आओ चक्र सुदर्शन धारी, हे मन मोहन गिरधारी॥
कृष्ण कन्हैया सच कहते हैं, मरा नहीं है कंस।
द्वापर से दस गुना हो गया, दुर्योधन का वंश॥
फिर अधर्म का हुआ धर्म के, ऊपर पलड़ा भारी॥
क्या गौ औ क्या गोकुल कान्हा, सब पर ताप चढ़ा है।
इस धरती पर तब से लेकर, अब तक पाप बढ़ा है॥
हर दिल अब सहमा- सहमा है,हर मन भारी- भारी॥
इस दुनियाँ में जितना दुःख है, उसका नाम मिटा दो।
प्रेम प्यार की अमृत धारा, जन- जन पर बरसा दो॥
सब सुख सारी खुशियाँ दे दो, सबको कृष्ण मुरारी॥