गीत संजीवनी-11

शंख बजे दीप जले

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शंख बजे दीप जले- साज बजे गीत चले।
दीपयज्ञ घर- घर मनाओ रे॥
हाँ भैया द्वार- द्वार दीपक जलाओ रे॥

अस्त हुआ सूरज यह, दुनियाँ की रीति है।
उगा नहीं चन्दा तो- मन क्यों भयभीत है॥
एक दीप स्वयं बनो- ज्योति का आह्वान करो।
झिलमिल फिर जग को, चमकाओ रे॥
ज्योति पुत्र- अँधियारा, जग का मिटाओ रे॥

फैला अँधियारा है- भीषण अनीति का।
भूल गया मानव, पथ ईश्वर की नीति का॥
श्रद्घा- विश्वास जगे- जनहित की लगन लगे।
ऐसा अभियान, अब रचाओ रे॥
ओ साधक- जन में आस्था जगाओ रे॥

जड़ता का स्वार्थ भरा- व्यूह आज तोड़ दो।
कर्मठता सेवा से, जन- जन को जोड़ दो॥
आलस को दूर करो- मन में उल्लास भरो।
मानव का गौरव जगाओ रे॥
कर्मवीर जीवन की विद्या सिखाओ रे॥

गायत्री माता जो- सबको दुलरायेगी ।।
माया तो नटनी है- जग को नचायेगी॥
माया से मोह तोड़- माता से नेह जोड़ ।।
धन को शुभ कर्म में लगाओ रे।
ओ सपूत! व्यसनों से उसको बचाओ रे॥

मानव को दानवता- के भय से मुक्त करो ।।
मानवता विकसित हो- ऐसी कुछ युक्ति करो॥
इस जग की शान बनो- युग के वरदान बनो।
अग्रदूत युग के कहलाओ रे॥
युग सैनिक- घर घर जा अलख जगाओ रे॥

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