गीत संजीवनी-2

जिन गुरु में साकार हो

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जिन गुरु में साकार हो गई, गुरुओं की गुरुताई।
उनको शत्- शत् नमन् जिन्होंने, ज्योति- अखण्ड जलाई॥
सुनो शिष्यों गुरुवर की गुरुताई॥

हिम नग की ऊँचाई जिनमें, गहराई सागर की।
नभ जैसी विशालता जिनमें, निर्मलता निर्झर- सी॥
और प्रखरता सविता जैसी, सरिता- सी सजलाई॥
सुनो शिष्यों गुरुवर की गुरुताई॥

दिव्य दृष्टि के स्वामी, वे उज्ज्वल भविष्य के दृष्टा।
तप के पुंज स्रोत करुणा के, नवल सृष्टि के सृष्टा॥
मचल रही जिनके चरणों में, मरुतों की तरुणाई॥
सुनो शिष्यों गुरुवर की गुरुताई॥

हिमनग के अभिषेक हेतु, हिमखण्डों- सा गलना है।
अर्घ्य चढ़ाने सागर को, जलधर बनकर फिरना है॥
जनहिताय गलने की गरिमा, गुरुवर ने बतलाई॥
सुनो शिष्यों गुरुवर की गुरुताई॥

ऐसी गुरुसत्ता को पाकर, सचमुच धन्य हुए हम।
सचमुच ही सौभाग्य हमारा, नहीं किसी से भी कम॥
राह न रोक सकेगा कोई, पर्वत खन्दक खाई॥
सुनो शिष्यों गुरुवर की गुरुताई॥

श्रद्धा और आस्थाओं की, धरती सूख रही है।
संवेदन बिन मानवीय, मन में उठ हूक रही है॥
गुरुवर ने संवेदित शिष्यों, से है आश लगाई॥
सुनो शिष्यों गुरुवर की गुरुताई॥

मुक्तक-

गुरु के रूप में हमने- आत्म विज्ञान पाया है।
योग, तप, भक्ति पाई है- श्रेष्ठतम ज्ञान पाया है॥
नहीं अब रह गई है- कामना कुछ और पाने की।
गुरु के रूप में हमने अरे! भगवान पाया है॥
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