गीत संजीवनी-10

रंग बसन्ती प्रभा केशरी

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रंग बसन्ती, प्रभा केशरी, शान्तिकुञ्ज के कण- कण में।
आते ही भर जाती है यह, लहर रंग की हर मन में॥

जीवन लगा तपश्चर्या में- पूज्यपाद श्री गुरुवर का।
मिशन बनाया ऐसा सारे- जग को रूप दिया घर का॥
व्यक्ति मात्र को बना दिया, पारंगत जीवन के रण में॥

जीवन जीने की शुचि कला- सन्त ऋषियों ने विकसायी।
और बुलाकर पास करोड़ों- को वह विद्या सिखलाई॥
कहा बन्धु! अध्यात्म श्रेष्ठ है- रहो न लिप्त सिर्फ धन में॥

रंग बसन्ती है कि ग्रहण हम- करें सद्गुणों की आभा।
साँसें ममता के नभ में लें- तजें कुटिलता की दावा॥
लोकहितों का रंग बसन्ती- जागे फिर से जन- गण में॥

चोला था बासन्ती रंग का- भगत सिंह की फाँसी का।
नाम लिखा इस रंग ने ही- लक्ष्मीबाई औ झाँसी का॥
आज बसन्ती वस्त्र पहन सब- लगे नव्य युग सर्जन में॥

जल उपवास, अस्वाद व्रतों की- आभा बासन्ती रंग में।
बन प्रकाश स्वर्णिम फूटी थीं- इस योगी के अंग- अंग में॥
यह पावनता ही बिखरी है- शान्तिकुञ्ज के आँगन में॥

मुक्तक-

वह उपचार किया गुरुवर ने, जीवन का सब मैल धुल गया।
तन, मन, जीवन रँगा अलौकिक, बासन्ती उल्लास खिल गया॥

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