इन्सान से यदि मिल पाये
इन्सान से यदि मिल पाये नहीं, भगवान से क्या मिल पायेंगे।
अपना यह लोक बना न सके, तो क्या परलोक बनायेंगे॥
जगदीश्वर का पूजन करते, इत जग को शोषण करते हैं।
विश्वंभर का सुमिरन करते, पर विश्व की सम्पत्ति हरते हैं॥
श्रीराम के भक्त कहाते हैं, रावण नीति अपनाते हैं।
परधन परनारी तकने में, निज मन को रोक न पाते हैं॥
मन को यदि निर्मल कर न सके, क्यों मन मोहन मिल जायेंगे॥
मिलते भगवान सुकर्मों से, हमने कुकर्म अपनाये हैं।
सद्भावों में निवास प्रभु का, हमने कुभाव पनपाये हैं॥
देखा कुभाव दुर्योधन का, छप्पन भोजन बिसराये हैं।
सद्भाव भरे विदुरानी के घर, साग सलौने खाये हैं॥
यदि भाव शुद्ध शबरी से हैं, प्रभु स्वयं खोजते आयेंगे॥
उस परमपिता परमेश्वर के, सुत हैं यहाँ प्राणी मात्र सभी।
सुत को दुःख देने वाले से, होते प्रसन्न नहीं पिता कभी॥
प्रभु की प्यारी जग बगिया को, जो निशिदिन सींचा करते हैं।
ऐसे ही प्रेमी भक्तों पर, प्रभु प्रेम उलीचा करते हैं॥
परहित में जुटे जटायू ज्यों, प्रभु स्वयं गोद बैठायेंगे॥
भगवान से यदि मिलना चाहो, उनके विधान से प्यार करो।
कर दूर वासना तृष्णा को, सद्भावों का विस्तार करो॥
श्रीराम काज में जुट जाओ, होगें प्रसन्न भगवान तभी।
आतम संतोष मिलेगा तब, मिल जाय दैवी अनुदान सभी॥
करें प्रेमामृत को पान जभी, हरि उनको हृदय बसायेंगे॥