दूर करेंगे तम अनीति का, ज्योति जगायेंगे।
दीप से दीप जलायेंगे, ज्योति का पर्व मनायेंगे॥
मन का भ्रम जग का अँधियारा, रह न सकेगा वह बेचारा।
ज्ञान और विज्ञान एक हों, सृष्टि सजायेंगे, नया सौभाग्य जगायेंगे॥
द्वेष, दीनता नहीं रहेगी, छल कुरीतियाँ नहीं चलेंगी।
प्रेम और सद्भाव मनुज का भेद मिटायेंगे, विश्व परिवार बनायेंगे॥
अन्धकार, आलस्य जलेंगे, स्वार्थ, निराशा नहीं रहेंगे।
विनय और सहयोग शान्ति का मार्ग बनायेंगे, मनुज को देव बनायेंगे॥