हम नव जागृति के कर्णधार हैं, दुनियाँ नई बसाएँगे।
जय बोलेंगे मानवता की, जन- जन को गले लगाएँगे॥
पिछले युग की कुण्ठाओं को, आश्रय न मिलेगा सच मानो।
भय, क्रोध, अविद्या, लोभ, मोह,कम होंगे यह निश्चय जानो॥
गुण, कर्म, प्रकृति आधार मान, मानव का होगा मूल्यांकन।
जिसमें होगा साहस अजेय, उसका ही होगा अभिनन्दन॥
सहमे- सहमे दुर्बल मन में, पावन पुरुषार्थ जगाएँगे।
जय बोलेंगे मानवता की, जन- जन को गले लगाएँगे॥
नूतन- नूतन निर्माणों की, शृंखला एक बन जाएगी।
साधन सुविधाओं की वर्षा, जीवन को रम्य बनाएगी॥
दानों का ढेर लगा देंगे, फिर कहीं नहीं होगा अभाव।
भुखमरी और निर्धनता का, फिर कहीं नहीं होगा प्रभाव॥
श्रम कण से सींचेंगे धरती, माटी से स्वर्ण उगाएँगे।
जय बोलेंगे मानवता की, जन- जन को गले लगाएँगे॥
अब चरण बढ़ेंगे नव पथ पर, है लक्ष्य एक साथी अपना।
देवता कर्म को मानेंगे, सच होगा सतयुग का सपना॥
हर घर को स्वर्ग बना देंगे, हर मानव को सच्चा मानव।
यह विश्व बनेगा नन्दन वन, चमकेगा भारत का गौरव॥
जिसमें न कहीं होगी पीड़ा, ऐसा संसार बसाएँगे।
जय बोलेंगे मानवता की, जन- जन को गले लगाएँगे॥