उठ पड़े हाथ लेकर मशाल
उठ पड़े हाथ लेकर मशाल, आवाज दे रहा महाकाल।
जय महाकाल, जय- जय महाकाल॥ 7 बार
निद्रा छोड़ो, तन्द्रा तोड़ो, बढ़ते मद- नद की गति मोड़ो।
उच्छृंखलताओं के प्रवाह, समता से सन्मति से जोड़ो॥
फोड़ो दुर्गति के घट कराल, आवाज दे रहा महाकाल॥
तुम यज्ञवीर, तुम कर्मवीर, मत हो हताश, मत हो अधीर।
तुम महाबली, तुम सिंह सुवन, रख दो कलुषों के वक्ष चीर॥
क्यों जीते हो बनकर श्रृंगाल? आवाज दे रहा महाकाल॥
संस्कार हीन, संसार दीन, अपने में ही जो रहा लीन।
अब स्वयं खोजना चाह रहा, सुख और शान्ति के पथ नवीन॥
प्रज्ज्वलित करो चेतना ज्वाल, आवाज दे रहा महाकाल॥
प्राणों में ले संकल्प शक्ति, मानवता के प्रति अचल भक्ति।
तुम चढ़ो ध्येय के शिखरों पर, इन्द्रिय सुख से लेकर विरक्ति॥
भेदो कुण्ठाओं के कपाल, आवाज दे रहा महाकाल॥
भटकाव विश्व का और न हो, दुःख का कोई भी ठौर न हो।
दुश्चिन्तन अथवा दुराचार, सुविधाओं का सिरमौर न हो॥
बेधो छल- बल के विकट व्याल, आवाज दे रहा महाकाल॥