गीत संजीवनी-11

समय रहते जगो साथी

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समय रहते जगो साथी, न किञ्चित देर हो जाये।
सजाते ही रहो तुम दीप- तब तक भोर हो जाये॥

अमृत बरसा, मगर तब, जब, शवों से भर गया मरघट।
रहा उपयोग क्या पतवार का? आ ही गया जब तट॥
तड़पते ही रहे यदि प्राण, अंकुर- मिट गयी आशा।
सम्भालो जिन्दगी का क्रम, पलट जाये न परिभाषा॥
बढ़ा लो तुम चरण निर्भय, न पश्चाताप रह जाये।

चुनौती दे रही तुमको, सिहरती रात यह काली।
न है सूरज, न है चन्दा, सजाओ आज दीवाली॥
करो अर्जित पुनः अर्जुन, सरीखा शक्ति औ- संयम।
जला दो ज्ञान के दीपक, मिटे अविवेक रूपी तम॥
रुके पहले पतन, तब फिर, सृजन का सूर्य मुस्काये॥

समय की माँग है, खुद जाग जाओ प्रात से पहले।
व्यवस्थायें जुटालो, रोशनी की, रात से पहले॥
भटक जाये न कोई राह के, संकेत हों निश्चित।
न मुरझा जाये नव अंकुर, प्रथम कर दो उन्हें सिञ्चित॥
नया युग आ रहा है, भाव स्वागत के न सो जायें।

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