गीत संजीवनी-10

रंग लाने लगा त्याग

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रंग लाने लगा त्याग ऋषि युग्म का,
साधकों में उछलने लगी भावना।
प्यार इतना लुटाया ऋषि युग्म ने,
चल पड़ी लोकहित के लिए साधना॥

साधना की कली मुस्कुराने लगी,
साध में सिद्धि की गन्ध आने लगी।
खिल उठे साधकों के सहज ब्रह्मकमल,
प्राण में है महाप्राण की प्रेरणा॥
आओ मिलकर करें.........॥

साधना गन्ध का है समीरण चला,
साधकों का भ्रमर- दल मचलने लगा।
मन्त्र के मौन निर्झर उछलने लगे,
झर रही देव सविता जनित ज्योत्सना॥
आओ मिलकर करें.........॥

आज युग तीर्थ में साधना हो रही,
और उज्ज्वल भविष्य प्रार्थना हो रही।
साधना से युग तीर्थ शान्तिकुञ्ज है,
सिद्धि का स्रोत शान्तिकुञ्ज की साधना॥
आओ मिलकर करें.........॥

ध्यान दो विश्व माता बुलाती हमें,
साधना की सुधा है पिलाती हमें।
रह न जाएँ कि वंचित सुधा पान से,
है सभी के लिये श्रेयकर साधना॥
आओ मिलकर करें.........॥

मुक्तक-

साधकों का मन कोई उकसा रहा है।
साधना करने निमन्त्रण आ रहा है॥

साधना से विश्व का कल्याण होगा।
राष्ट्र- रक्षा कवच बनने जा रहा है॥

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