गीत संजीवनी-10

राष्ट्र के जागरण का समय

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राष्ट्र के जागरण का समय आ गया।
अब युवाओं सृजन का समय आ गया॥
अब न बिखरे रहें, आत्मबल के धनी।
आज बनना तुम्हें, विश्व में अग्रणी॥
सुप्त देवत्व को है, जगाना तुम्हें।
है इसी भूमि पर, स्वर्ग लाना तुम्हें॥
स्वर्ग के अवतरण का समय आ गया॥
डगमगाये न हम, डगमगाने न दें।
पाँव पीछे किसी को, हटाने न दें॥
जो पिछड़ने लगें हम, उन्हें थाम लें।
कंटकों में बहुत, धैर्य से काम लें॥
चाल के सन्तुलन का, समय आ गया॥
धार को जिन्दगी की, जरा मोड़ दें।
स्वार्थ- संकीर्णता, क्षुद्रता छोड़ दें॥
अब कहीं काम इनसे, न चलना यहाँ।
है जरूरी स्वयं को, बदलना यहाँ॥
दिव्यता के वरण का समय आ गया॥
धर्म- भाषाजनित, भिन्नता भूलकर।
आज हो राष्ट्र का, संगठित एक स्वर॥
एक हो जायें सब, भावना से भरे।
स्नेह- संवेदना, प्रेरणा से भरे॥
श्रेष्ठ के संगठन का, समय आ गया॥

मुक्तक --
यह समय है आत्मबल के जागरण का।
और मिल जुलकर नये युग के सृजन का॥
स्वार्थ से उबरें, उबारें चिन्तकों को।
जवानों! यह समय है संगठन का॥

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