इतना चिन्तन किया तुम्हारा
इतना चिन्तन किया तुम्हारा, तुमसे इतना प्यार हो गया।
तजकर अपना रूप तुम्हारा, मैं पावन आकार हो गया॥
एक एक मिल दो होते हैं, यह तो है इतिहास पुराना।
एक एक मिल एक हो गया, गणित भला यह किसने जाना॥
हम तुम मिलकर एक हो गये, यह अद्भूत व्यापार हो गया॥
जब तक दूर रहे तुम तब तक, द्वैत भाव ने मन को घेरा।
ज्योति तुम्हारी पड़ी दिखाई, अजब अव्दैत ने किया बसेरा॥
अब तक निराकार था जो, वह नयनों में साकार हो गया॥
भव- बन्धन ने मुझको बाँधा, माया ने प्रतिपल भरमाया।
इस संस्कृति को जानूँ कैसे, जब कि स्वयं को जान न पाया॥
अपने को पहचान सका तब, जब मन का अधिकार हो गया॥
सभी कलाओं में संगीत कला का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है। मानवीय हृदय को तरंगित करने में इसके जादुई प्रभाव से सभी परिचित हैं। उच्चभावनाओं के साथ जोड़ने पर इसे मनोरंजन के साथ लोक मानस के परिष्कार के रूप में प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है।
- (अखण्ड ज्योति अक्टूबर- 2000, पृष्ठ- 13)