गीत संजीवनी-2

जिसकी साँसे और पसीना

<<   |   <   | |   >   |   >>
जिसकी साँसें और पसीना, जनहित में लग जाये।
वही वीर मेरी राखी, बँधवाने हाथ बढ़ाये॥

जो युग की पीड़ा को समझे, और जरूरत जाने।
फिर उसके अनुरूप जगत को, गति देने की ठाने
जिसका जीवन नवल सृजन की, यज्ञाहुति बन जाये॥

जो अपने कर्मों से मोड़े, विधि की लिखी लकीरें।
जो अपने साहस से तोड़े, अनीति की जंजीरें॥
जिसके पौरुष से बिखरा, भूगोल सिमटता जाये॥

जो चल सके संकटों पर, जो तूफानों से खेले।
औरों के हित जो हँस- हँसकर, कष्ट अनेकों झेले॥
जिसकी जीवन गाथा से, इतिहास धन्य हो जाये॥

निष्ठा के मोती से जिसकी, मानस सीप भरी हो।
जिसके आने से हर मन की, सूखी कली हरी हो॥
जिसका प्यार दुःखी दीनों को, नव- जीवन दे जाये॥

मुक्तक-

आमन्त्रण हमको देती है, भाई अब बहनों की राखी।
नारी का सम्मान बचाएँ, कहती है बहनों की राखी॥
जो नारी को मान ‘कामिनी’ उसकी गरिमा गिरा रहे हैं।
उनसे भिड़ने का आमन्त्रण- देती है बहनों की राखी॥    
<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118