत्यों से करेंगे, पूर्ण ममता की कहानी॥